पलाश विश्वास
ईमानदारी की छवि दांव पर है लेकिन महिषासुर मर्दिनी को उनके चक्षुदान करने के बाद अभी बंगाल में अवकाश और उत्सव का सिलसिला दिवाली तक जारी रहना है। बहुत कोफ्त हो रही थी कि दुर्गोत्सव के नाम पर खबरें बिल्कुल पोत दी गयी कार्निवाल कालर में और पूरा बंगाल थोक रिटेल मार्केट में बदल गया।
बंगाल में सारे अखबार बंद थे। आज अखबार प्रकाशित हुए। टीवी चैनलों पर उत्सव का माहौल। आज से समाचारों का स्पेस खुला। लेकिन सुबह अखबारों में हमेशा की तरह जनसमस्याएं गायब और जनता के सारे मुद्दे गायब, धार्मिक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का फुल तड़का देखकर बहुत कोफ्त इस बात को लेकर हुई कि आखिर हम अखबार देखने से बाज क्यों नहीं आते और इन विज्ञापनी वियाग्रा विकाससूत्रों की हमें क्योंकर जरूरत है।
टीवी चैनल पर पैनल लौट आये हैं।
राष्ट्रीय चैनलों पर धर्म, ज्योतिष, सेक्स, खेल, सोप कार्निवाल के साथ सत्ता राजनीति की मारकाट के युद्धक आयोजन है तो बंगाल में सारे मुद्दे किनारे रखकर बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में मुसलमानों के आतंकवादी बनाये जाने की खबरें और मुहिम अखबारों से बढ़-चढ़कर है।
ईटेलिंग की महिमा से साड़ी, गहना, मोबाइल से लेकर किराना और मछली सब्जी, खुदरा बाजार भी बेदखल हो गया है।
कंपनियां जो इंडिया इंकारपोरेशन में नहीं हैं, जिनका विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से साझा नहीं है, उनका भी दफा रफा।
हम शुरू से लिखते रहे हैं कि अब मृत्युजुलूस हमारे खुदरा बाजार से निकलने वाला है और कृषि के बाद व्यवसाय से बेदखल कर रही है आम जनता को, छोटे और मंझोले कारोबारियों को बनियों की यह बिजनेस फ्रेंडली सरकार।
अमेजन, स्नैपडील, फ्लिपकार्ट के बड़बोले दावों, छूट के छलावा में फंसती जा रही है जनता तो त्योहारी सीजन में बड़ी पूंजी को छोड़कर हर तरह का कारोबार संकट में है।
फ्लिपकार्ट वैब क्रैश फ्लिप कार्ट का पर्दाफाश नहीं है लेकिन, यह खुदरा कारोबार की मौत की घंटी है। उपभोक्ता भारत के डिजिटल देश में फिजिकल खुदरा बाजार में मांग का अवसान है यह।
यही वह हीरक चतुर्भुज बहुराष्ट्रीय है। जिसके हर मोड़ पर मौत दबे पांव कटखने भेड़ियों की तरह घात लगाकर बैठी है।
त्योहारी सीजन का दूसरा बड़ा उपहार प्रीमियम रेलवे टिकट है।
रेलवे के निजीकरण के बाद बुलेट ट्रेन देने का सपना दिखा रही सरकार ने रेल किराये का विनियंत्रण कर दिया है और अब रेलवे टिकट एडवांस खरीदने पर वास्तविक यात्रा के वक्त बदले हुए किराये के साथ अतिरिक्त भुगतान के लिए भी तैयार रहें।
पेट्रोल, डीजल, चीनी के बाद अब बाजार के सारे मूल्य प्रतिमान विनियंत्रित होने हैं और जयजयकार सत्तावर्ग की क्रयशक्ति की।
आम जनता के लिए आस्था में जिंदगी और भगदड़ में मौत के अलावा प्राकृतिक जीवन कुछ भी बचा नहीं है।
इसीलिए धर्मोन्मादी कार्निवाल में धर्मोन्मादी ध्रुवीकरण।
इसीलिए बदनाम गुजरात और असम के बदले बंगाल में यह खतरनाक आत्मघाती खेल।
नब्वे फीसद अरण्य सारे कायदे कानून और भारतीय संविधान को कारपोरेट हवाले करके जनता से बेदखल किये जाने हैं तो बाकी सारे संसाधनों से हाथ धोने वाली है जनता।
रोजी रोटी से हाथ धोकर रोज रोज मंहगाई और भुखमरी के आलम में मर मरकर जीने वाली है जनता।
देशभक्त नागरिक बतौर हमें कानून के राज में पूरी आस्था है। हम न लालू की जेल यात्रा पर रोये और न हम जयललिता के लिए आंसू बहा रहे हैं जबकि तमिल जनता की भावनाओं का हम पूरा सम्मान करते हैं।
कानून को कानून का काम करने देना चाहिए।
ऐसा लेकिन हो नहीं रहा है।
बंगाल में हर चैनल पर, हर अखबार में दावे के साथ अलकायदा और जिहाद के नेटवर्क में बंगाल के मुसलमानों की व्यापक भागेदारी का किस्सा है। एक इंच स्पेस, सिंगल बाइट को भी बेजां जाने नहीं दिया जा रहा है। जबकि हिंसा, बम विस्फोट और खून की नदियां बंगाल में सत्ता समीकरण और वोट बैंक पोषण के अनिवार्य अंग है।
