जब भी आप इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने का प्रयास करेंगे तो हमें एक अख़लाक़ की लाश मिलेगी
मोदी के सत्ता सँभालने पर हिंदुत्व के महारथी अब खुलकर गालीगलौज पर उत्तर आये हैं
मुसलमान इस वक़त ब्राह्मणवाद को बचाने और बनाने के लिए सबसे बड़ा हथियार हैं।
विद्या भूषण रावत
उत्तर प्रदेश में पिछले बीस वर्षो में नोएडा सभी सरकारों के लिए 'धन उगाही ' का एक बेहतरीन अड्डा बन गया है। देश के सभी बड़े टीवी चैनल्स के बड़े-बड़े स्टूडियोज और दफ्तर यहाँ हैं, कई समाचार पत्र भी यहाँ से प्रकाशित हो रहे हैं और बड़ी बड़ी कम्पनियों के कार्यालय भी यहाँ मौजूद हैं। शॉपिंग माल्स, सिनेमा हॉल्स, बुद्धा इंटरनेशनल सर्किट, आगरा एक्सप्रेस हाईवे और क्या नहीं।
नोएडा, उत्तर प्रदेश की 'समृद्धता' का 'प्रतीक' बताया जाता है, ठीक उसी प्रकार से जैसे गुडगाँव की ऊंची इमारतें और लम्बे चौड़े हाइवेज देखकर हमें बताया जाता है कि हरयाणा में बहुत तरक्क़ी हो चुकी है। लेकिन महिलाओ और दलितों पर हो रहे अत्याचार बताते हैं कि मात्र नोट आ जाने से दिमाग नहीं बदलता और आज भारत को आर्थिक बदलाव से अधिक सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव की जरूरत है। बिना सांस्कृतिक बदलाव के कोई भी राजनैतिक और आर्थिक बदलाव एक बड़ी बेईमानी है और हम उसका नतीजा भुगत रहे हैं।
अभी स्वचछ भारत और सशक्त भारत के नारे केवल विदेशो में रहने वाले भारतीयों और देशी अंग्रेजो को खुश करने की जुमलेबाजी हैं, हालाँकि प्रयास पूरा है कि 'भारतीय' नज़र आएं और इसलिए संयुक्त राष्ट्र महासभा को भी बिहार की चुनाव सभा में बदलने में कोई गुरेज नहीं है। जुमलेबाजी केवल इन सभाओ में नहीं है अपितु दुनिया भर में इवेंट मैनेजमेंट करके उसको 'बौद्धिकता' का जामा पहनाया जा रहा है ताकि जुमलों को ऐतिहासिक दस्तावेज और आंकड़ों की तरह इस्तेमाल कर अफवाहों को बढ़ाया जाए और मुसलमानों को अलग-थलग किया जाए ताकि दलित पिछड़े सभी हिन्दू बनकर ब्राह्मण-बनिए नेतृत्व के अंदर समा जायें।
मोदी के सत्ता सँभालने पर हिंदुत्व के महारथी अब खुलकर गालीगलौज पर उत्तर आये हैं और इसके लिए उन्होंने कई मोर्चे एक साथ खोल लिए हैं। उद्देश्य है अलग-अलग तरीके से विभिन्न जातियों को बांटा जाए और जरूरत पड़े तो उन्हें मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाए। मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया जाए और पाकिस्तान, इस्लाम आदि के नाम पर मुसलमानों पर दवाब डाला जाए। दूसरी ओर आरक्षण को लेकर दलितों और पिछड़ों को बदनाम करने वाली बातें और आलेख टीवी और प्रिंट मीडिया में छापे जाएँ। जातिगत आंकड़ों की बात करने वालो को जातिवादी घोषित कर दिया जाए, ताकि 'ब्राह्मणवादी' 'सत्ताधारी अपनी जड़े मज़बूत कर सकें।
सत्ता में आने पर संघ ने दलित पिछड़ों के दो चार नेताओं को कुछ दाना तो फेंका पर सत्ता पर ब्राह्मण, बनियों का बर्चस्व इतना पहले कभी नहीं था जितना आज है।
सबसे पहले चालाकी थी जनसँख्या के आंकड़ों को धार्मिक आधार पर प्रकाशित करना और उसके जरिये मुस्लिम आबादी के बढ़ने को दिखाकर गाँव-गाँव उस पर बहस चलाने की कोशिश करना, जब कि पूरे देश में दलित-पिछड़े और आदिवासी जनसंख्या के आंकड़ों को जातीय आधार पर प्रकाशित करने की बात कर रहे थे और उसके विरूद्ध आंदोलन कर रहे थे ?
