हमारे कल्कि अवतार को हर नाजुक मौके पर फिर-फिर क्यों चाहिए अंकल सैम का ठप्पा वहींच?
क्यों अनंत इस बंटवारे को हम मान लें हिंदुत्व?
ऐन मौके पर एकदम सबसे जरुरी संकटकाले अमेरिका ठप्पा भौत काम की चीज ह। एकदम जरुरी भौत काम की चीज! वरना नंगा!
पलाश विश्वास
ससुरा जो अंकल सैम बांग्लादेश मा जुध समये सतवां नौसैनिक बेड़ भेजे रहिस आउर अटल बिहारी के पुण्यप्रतापे देश जो एकच रक्त रहे के दुनिया के आगे इंदिराम्मा हो गइलन दुर्गा अवतार, महाबलि अमेरिका हो गइलन खेत।
फिन आठवें दशक मध्ये उनके सिरजे तालिबान ने उनके ताममो हथियार, उनके भेजे पैसे आउर उनकी तकनीक का इस्तेमाल किये रहि भारत तोड़ैके खातिर
फिन मुंबईला , आमाची मुंबई ला बम्बब्लास्ट। का उखाड़े रहे अंकल सैम भारते खातिर, कहियो के आ बैल जडिप्लोमेसी बसंत बहार?
वहींच अमेरिका बरंबार क्लीन चिट देतड़ा। काहे?
पहिले खूबै चीखै रहे मानवाधिकार!
फतवा जारी किये रहे, विसा अमेरिका का नैव नैव च। नको नको।
तबहुं क्लीन चिटवा।
अबहुं क्लीनचिटवा।
थांबा। वहींच भयो कल्कि अवतार तो धड़ाक से दे दिहिला क्लीन चिट। फिन वहींच क्लीन चिट बरखा बहार जइसन तमिल सुनामी।
सो फोकस मा फिन वही केसरिया सुनामी जल सुनामी आर पार। के क्लीन चिट फिन मिलल गुजरात नरसंहार जइसन कि गोआ के चुनांचे के गुजारात मा हारै नहीं हो कल्कि अवतार।
अश्वमेध जारी रहेक चाहि। सुधारो चाहि। टोटल एफोडीआई चाहि। टोटल ग्रीस सरीखा प्राइवेटाइजेशन, टोटल डिसइनवेसमेंट, टोटल अमेरिकी उपनिवेशवा हिंदू राष्ट्र चाहि कि गैर जरुरी नौकर चाकर अफसर मुआ जाये सगरे कि विधर्मी म्लेच्छ कुजात दलित पिछड़ा बहुजन मारे जावे सगरै।
जय हो कल्कि अवतार महाराज। फिन वही वाशिंगटन से कल्कि अवतार। जय जय जय हे कल्कि अवतार।
ई कहो कि आपण जो बिररिंची बाबा हो, नवलखिया हार न हो तो क्या, लखटकिया सूटो वसंत बहार जो महाजिन्न जिनके हवाले यह महादेश तो क्या हम तमामो दुनिया का मान ना मान लीडर महान बनावै रहे, देश मा उनका जी मितलावै।
संसद मा बइठलन के ना बइठलन, सीट बेल्ट की आदत मारे बाहिरै फिर दौड़ लगावै आउर फिन उड़ान भरैके चाहि वरना मुश्किलो ह हाजत रफा, नींद भी ससुरी बेवफा हो जाई गर विदेशी ऐशगाह की नर्म बिस्तर और विदेशी मेजबानी की गर्मी न हुई।
ई हमारा स्वाराज बा।
ई हमार स्वाभिमान।
ई हमार धर्म। यहींच हमार कर्म।
यहींच कर्मफल।
यहींच जनादेश।
आउर जमकै बइठो, किस्सा हम अभी खोले नइखै!
बतरस धीरे धीरे खुलि तभी ना मजा आवै!
हमउ ससुरा मसखरा आउर उ मदारी!
उनका का? पत्नी को वनवास देईके रमचंद्र बाड़न।
अभी थोड़ा वक्त पहिले हमार पत्नी सविता बाबू माथे पर सवार। नास्ता वखत वखत करो वरना लिखना पड़ना मुश्किल।
उठाइके खाना खावैके रोज कर दें मजबूर।
हमउ उत्पीड़ित पति बाड़न।
पण उ जौन उत्पीड़ित पत्नी बाड़न, सीमा मइयाकै हरावल दिहिस।
राजसूय के मौके पर सीताम मइया लव कुशै के भेजे रहि राजदरबार मा। सगरा भंडाफोड़ कर दिहिस बचवा दुनो।
इससे पहिले मुआ दिहिस सगरे राम लक्ष्मण बजरंगी फौज फिन जिंदा भी कर दिहिस। सीता मइया की किरपा। फिन पाताल प्रवेश करिकै रामचंद्र को कचघरे मा छोड़ देला।
पण उ जौन उत्पीड़ित पत्नी बाड़न, सीता मइयो से बढ़कर सती सावित्री ह। मंत्र जाप किये रही। सात फेरे भी हुए रही। पण सुहाग रात फेर न आई। सती दाह निषेध है कि वे चीखै भी। सुनता नाही कोई।
हमरी का बिसात। त सविता बाबू आज ताजा तरीन फतवा देई रहिस कि गधवा भी दुलत्ती झाड़ै ह। हम ना देखल वानी।
देखे ह?उ जौन गधड़ु ह, बौझ ढोवै, लहूलुहान जख्मी, न बल न बुद्धि, न मेधा, न जनमजात हाई क्लास, जनमजात दलित अछूत पिछड़ा विधर्मी बहुजन, ऊ काहे दुलत्ती झाड़ सकै हो, बताव!
