"उसने की पुर्शसे हालात तो मुंह फेर लिया
दिले ग़मगीं के ये अंदाज़ ख़ुदा ख़ैर करे।"
पलाश विश्वास
हमने शायद ही दिलीप कुमार की कोई फिल्म कभी मिस की होगी।
नैनीताल में सत्तर के दशक में आफ सीजन में और खासकर विनाशकारी पौधे की मीसाई अफवाह से जब 19575-77 को दरम्यान नैनीताल उजाड़ हुआ करता था। हम छात्रों की आवास की कोई दिक्कत न होती थी, लेकिन पूरे पहाड़ बेरोजगार मातम मना रहा होता तो अमूमन नैनीताल में होने वाली नई फिल्मों की बहार की बजाय सदाबहार पुरानी फिल्में तीन-तीन हाल में अलग-अलग शो पर दिखायी जाती थीं।
हमने हर हाल में दो-दो के हिसाब से एक ही दिन छह-छह फिल्में देखकर मूक वधिर दिनों के तीस-चालीस दशक से लेकर साठ के दशक की बेशुमार फिल्में और हालीवुड की क्लासिक फिल्में उन्हीं दिनों देखी हैं। तमामो क्लासिक फिल्में नैनीताल के उन बंद हालों में। अंधेरे में गिरदा गैंग की सोहबत में अंधेरे को रोशन करने वास्ते बदलाव के ख्वाब से जिगरा जलाते हुए।
तब हम चिपको के दौर में थे तो गिरदा गैंग आकार भी लेने लगा था और इसी गैंग में थे हमारे प्राचीन मित्र कामरेड राजा बहुगुणा जो माले के बड़का नेता हुए, जैसे इलाहाबाद विवि के छात्र संघ जीतने वाले जुबिली हाल के वाशिंदे अखिलेंद्र भइया।
तीस पैसे के टिकट पर घटी दरों पर। क्लासिक फिल्म।
अब नैनीताल के वे सारे हमारे ख्वाबगाह न जाने कब से बंद हैं, जहां अंधेरे में रोशनी जगाकर हमारी पीढ़ी ख्वाब जगाती थी।
जाहिरा तौर पर हमारे उन ख्वाबों के शहंशाह थे दिलीप कुमार। सदाबहार भारतीय फिल्मों के नायक।
आज फेसबुक वाल पर राजा बहुगुणा के पोस्ट पर दिल में फिर नैनीझील बेताब गहराइयों तलक कि बहुत दिनों से मीडिया ब्लिट्ज ने इस बेहतरीन अदाकार और हर दिल अजीज किनारे कर दिया।
गंगा जमुना में इन्हीं दिलीप कुमार और बैजंती माला ने बिना आधुनिकतम डबिंग और तकनीक के जो बेधड़क भोजपुरी का लोक जगाया, तभी से वही जागर मेरे भीतर खलबलाता है तो भद्रलोक भाखा के बदले अपना अशुध देसी में छंलागा मारकर दौड़ता हूं। डरता नहीं कि कोई टोक दें या फिर ठोंके दें।
शुक्रिया, दिलीप कुमार, जो धर्म से मुसलमान भी हुए, लेकिन हिंदू किरदार निभाने में उनसे उस्ताद कोई दूसरा हो तो बतायें।
गोपी से लेकर हर फिल्म में उनके भजन, नया दौर से लेकर सगीना महतो तक भारतीय भारत तीर्थ की सहिष्णुता और बहुलता का यह हरदिल अजीज मुसलमान है और मीडिया ने उन्हें ऐसे भुलाया है जैसे कि वे शायद इस दुनिया में हों ही नहीं।
शुक्रिया राजा, तूने तो इस चमकदार मीडिया का बाजा दिया बजा।