आखिर जनसँख्या के आंकड़े जातीय आधार पर न कर धार्मिक आधार पर क्यों किये गए ? मतलब साफ़ है। संघ के ब्राह्मण बनिए अल्पसंख्यक, धर्म के आधार पर ही बहुसंख्यक होने का दावा कर दादागिरी कर सकते हैं, क्योंकि जाति के आधार पर उनकी गुंडई हर जगह पर नहीं चल पाएगी और बहुसंख्यक होने के उनके दावे की पोल खुल जायेगी। इसलिए मैं ये बात दावे से कह रहा हूँ कि भारत के हिन्दू राष्ट्र बनने से सबसे पहले शामत इन्ही जातियों की आ सकती है इसलिए वे हिन्दू राष्ट्र का शोर मुसलमानों के खिलाफ ध्रुवीकरण और ब्राह्मण बनिए वर्चस्व को बरक़रार करने के लिए करेंगे।
हकीकत यह है के मुसलमानो पर हमले होते रहेंगे ताकि उनके दलित विरोधी, आदिवासी विरोधी और पिछड़ा विरोधी नीतियों और कानूनों पर कोई बहस न हो। संघ प्रमुख ने आरक्षण पर हमला कर दिया है और ये कोई नयी बात नहीं है कि साम्प्रदायिकता के अधिकांश पुजारी सामाजिक न्याय के घोर विरोधी हैं और उनका ये चरित्र समय-समय पर दिखाई भी दिया है। 1990 के मंडल विरोधी आंदोलन को हवा देने वाले लोग ही राम मंदिर आंदोलन के जनक थे।
आखिर ये क्यों होता है कि संघ परिवार का हिन्दूवाद दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के अधिकारों को लेकर हमेशा से शक के घेरे में रहा है। ये कब हुआ कि संघ के लोगों ने छुआछूत, जातिप्रथा, दलितों पे हिंसा, महिला उत्पीड़न, दहेज़, आदिवासियों के जंगल पर अधिकार और नक्सल के नाम पर उनका उत्पीड़न के विरुद्ध कभी कोई आवाज उठाई हो। उलटे इनका आरक्षण उनके दिलों को कचोटता रहता है।
आज तक मोहन भगवत ने ब्राह्मणों के लिए मंदिरों में दिए गए आरक्षण को ख़त्म करने की बात नहीं की है। क्या सारे ब्राह्मण संस्कृत के प्रकांड विद्वान हैं ? क्या मंदिरों में पुजारी होने के लिए उनका ज्ञानवान होना जरुरी है या ब्राह्मण होना। मेरिट का तर्क ब्राह्मणों पर क्यों नहीं लगता। लेकिन क्योंकि ब्राह्मणों को मंदिरो में आरक्षण और अन्य ऐताहिसिक सुविधाएं ब्रह्मा जी की कारण मिली हुई हैं इसलिए भारत का कानून उसके सामने असहाय नजर आता है। दूसरी ओर दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को आरक्षण भारतीय संविधान ने दिया है इसलिए ब्रह्मा के भक्त इस संविधान से खार खाए बैठे हैं। दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को केवल 'गिनती' के लिए हिन्दू माना जा रहा है।
हम सवाल पूछते हैं कि सरकार भूमि अधिग्रहण बिल को क्यों इतनी जोर-शोर से लागू करना चाहती है। क्या सरकार इतने वर्षों हुए आदिवासी उत्पीड़न और बेदखली पर कोई श्वेत पत्र लाएगी ? क्या ये बताएगी कि नक्सलवाद के नाम पर कितने आदिवासियों का कत्लेआम हुआ है और कितने लोग अपने जंगल और जमीन से विस्थापित हुए हैं। उस सरकार से क्या उम्मीद करें जो सफाई के नाम पर इतनी बड़ी नौटंकी कर रही है, लेकिन मैला ढोने वाले लोगों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार, अत्याचार, छूआछूत पर मुंह खोलने को तैयार नहीं। क्या सफाई अभियान भारत में व्याप्त व्यापक तौर पर हो रहे मानव मल ढोने के कारण हिन्दू समाज के वर्णवादी नस्लवादी दैत्य रूप को छुपाने की साजिश तो नहीं है।