हमउ पाद देला के ई जो भेड़ धंसान ह, ई जो गदहा बिरादरी बहुजन ह, शुक्र मानो, हमउ अमन चैन दैवी वंश वर्चस्व की सत्ता बनाये रखे हो। कोनो ख्वाब नइखै। अंखियां ससुरी मरी हुई मछलियां। जुबानो मा तालाबंद। जूठनो अभ्यस्त। आरक्षण कोटा मारामारी। फिर मनुस्मृति शासन मा सत्ता भागीदार । फिन बदलाव वंश वर्चस्व का। फिन रंग बिरंगा सियारो सगरे मसीहा वृंद, पहिले राम फिर केसरिया हनुमान।
देखे ह?उ जौन गधड़ु ह, बौझ ढोवै, लहूलुहान जख्मी, न बल न बुद्धि, न मेधा, न जनमजात हाई क्लास, जनमजात दलित अछूत पिछड़ा विधर्मी बहुजन, ऊ काहे दुलत्ती झाड़ सकै हो, बताव!
दिमाग मा गोबर और दिल तो है ही नहींच। बाकी सब बरोबर। हमउ अंध भक्त। तमाम मसीहा हमउ पैदा किये रही.मनुस्मृति शासन हमउ बहाल किये रही। वैदिकी संस्कृति हमउ बनावैके रखि चाहि। हमउ बजरंगी बिरगेड वानी। हमउ कल्कि अवतार और बाकी सगरे अवतार का कहि मुखमंत्री, उप मुखमंत्री, पधान कमसकम।
देखे ह?उ जौन गधड़ु ह, बौझ ढोवै, लहूलुहान जख्मी, न बल न बुद्धि, न मेधा, न जनमजात हाई क्लास, जनमजात दलित अछूत पिछड़ा विधर्मी बहुजन, ऊ काहे दुलत्ती झाड़ सकै हो, बताव!
अमनो चैन हमरी खातिर।
हम का दुल्लती मारब?
दुल्लती हमरी खातिर राम रचि राखा!
देखे ह?उ जौन गधड़ु ह, बौझ ढोवै, लहूलुहान जख्मी, न बल न बुद्धि, न मेधा, न जनमजात हाई क्लास, जनमजात दलित अछूत पिछड़ा विधर्मी बहुजन, ऊ काहे दुलत्ती झाड़ सकै हो, बताव!
उ सविता बाबू माने नइखै।
ठीक किये रहिस कल्कि अवतार जौन बिररिंच बाबा महाजिन्न टाइटैनिक बाबा एनआरआई एफोडीआई बाबा ह।
महान होवै कै खातिर, पत्नी उत्नी का त्याग जरुरी बा।
दूसरी या दूसरा जौन ना हो तो महानता किस काम की?
दूसरका हम जुगाड़ै न सकै ह। पत्नी प्रेम प्रबल हो। बुड़बक हमउ।
जिस देवभाषा की वकालत वैदिकी संतति शुध रक्त शुध भाखा शुध उच्चारण शुध वर्तनी शुध व्याकरणे के मसीहावृंद करत रहे हो, उ भी पाली संशोधित है जौन बुद्धमय भारत की विरासत ह।
भाषाशास्त्रियों के मुताबिके ण, त ट वर्ग, ड़ और ढ़ जिनसे शुद्धता का सौदर्यशास्त्र, छंद और अलंकार बनते हैं, वे संस्कृत में द्रविड़ शब्द ऐश्वर्य की देन है।
हम तमिल सीख लेते तो संस्कृत और समृद्ध हुई रहती।
कवि जयदेव ने पहली दफा गीत गोविंदम के मार्फत लोक का समावेश किया देवभाषा में तो सारा सत्ता तंत्र बिखरलव बा। दैविकी सत्ता भक्ति आंदोलन हुई रही।
यूं कहें तो गोस्वामी तुलसी दास जो हुई रहे , उ पत्नी की डांट खाइकै जौन कल्कि अवतार के क्वेटो गोआ के चुनांचे कि विश्व की प्राचीनतम सांस्कृतिक राजधानी में आसन जमाकर रम गये और लिख दिहिस रामचरित मानस, तो राम भी लोक में समा गये।
कबीर सूर तुलसी रसखान मीरा दादू लालन तुकाराम चैतन्य महाप्रभु गुरु नानक से लेकर हमारे पुरखों ने देवत्व के स्थान पर संस्कृत में नइखै, ना खड़ी बोली में- बल्कि लोक में इंसानियत का मुकम्मल जहां रचि गये।
जिस इस्लामी शासन को कोसे बगैर हमारा उत्तर आधुनिक धर्म कर्म का हाजतरफा मुशिकलो ह, जान लो वह पीर साधु संत बाउल फकीर का साझा चूल्हा के आगे मुगलिया पठान सल्तनत और मुल्क पर शाही हुकूमत का आत्मसमर्पण है।
सीकरी रही भारी दिल्ली की हुकूमत पर।
अब कल्कि अवतार समां मा सीकरी की शामत ह।
मनुस्मृति माइनस कर दो, वैदिकी कर्मकांड, होम, मंत्र तंत्र, पुरोहित, अस्पृश्यता के गढ़ आउर किले तमाम, मूर्ति पूजा यज्ञ माइनस कर दो और लोक आस्था लोक पर्व और लोक रिवाज बोलियों के मजहब को मान लो तो बाकी यह सनातन हिंदू धर्म या फिर मोहंजोदोड़ो या हड़प्पा है या बुद्धमयभारत, एकच रक्त।