दीनानाथ बत्रा के नाम एक पत्र
आदरणीय दीनानाथ बत्रा जी,

आपको पत्र लिखने की कोई विशेष इच्छा नहीं थी परंतु आज रात्रि जिस प्रकार के समाचार देश की राजधानी इंद्रप्रस्थ से आ रही हैं, आपको यह पत्र लिखने के लिए विवश होना पड़ा है। चूंकि यह ज्ञात तथ्य है कि देश में आप से अग्रणी भारतीय संस्कृति का रक्षक कोई नहीं है और आप संभवतः उर्दू मिश्रित अथवा हिंदुस्तानी भाषा में पत्र व्यवहार को अस्वीकार कर सकते हैं अतः यह पत्र पूर्ण प्रयासों से शुद्धतम ज्ञात हिंदी में लिख रहा हूं।

महोदय, जैसा कि आपको ज्ञात है कि देश की सर्वप्रथम प्रशासनिक सेवा (जिसे संस्कृति के शत्रु आईएएस जैसे विदेशी भाषी नाम से बुलाते हैं) के भारतीय अभ्यर्थी, भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने की इच्छा रखते हुए, इन परीक्षाओं को भारतीय भाषाओं में संचालित करवाए जाने की मांग कर रहे हैं। इन छात्रों और अभ्यर्थियों ने इस हेतु हर संभव प्रयास किए। आपकी संस्कृति रक्षक सरकार को पत्र लिखने से लेकर आमरण अनशन तक के परंतु इनकी बात नहीं सुनी गई। अब छात्रों के आंदोलन को पुलिसबल (पुलिस का हिंदी शब्द न ढूंढ सका, क्षमा करें) द्वारा क्रूरता से कुचला जा रहा है।

बत्रा जी, आपको सूचित करना चाहूंगा कि दिल्ली (अब इंद्रप्रस्थ) के मुखर्जी नगर इलाके में आपकी ही राष्ट्रवादी सरकार के गृहमंत्री के अधीन इंद्रप्रस्थ पुलिस ने मात्र छात्रों के अनशन (उपवास) स्थल को बलपूर्वक रिक्त ही नहीं करवाया अपितु घरों में भी अवैधानिक रूप से घुस कर उनसे मारपीट की और धमकाया भी। बत्रा जी, आपको इस तथ्य को बताने की आवश्यक्ता नहीं है कि इस मुखर्जी नगर का नाम भी आपके प्रखर राष्ट्रवादी नेता और प्रणेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर ही रखा गया था, जो भारतीय भाषाओं की भूमिका को संस्कृति की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानते थे।

बत्रा जी, आप को तो इस बात का ज्ञान होगा ही कि सांस्कृतिक गौरव के लिए भाषाई गौरव को अक्षुण्ण रखना भी अपरिहार्य है। आपको विस्मृत तो नहीं ही हुआ होगा कि सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ने पंजाब सिख-हिंदू भाषाई तनाव के विषमकाल में भी हिंदुओं को मातृभाषा न बदलने का निर्देश दिया था, जो कि पंजाबी थी “अपनी मातृभाषा वही लिखवाएं जो वे अपने घरों में बोलते हैं, जिस भाषा में उनके शादी-ब्याह के समय गीत गाए जाते हैं।”

जब इतना कहा है तो थोड़ा और उद्धृत करने की धृष्टता चाहूंगा कि आप बाबासाहेब आप्टे को भी भूले नहीं होंगे, जो संघ के समर्पित प्रचारक होने के साथ भारतीय भाषाओं के भी प्रबल समर्थक थे। आपको याद होगा कि कैसे बंगाल में संघ के एक प्रचारक को उन्होंने बांग्ला का ठीक ज्ञान न होने पर फटकारा था…और ये भी कि भारतीय भाषाओं के संरक्षण को वो संघ का एक प्रमुख उद्देश्य मानते थे। योगेंद्र गोस्वामी की भारतीय भाषाओं को लेकर लिखी गई पुस्तक भी तो उनको ही समर्पित की गई थी।

आपको स्मरण यह भी होगा बत्रा जी कि कैसे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर, के सुदर्शन और राजेंद्र सिंह भी भारतीय भाषाओं के गौरव की बात करते थे। बत्रा जी, आप जिन शिवाजी, महाराणा प्रताप, राम, कृष्ण, परशुराम, पृथ्वीराज चौहान, समुद्रगुप्त, हरदौल-सारंध्रा, सावित्री-सत्यवान, चैतन्य महाप्रभु आदि की सत्य कथाएं इतिहास में प्रतिष्ठित कर के छात्रों के मन में रोप कर देश का उद्धार करना चाहते हैं, वो सारे महापुरुष अंग्रेज़ी तो नहीं ही बोलते होंगे। ऐसे में क्या आप छात्रों की इस न्यायसंगत मांग के साथ नहीं खड़े होंगे?

आदरणीय बत्रा जी, आप मेरे पितामह की आयु के हैं और निश्चित रूप से इन सारे तथ्यों का ज्ञान आपको हम नवयुवकों से अधिक है लेकिन आपकी पिछली आधी शताब्दी की सेवा और परिश्रम को ऐसे व्यर्थ जाते देखना दुखद है। निश्चित रूप से आपका प्रस्तावित पाठ्यक्रम विद्यालयों में तो पहुंचेगा परंतु प्रशासनिक सेवा में अंग्रेज़ी यानी कि एक विदेशी भाषा में वार्तालाप करने वाले ही पहुंचेंगे, ऐसे में जब तक आप मृत्युलोक में निवास करेंगे, तब तक तो संभवतः परिस्थितियां नियंत्रण में रहें परंतु आपके पश्चात इस देश और इसकी महान संस्कृति का क्या होगा, यह सोच कर भी भय लगता है।

ऐसे में हे संस्कृति के रक्षक, भारतीय भाषाओं के प्रहरी…आप से विनम्र और करबद्ध निवेदन है कि इन छात्रों के समर्थन में आएं औऱ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा समेत तमाम राष्ट्रवादी और संस्कृति रक्षक समूहों से सरकार पर दबाव बना कर भारतीय भाषाओं के अधिकार की रक्षा करें।

आपके उद्देश्य की चिंता में रत

एक जम्बूद्वीप निवासी

साभार- हिल्लेले