”लोग देश-भक्ति की बातें करते हैं। मैं देश-भक्त हूँ, देश-भक्ति का मेरा अपना आदर्श है।…..सबसे पहली बात है, हृदय की भावना। क्या भावना आती है आपके मन में, यह देखकर कि न जाने कितने समय से देवों और ऋषियों के वंशज पशुओं-सा जीवन बिता रहे हैं ? देश पर छाया अज्ञान का अंधकार क्या आपको सचमुच बेचैन करता है? …..यह बेचैनी ही देश-भक्ति का पहला कदम है।”
(विनय रॉय द्वारा उद्धृत, ‘सोशियो पॉलिटिकल व्यूज़ ऑफ विवेकानंद’-पी.पी.एच., नयी दिल्ली, 1983, पृ.54-55.)