भगाना के दलितों ने अत्याचार से परेशान होकर इस्लाम कबूल कर लिया, लेकिन वो रास्ता भी अधिकांश स्थानों पर बंद कर दिया गया है। धर्मान्तरण के कारण न तो दलितों को नौकरी में आरक्षण मिलेगा और न ही अन्य सरकारी योजनाओं में उनके लिए कोई व्यवस्था होगी। ऊपर से संघ के ध्वजधारी धर्मान्तरण को लेकर अपना हिंसक अभियान जारी रखेंगे।
इसलिए जब भी आप इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने का प्रयास करेंगे तो हमें एक अख़लाक़ की लाश मिलेगी। क्योंकि आज दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के हकों की लड़ाई से ध्यान बँटाने के लिए हमें मुसलमानों की संस्कृति और उनकी संख्या का भय दिखाया जाएगा और यह बड़ी रणनीति के तहत हो रहा है। छोटे कस्बों और गाँव में अफवाहों के जरिये दलितों और पिछड़ों को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करो।
दादरी की घटना कोई अकेली घटना नहीं है और ये अंत भी नहीं है। जिस संघ परिवार ने अफवाहों के जरिये दुनिया भर में गणेश जी को दूध पिलवा दिया वो आज फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सऐप के जरिये अपनी अफवाहों को फ़ैला रहा है।
दादरी में अखलाक़ के मरने को हादसा बताकर वहाँ के सांसद और केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने प्रशासन को पहले ही आगाह कर दिया कि हिंदुत्व के आतताइयों के विरूद्ध कोई कदम उठाने की कोशिश न करें। और याद रहे इस प्रकार की अफवाहें फैलाकर दंगे फ़ैलाने का कार्यक्रम चलता रहेगा।
कल हमीरपुर की घटना में एक 90 वर्षीया दलित को मंदिर प्रवेश करने पर जिन्दा जला दिया गया और शंकराचार्य और हिंदुत्व के ध्वजधारी शासक चुप हैं। जो व्यक्ति सेल्फ़ी और ट्विटर के बगैर जिंदगी नहीं जी सकता वो दलितों पर बढ़ रहे हिन्दू अत्याचार पर लगातार खामोश रहा रहा है। एक भारतीय नागरिक को जिसका बेटा एयरफोर्स में कार्यरत है लोग उसके घर के अंदर मार देते हैं और हमारे संस्कृति के ध्वजवाहक हमसे कहते हैं इसका 'राजनीतिकरण' न करें। खाप पंचायतें देश भर में अंतर्जातीय विवाहों के विरोध में हैं क्योंकि इसके कारण से जातीय विभाजन कम होंगे और ब्राह्मणीय सत्ता मज़बूत रहेगी इसलिए संघ और उसके कोई भी माननीय बाबा या दार्शनिक ने कभी भी छुआछूत और जातीय उत्पीड़न के विरुद्ध कुछ नहीं कहा अपितु उन्होंने ऐसी बातों को सामाजिक परम्पराओं के नाम पर सही साबित करने के प्रयास किये हैं।
आज देश आराजकता की ओर है और हिंदुत्व के ये लम्बरदार साम दाम दंड भेद इस्तेमाल करके भारत में धार्मिक विभाजन करना चाहते हैं ताकि उनकी जातिगत सल्तनत बची रहे। मुसलमान इस वक़त ब्राह्मणवाद को बचाने और बनाने के लिए सबसे बड़ा हथियार हैं। उनके नाम पर अफवाहें फैलाओ और राजनीति कि फसल काटो, लेकिन ये देश के लिए बहुत खतरनाक हो सकती है। इन्हें नहीं पता कि इन्होंने देश और समाज का कितना बड़ा नुक्सान कर दिया है। सैकड़ो सालों से यहाँ रहने वाले लोगों ने जिन्होंने इस देश को अपनाया आज अपने ही देश में बेगाने महसूस कर रहे हैं।
