हिंदुस्तान में हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे तो कश्मीर में सेक्युलर राज्य की कल्पना न करें
हिंदुस्तान में हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे तो कश्मीर में सेक्युलर राज्य की कल्पना न करें
अशोक कुमार पाण्डेय
47 में विभाजन के समय सरदार पटेल कश्मीर को पाकिस्तान को देने के लिए सहमत थे। राजा हरि सिंह अपनी संप्रुभता बचाना चाहते थे बस और अपने प्रधानमंत्री (जो कि एक कश्मीरी पंडित थे) के माध्यम से लगातार पाकिस्तान के संपर्क में थे। पटेल का तर्क स्पष्ट था कि मुस्लिम बहुल इलाक़ा पाकिस्तान को मिले।
नेहरू और शेख साहब चाहते थे यह हिंदुस्तान में रहे।
नेहरू सिद्ध करना चाहते थे कि भारत एक लोकतांत्रिक और सेक्युलर देश है। एक मुस्लिम बहुल इलाके का इसमें सम्मान से होना हमारे लोकतांत्रिक रूप को एक नई ऊंचाई दे रहा था।
इसीलिए संप्रभुता राजा को नहीं दी गई बल्कि 370 के माध्यम से स्वायत्तता जनता को दी गई।
आप ने उसकी स्वायत्तता का लगातार अपमान किया तो उससे किसी राष्ट्रभक्ति की उम्मीद कैसे करते। शेख साहब की गिरफ्तारी से लेकर श्रीनगर की चाभी दिल्ली में रखने की तमाम कोशिशों के बाद आपने वहाँ लोकतांत्रिक प्रतिरोध के सारे स्पेस ख़त्म कर दिए। चुनावों को मज़ाक बना दिया।
बलराज पुरी एकदम सही लिखते हैं कि अगर यहाँ अलग अलग डेमोक्रेटिक स्पेस पनपने दिए जाते तो यह हाल नहीं होता। बाक़ी राज्यों की तरह लोग अपना गुस्सा चुनाव में निकाल पाते। बचा खुचा काम सेना को भेज कर कर दिया। दुश्मनों से लड़ने को ट्रेंड सेना ने उन्हें वैसे ही ट्रीट किया और वे बन ही गए दुश्मन। पाकिस्तान को फायदा उठाना ही था।
दुलत को पढ़िए कभी। अपनी ही गुप्तचर एजेंसी के पूर्व चीफ की बातें सुनिए ज़रा।
घर के बच्चे की हर ग़लती का जवाब थप्पड़ देंगे तो वह भी विद्रोही हो जाएगा, यहाँ तो एक खुद्दार क़ौम थी। हालात ऐसे बने कि सदियों से साथ रह रही कौमें भी दुश्मन हुईं।
कश्मीरी पंडितों ने चुना हिन्दू महासभा का रास्ता। उसका सहारा मेनलैंड हिंदुस्तान के हिन्दू बहुसंख्यक थे। वह भयानक हादसा हुआ जिसने घाटी की डेमोग्राफी बदल दी। जम्मू में मुसलमानो का क़त्लेआम उसे हिन्दू बहुल बना चुका था। घाटी से पंडितों के exodus ने उसे पूरी तरह इस्लामिक स्पेस बना दिया।
मत भूलिए धर्म पीड़ित मानवता की आह है
हाँ है वह आंदोलन अब धार्मिक। मत भूलिए धर्म पीड़ित मानवता की आह है। कहाँ बचा है किसी प्रगतिशील आंदोलन के लिए स्पेस वहाँ? जब कोई सहारा न बचा तो धर्म सहारा बना। बन्दूक और धर्म की जोड़ी वैसे भी सहज होती है। वह लैटिन अमेरिका नहीं था तो उत्पीड़नों ने वहां यासीन मलिक पैदा तो किये पर दो देशों ने मिलकर जिसे नेता बना दिया वह गिलानी था मलिक नहीं।
आज़ादी की मांग को हरे झंडों पर आना था।
नहीं जानता कल क्या होगा लेकिन इधर या उधर सब अन्धेरा दिखता है। पाकिस्तान जीते या भारत हारेगा कश्मीर। मुझे अफगानों का आना याद आता है वहां। चक सुल्तानों से थकी प्रजा ने अफगानों को बुलाया अपने यहाँ शासन करने। अफगानों के अत्याचार से ऐसी त्राहि माम मची कि चक बेहतर लगने लगे। फिर मुगल सिख डोगरा 47 ... शान्ती और समृद्धि जैसे मृगतृष्णा बन गई है कश्मीर के लिए..
दे लीजिये गालियां,कह लीजिये उन्हें फैनाटिक और देशद्रोही, पाकिस्तान परस्त भी। और भी जो चाहे। पर यहाँ से वहाँ को यूपी या बिहार समझ गालियां बरसा के हल कुछ नहीं होने वाला। हल तो गोलियों से भी क्या हो रहा है।
और हाँ हिंदुस्तान में हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे तो कश्मीर में किसी सेक्युलर राज्य की कल्पना नहीं कर सकते।
#कश्मीर_कथा #कश्मीर_नामा
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