हवाई राजनीति करने वालों के लिये सन्देश है मायावती की सावधान रैली
हवाई राजनीति करने वालों के लिये सन्देश है मायावती की सावधान रैली
दिल्ली में जितने वोटों पर सरकार बन जाती है उससे ज्यादा लोग आज मायावती की लखनऊ की रैली में मौजूद थे
अंबरीश कुमार
लखनऊ 15 जनवरी। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने आज फिर अपनी वह जमीनी ताकत दिखाई जिसके लिये वे मशहूर हैं। छोटे-मोटे राज्य में जितने वोटों पर सरकार बन जाती है उससे ज्यादा लोग आज मायावती की लखनऊ की रैली में मौजूद थे। यह हवा हवाई राजनीति करने वालों के लिये संकेत भी है और सन्देश भी। मायावती आज भी दालितों की सबसे बड़ी नेता हैं और उन्हें दालितों की राजनीति में कोई दूर तक चुनौती देने वाला दिखता भी नहीं। आज जिस मैदान में बसपा ने रैली की उसे भर पाना सिर्फ मायावती के ही बस का है। बावजूद इसके मुख्यधारा के किसी भी बड़े चैनल ने देश की इस सबसे बड़ी रैली का लाइव कवरेज नहीं किया वे किसी 'बिन्नी' में व्यस्त थे। यह मीडिया का वह चरित्र है जिसे लेकर क्षेत्रीय दल सवाल उठाते रहते हैं और आज मायावती ने भी उठाया।
मायावती की रैली में भारी भीड़ आई और उन्होंने अपने काडर को उभरती हुयी नई राजनीति से सावधान भी किया खासकर दलित के सवाल पर। उन्होंने केजरीवाल का नाम लेकर हरियाणा का उदाहरण दिया और वहाँ पर दालितों से होने वाले भेद-भाव का हवाला भी। दिल्ली के चुनाव में आप पार्टी ने बसपा का जिस तरह वोट काटा उससे मायावती भी सावधान हुयी हैं। मायावती बहुत ही सामान्य भाषा में अपने काडर से संवाद करती हैं और वह उनकी बात को सर माथे पर लेता है। मायावती ने आज की रैली से मुख्य रूप से तीन चार सन्देश देने का प्रयास किया है। जिसमें पहला सन्देश प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार को कई मोर्चे पर नाकाम बताना तो दूसरा मोदी पर हमला करके मुस्लिम मतदाताओं को रिझाना था। इसके बाद मायावती के खुद के सुशासन का हवाला था तो अन्तिम सन्देश आप पार्टी से काडर को सावधान करना था ताकि लोकसभा चुनाव में वे किसी लहर में ना बह जायें।
उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद मुस्लिम समुदाय आक्रोश में है और इसे लेकर अबतक कांग्रेस उन्हें अपनी ओर खींचने के प्रयास में थी पर कामयाब नहीं हो पायी। अब मायावती मुस्लिम बिरादरी को सन्देश दे रही हैं कि उनके राज में ही मुसलमान सुरक्षित था सपा के राज्य में तो आए दिन दंगे हो रहे हैं। इसी से जुड़ा कानून व्यवस्था का मुद्दा भी उन्होंने पूरी ताकत के साथ आज उठाया और राष्ट्रपति शासन लगाने की माँग दोहराई।
मायावती की दिक्कत यह है कि दलित वोट का बड़ा हिस्सा साथ होने के बावजूद अगड़ी जातियों का कोई हिस्सा उनके साथ नहीं खड़ा हो पा रहा है जिससे लोकसभा चुनाव में किसी बड़ी जीत का समीकरण बन नहीं पा रहा है। पर जहाँ सपा और बसपा अठारह बीस फीसद से अपनी चुनावी राजनीति शुरू करती है वही भाजपा कांग्रेस की यह शुरुआत पाँच- सात फीसद से होती है। इसीलिये सपा, बसपा मीडिया की किसी हवा के बावजूद अपनी ताकत दर्शाती हैं। पिछले विधान सभा चुनाव में भी मीडिया का बड़ा हिस्सा सपा को सत्ता की राजनीति से बाहर किये हुये था तो उससे पहले के चुनाव में मायावती के सत्ता में लौटने की आहट किसी को सुनाई नहीं पड़ रही थी। ऐसे में मीडिया के आकलन से उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझना मुश्किल है।
मायावती की आज की सावधान रैली से यह तो साफ़ हो गया कि उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में बसपा एक बड़ी ताकत के रूप में ही सामने आयेगी। शहरी वोटों के एक हिस्से को छोड़ दें तो अभी भी गाँव कस्बे की राजनीति में जाति की गोलबंदी फिलहाल टूटने नहीं जा रही है और उनका राजनैतिक व्यवहार वैसा ही रहेगा जैसा पिछले चुनाव में था। वैसे भी जब शुचिता की दुहाई देने वाली आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास अपने को ब्राह्मण चाणक्य का वंशज बता रहे हो तो दलित पिछड़ों से जाति विहीन समाज की अपेक्षा रखना तो उचित नहीं है। जिन्हें कुछ दशक पहले तक सत्ता की राजनीति से दूर रखा गया था। ऐसे में पन्द्रह बीस लाख दालितों का जमावड़ा बदलाव का क्या राजनैतिक सन्देश दे रहा है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है।


