हमें #रवीशकुमार पर गर्व है
सच्ची बात कहने वाले को सत्ता के दलाल कभी बर्दाश्त नहीं करते
आजकल टेलिविज़न दर्शकों और इंटरनेट मीडिया के ज़रिये सक्रिय लोगों में रवीश कुमार को गाली देने का फैशन चल पड़ा है। समाज के एक असहिष्णु वर्ग को रवीश कुमार सही आदमी नहीं लगते। लेकिन वही रवीश कुमार जब पुराने शासक दल की धज्जियां उड़ाते थे, तो आज उनको गरियाने वाले उनकी तारीफों के पुल बांधा करते थे।
चारणपंथी चापलूसी को पत्रकारिता कहने वाले इन वर्गों को रवीश कुमार को समझने के लिए पत्रकारिता के उस गौरवशाली इतिहास को समझना पड़ेगा, जिसमें बड़े से बड़े हुक्मरानों से पंगा लेना स्वधर्म माना जाता था।
हमें मालूम है कि चंद बरदाई ने पृथ्वीराज का जो गुणगान किया है वह गलत है, हम जानते हैं कि परमाल रासो के कवि जगनिक ने पेट के वास्ते आल्हा ऊदल को महान बताया था। हर दौर में इस तरह के लोग होते हैं। आज भी एक बड़ा वर्ग पेट के वास्ते पत्रकारिता की राह पर चलता है।
हम यह भी जानते हैं कि उस दौर में भी बागी कवि थे, जिनको सत्ता की तलवारों ने मौत के घाट उतार दिया था।
हम जानते हैं जब स्थापित सत्ता के खिलाफ गोस्वामी तुलसीदास ने मैदान लिया था, तो हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने उनको काशी से भगाया था, क्योंकि वे शासक वर्गों की भाषा में नहीं लिखते थे, वे आम आदमी की बोलचाल की भाषा की पक्षधरता करते थे।
हमें मालूम है, कि संत तुलसीदास को भगवान राम की अयोध्या से दुकानदार रामभक्तों ने इसलिए भगाया था कि वे रामचरित को साधारण तरीके से आम आदमी तक पंहुचाते थे और पंडों की बिचौलिया तानाशाही को नुक्सान पहुंचा रहे थे। आज वही संत तुलसीदास भगवान राम और उनकी कथा के सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं।
सच्ची बात कहने वाले को सत्ता के दलाल कभी बर्दाश्त नहीं करते। रवीश कुमार एक कबीरपंथी पत्रकार हैं। उस निर्गुण,जिसे ईमानदार पत्रकारिता कहते हैं, के साधक हैं। मुझे गर्व है कि एन डी टी वी में एक मामूली नौकर के रूप में मैं काम करता था जब रवीश कुमार अपनी पत्रकारिता को धार दे रहे थे. मैंने रवीश कुमार के उस दौर को देखा है जब रवीश नाम की यह फौलाद एक शक्ल अख्तियार कर रही थी। मैंने रवीश कुमार को इतिहास की उन बारीकियों को समझते देखा है जिनके कारण वह अजेय हो जाता है।
रवीश मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हारी लाश को कंधा देने नहीं आऊँगा, मेरी इच्छा है कि अगर यह सत्ता के दीवाने तुम्हें कभी शहीद करें तो वहीं आसपास मेरी भी लाश कहीं पड़ी मिले।
रवीश हमें तुम पर गर्व है। हमने इतिहास की किताबों में देखा है कि किस तरह से मुग़ल सम्राट अकबर के चमचों ने महाराणा प्रताप को घास की रोटियाँ खाने के लिए मजबूर कर दिया था।
हमने देखा है कि किस तरह अंग्रेजों के चमचों ने महात्मा गांधी को अदालत में देशद्रोही साबित कर दिया था। इनकी ताक़त अपरम्पार होती है। इनसे बचकर रहने की ज़रुरत नहीं है। इनको यह बताने की ज़रुरत है कि जब एक गांधी का अपमान होता है तो पूरा देश गांधी के साथ खड़ा होता है।
मुझे गर्व है कि मैंने और तुमने एक ही डेस्क शेयर किया था कभी।
रवीश कुमार का दोस्त होकर मैं अपने को धन्य महसूस करता हूँ।
शेष नारायण सिंह