जिस मकान की दूसरी मंजिल पर अलकायदा और जिहाद का कारखाना रहा है और जहां बम विस्फोट हुआ, उसी मकान की पहली मंजिल पर सत्तादल का कार्यालयबम विस्फोट से पहले से मौजूद रहा है। तो क्या अलकायदा और जिहादियों का यह नेटवर्क सत्तादल के संरक्षण के बिना चल सकता है, यह सवाल मौजूं है। लेकिन राजनीतिक भूमिका की जांच पड़ताल किये बिना जिस तरह बंगाल में वर्दमान के एक कस्बे पूर्वस्थली में एक बम विस्फोट के मामले को नाइन एलेविन और इलेविन नाइन बतौर पेश करके जांच पूरी होने से पहले इसे धर्मोन्मादी चेहरा दिया जा रहा है, वह भारतीय लोकतंत्र, नागरिक और मानवाधिकार के लिए बेहद चिंताजनक है।
यूपी, गुजरात और महाराष्ट्र में तो ऐसा पहले से होता रहा है। लेकिन बंगाल में ऐसा तब हो रहा है जबकि छात्र आंदोलन में शाहबाग और जादवपुर एकाकार है, जबकि इस उपमहाद्वीप की युवाशक्ति सीमाओं के आर पार न्याय, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए साथ-साथ समांतर तरीके से सड़कों पर मानव बंधन रच रही है। तब यह धर्मोन्मादी रंगरोगन है जबकि शाहबाग और जादवपुर दोनों अराजनीतिक आंदोलन के मार्फत कट्टरपंथ के विभिन्न धड़ों को हमशक्ल मेले में बिछुड़े मौसेर भाई बताकर उन्हें एक ही रस्सी पर फांसी देने का नारा बुलंद करने लगी है।
इसी बीच, बांग्लादेश में हसीना के तख्ता पलट की हरसंभव कोशिशें जारी हैं। सीमापार भी सांप्रदायिक उन्माद भड़काये जाने की साजिशें चल रहीं हैं। तसलीमा नसरीन पर हैदराबाद में दो साल पहले हुए मुस्लिम कट्टरपथियों के हमले को हिंदुत्ववादियों का हमला बताकर तसलीमा के अश्लील चरित्र हनन के साथ बांग्लादेश के मुसलमानों को बदले के लिए उकसाया जा रहा है।
राममंदिर आंदोलन को शौचालय आंदोलन में बदलकर जनता से सीधे कनेक्ट करने की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल का इस तरह जवाब दिया जा रहा कि धर्मस्थल आंदोलन न सही, भारत के सारे विधर्मियों को राष्ट्रद्रोही साबित करा दिया जाये और यह मुहिम कल तक प्रगतिशील वाम आंदोलन के गढ़ बंगाल में चल रही है।
ममता बनर्जी ने जादवपुर में पुलिस बुलाकर एक मुश्त नंदीग्राम और रवींद्र सरोवर दोहराने वाले अस्थाई उपकुलपति को अब पूजा अवकाश की आड़ में स्थाई बना दिया है। पूजा के दौरान भी होक कलरव की गूंज थी। गूंज थी इस नारे की भी, इतिहासेर दुटि भूल, सीपीएम और तृणमूल। गिरफ्तारियां जारी हैं और अवकाश के बाद इस पार-उस पार सम्मिलित छात्र युवाशक्ति का लोकतंत्र, न्याय, समता, धर्म निरपेक्षता का आंदोलन फिर तेज होनेवाला है।लेकिन इस मामले में राजनीति न ममता के खिलाफ गोलबंद है और न छात्रों के हक में मोर्चाबंद है।
शारदा समूह का पैसा बंगाल की सत्ता राजनीति ने जमायत हिफाजत तक हसीना का तख्ता पलट करके वहां कट्टरपंथी इस्लामी गठबंधन के हवाले करने के लिए जो भेजा, आतंकी उग्रवादी संगठनों की मदद की, जो राष्ट्रद्रोही हरकतें हुई, उसके विरुद्ध वाम दक्षिण राजनीति में सन्नाटा है। लेकिन सारा जोर बंगाल और बांग्लादेश के बंगाली साझा भूगोल की मुसलमान आबादी को राष्ट्रद्रोही और आतंकवादी साबित करने की है। अगर वे हैं तो तहकीकात के तहत उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले, इसमें दो राय नहीं हो सकती।
लेकिन कुछ भी साबित होने से पहले अंधेरे में तीर छोड़कर बेगुनाहों को लहूलुहान करने के इस खतरनाक केल का असली मकसद शारदा सीबीआई जाल में फंसी बड़ी मछलियों से आम जनता औरकानून व्यवस्था, जांच एजंसियों का ध्यान बंटाने का कोई वैज्ञानिक करिश्मा नहीं है, ऐसा दावे के साथ कहा नहीं जा सकता।
इसके अलावा सत्ता की राजनीति छात्रों और युवाओं को जब सत्ता समीकरण के मुताबिक हांक नहीं सकती, तो उसे भटकाने के लिए भी ऐसा करतब दोहरा सकती है।
जनता के मुद्दों और मुक्त बाजार में नरक यंत्रणा के अंधकार को पीछे छोड़कर लाल हरी केसरिया रोशनियों से सराबोर यह सत्ता की राजनीति हम भारतीयों नागरिकों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर रही है।