हिंदी दिवस पर अपने जीवन की लड़ाई हार गए हिंदी के सिपाही कौशलेंद्र प्रपन्न
हिंदी दिवस पर अपने जीवन की लड़ाई हार गए हिंदी के सिपाही कौशलेंद्र प्रपन्न

खबर मिली कि कौशलेंद्र प्रपन्न (Kaushlendra Prapanna) अपने जीवन की लड़ाई हार गए। शिक्षा में सुधार के लिए लेख लिखना उन्हें जीवन पर भारी पड़ा। उनका लेख था कि दिल्ली नगर निगम के शिक्षक चाह कर भी क्यों नहीं पढ़ा पाते। यह लेख सिर्फ उस व्यवस्था पर टिप्पणी था जिसके चलते अच्छे शिक्षक कक्षा में पढ़ा नहीं पाते हैं।
यह बात दिल्ली नगर निगम में बैठे कुछ उन लोगों को पसंद नहीं आई जिन्हें विचार नवाचार से परहेज नफरत है वह सारी दुनिया को तो पुराण काल का ही बनाना चाहते हैं।
उन्हें नवाचार और विचारों से परहेज है ऐसे लोगों ने एक शब्द वीर, शब्द के लिए संघर्ष करने वाले, शिक्षा को बदलाव का एक मूल आधार मानने वाले कौशलेंद्र की हत्या की है। वह भी हिंदी दिवस की तिथि पर।
कौशलेंद्र हिंदी के एक सिपाही थे, हिंदी के संरक्षक थे।
आज हिंदी दिवस के किसी आयोजन में जाने से पहले अपने सामने कौशलेंद्र की लाश की कल्पना करना और हत्यारे के रूप में फासिस्टों की कल्पना करना जिन्हें विचारों से, शब्दों से, नवाचार से, बदलाव से परहेज है। ऐसे हिंदी दिवस में आज मत जाना।
मैं बहुत शर्मिंदा हूं इस समाज में आज बहुत दुख है दिल से दुख है।
पंकज चतुर्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनकी एफबी टिप्पणी साभार)


