हमारी पत्रकारिता के पतन की पराकाष्ठा, धिक्कारिये इस तरह के नेताओं और पत्रकारों को
हमारी पत्रकारिता के पतन की पराकाष्ठा, धिक्कारिये इस तरह के नेताओं और पत्रकारों को
कुबूलनामा ? हमारी पत्रकारिता के पतन की पराकाष्ठा देखिये। आज 'अमर उजाला' की हैड लाइन है - 'इमरान का कुबूलनामा, जंग हुई तो भारत से हार जायेगा पाकिस्तान' और सब टाइटिल है - 'पारंपरिक जंग के परमाणु युद्ध में बदलने की गीदड़ भभकी' ।
खबर को भीतर पढ़ने पर इमरान को इस तरह कोट किया गया है - 'मेरा मानना है कि जब भी दो परमाणु हथियार संपन्न देश पारंपरिक जंग लड़ते हैं तो इसके परमाणु युद्ध में तब्दील होने की आशंका रहती है। पाकिस्तान पारंपरिक युद्ध हराने लगे तो फिर हमारे पास दो ही विकल्प होंगे कि हम समर्पण कर दें या अपनी आजादी के लिए आखिरी सांस तक लड़ें।'
इमरान के कथन को आगे इस तरह लिखा गया है कि - 'इसमें भ्रम नहीं कि पाकिस्तान कभी भी परमाणु युद्ध की शुरुआत नहीं करेगा।'
कोई भी सामान्य विवेक का मनुष्य इन पंक्तियों से यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकता कि इमरान ने ऐसी कोई स्वीकारोक्ति की हो कि पाकिस्तान जंग हार ही जायेगा। इसके बरअक्स कि राजनाथ सिंह पहले परमाणु हथियार प्रयोग न करने की नीति से पीछे हटने का एलान कर चुके हैं, इमरान का बयान ज्यादा जिम्मेदारी का है। जिन संपादकों ने 'अमरउजाला' की हैडिंग को अंतिम रूप दिया है क्या वे पहले परमाणु हमला न करने की नीति से भारत के हटने के राजनाथ के बयान से यह निष्कर्ष निकाल सकते थे कि भारत ने कुबूल लिया कि वह पारंपरिक जंग में नहीं जीत पायेगा ?
मैं इमरान खान की इस बात से सहमत हूँ कि अगर युद्ध होगा तो यह भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सीमित नहीं रहेगा। यह आगे जायेगा और पूरी दुनिया इससे प्रभावित होगी।
मैं जानता हूँ कि चीजों को इस तरह देखने से संघी साइबर सैनिक इस पोस्ट को पाकिस्तान परस्ती या देशद्रोह की पोस्ट कहेंगे, लेकिन मैं समझता हूँ कि उपमहाद्वीप के सामान्य लोगों के हित में युद्ध के उन्माद में पगलाई सांप्रदायिक राष्ट्रवादी राजनीति के खिलाफ दृढ़ता से खड़े होने का समय है। युद्ध की शुरुआत कोई भी अपनी इच्छा से कर सकता है लेकिन युद्ध का अंत उसके हाथ नहीं होता। इसलिए धिक्कारिये इस तरह के नेताओं और पत्रकारों को।
मधुवन दत्त चतुर्वेदी