समय आ गया है कि हम अपने दिमाग की संकीर्णताओं से बाहर निकलें और ये मानें कि हमारे खान, पान, रहन सहन, प्रेम सम्बन्ध इत्यादि हमारी अपनी व्यक्तिगत चाहत है और सरकार और समाज को उसमे दखलंदाजी का कोई हक़ नहीं है। मतलब ये कि यदि अख़लाक़ बीफ भी खा रहा था तो उसको दण्डित करने का किसी की अधिकार नहीं, क्योंकि अपने घर के अंदर हम क्या खाते हैं और कैसे रहते हैं, ये हमारी इच्छा है। क्या हिंदुत्व के ये ठेकेदार तय करेंगे कि मुझे क्या खाना है और कहाँ जाना है, कैसे रहना है। सावधान, ऐसे लोगों के धंधे चल रहे हैं और उन पर लगाम कसने की जरूरत है। भारत को बचाने की जरूरत है क्योंकि ये घृणा, द्वेष देश को एक ऐसे गली में ले जाएगा जिसका कोई अंत नहीं।
अखलाक़ को मारने के लिए दस बहाने ढूंढ निकाले गए और कहा गया राजनीति न करें परन्तु ये जातिवादी सनातनी ये बताएं हमीरपुर में एक दलित के मंदिर प्रवेश पर उसे क्यों जिन्दा जला दिया गया, उसका कोई बहाना है क्या ?
ऐसा लगता है कि हिंदुत्व के महारथियों के लिए तालिबान, इस्लामिक स्टेट और साउदी अरब सबसे अच्छे उदहारण हैं जो विविधता में यकीं नहीं करते और जिन्होंने असहमति को हिंसक कानूनों के जरिये कुचलने की नीति अपनायी है। भारत जैसे विविध भाषाई, धार्मिक और जातीय राज्य में इस प्रकार की रणनीति कब तक चलेगी ये देखने वाली बात है लेकिन ये जरूर है कि लोकतंत्र में ब्राह्मणवाद के जिन्दा रहने के लिए मीडिया और तंत्र की जरुरत है और वह उसका साथ भरपूर तरीके से दे रहा है, इसलिए इन सभी कुत्सित चालों का मुकाबला हमारे संविधान के मूलचरित्र को मजबूत करके और एक प्रगतिशील सेक्युलर वैकल्पिक मीडिया के जरिये ही किया सकता है।
ये सूचना का युग है और हम ऐसे पुरातनपंथी ताकतों का मुकाबला उनकी वैचारिक शातिरता को अपनी बहसों और वैकल्पिक प्लेटफॉर्म्स के जरिये ही कर सकते हैं और इसलिए जरूरी है कि हम चुप न रहें और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखें, चाहे उसमें हमारी जाति बिरादरी या धर्म का व्यक्ति क्यों न फंसा हो। वैचारिक अनीति का मुकाबला वैचारिक ईमानदारी से ही दिया जा सकता है जो हमारे समाज के अंतर्विरोधों को समझती हो और उन्हें हल करने का प्रयास करे न कि उनमें घुसकर अपनी राजनीति करने का।
ये सबसे खतरनाक दौर है और हर स्तर पर इसका मुकाबला करना होगा। अफवाहबाजों से सावधान रहना होगा और संवैधानिक नैतिकता को अपनाना होगा क्योंकि केवल जुमलेबाजी से न तो बदलाव आएगा और न ही पुरातनपंथी ताकतों की हार होगी। दलित पिछड़ी मुस्लिम राजनीति के लम्बरदारों को एक मंच पर आने के अलावा कोई अन्य रास्ता अभी नहीं है क्योंकि इस वक़त यदि उन्होंने सही निर्णय नहीं लिए और जातिवादी ताकतों के साथ समझौता किया तो भविष्य की पीढ़िया कभी माफ़ नहीं करेंगी।
विद्या भूषण रावत
विद्या भूषण रावत, लेखक मानवाधिकार कार्यकर्ता व अंबेडकरवादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं।