इस वर्ष का प्रथम नोबेल पुरस्कार बीती 5 अक्टूबर को शरीर विज्ञान अथवा मेडिसिन (Nobel Prize in Medicine) के क्षेत्र में घोषित किया गया है। इस बार का नोबेल पुरस्कार एक ऐसे वायरस की खोज के उपलक्ष्य में दिया जा रहा है, जिसने रक्त-से पैदा होने वाले हेपेटाइटिस रोग के खिलाफ लड़ाई में निर्णायक योगदान देने
शरीर विज्ञान या मेडिसिन के क्षेत्र में 2020 के नोबेल पुरस्कार को इस बार तीन वैज्ञानिकों, हार्वे जे ऑल्टर, माइकल ह्यूटन और चार्ल्स एम. राइस को सामूहिक तौर पर दिया जा रहा है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार को दशकों पूर्व की गई खोज के उपलक्ष्य में प्रदान किया जा रहा है।
हेपेटाइटिस के कारण यकृत में सूजन बनी रहती है और मुख्य तौर पर यह शराब की अधिकता, वातावरण में पाए जाने वाले विषाक्त पदार्थों या कुछ स्वप्रतिरक्षी प्रतिक्रियाओं के साथ-साथ वायरस की वजह से उत्पन्न होता है। वायरस के जरिये हेपेटाइटिस से पीड़ित होने की मुख्यतया दो वजहें हैं- पहला प्रदूषित पानी या भोजन के माध्यम से और दूसरा रक्त या शरीर में मौजूद तरल पदार्थ के माध्यम से।
हेपेटाइटिस वायरस कैसे फैलता है | How the hepatitis virus spreads
अधिकांश मौकों पर हेपेटाइटिस वायरस शरीर में पानी या भोजन के जरिये फैलता है और शरीर पर इसका दीर्घकालिक असर देखने को नहीं मिलता। लेकिन यदि हेपेटाइटिस वायरस का संक्रमण रक्त या शरीर के तरल पदार्थ के जरिये फैलता है तो इसके माध्यम से शरीर में सिरोसिस और यकृत कैंसर जैसे दीर्घकालिक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।
एचआईवी वायरस के संक्रमण की तरह ही घातक साबित होते हैं रक्त-जनित हेपेटाइटिस वायरस के लक्षण
इसके साथ-साथ रक्त-जनित हेपेटाइटिस वायरस के लक्षणों (Symptoms of blood borne hepatitis virus) को प्रकट होने में काफी वक्त लगता है और कई बार तो ये एचआईवी वायरस के संक्रमण की तरह ही घातक साबित होते हैं। काफी समय पहले तकरीबन 1940 के दशक के दौरान हेपेटाइटिस के इलाज (Treatment of hepatitis) को लेकर यह समझ बनी थी कि इस बीमारी को फैलाने वाले वायरल एजेंट कुछ अलग मार्गों के जरिये उत्पन्न होते हैं। ये या तो पानी या भोजन जैसे पर्यावरणीय माध्यम के जरिये या फिर रक्त या शरीर के तरल पदार्थ के माध्यम से उत्पन्न होते हैं। उन शुरूआती दिनों में पानी या भोजन के जरिये फैलने वाले हेपेटाइटिस ए वायरस की खोज कर ली गई थी, लेकिन रक्त-जनित हेपेटाइटिस वायरस के बारे में पता लगाने में कुछ और वक्त लग गया।
हेपेटाइटिस बी वायरस की खोज किसने की | Who discovered hepatitis b virus
यह केवल 1960 के दशक में ही जाकर संभव हो सका जब पहली बार बरूच ब्लूमबर्ग ने रक्त से उत्पन्न होने वाले हेपेटाइटिस बी वायरस की खोज (Hepatitis B virus discovery) की और इस खोज के दो दशक बाद जाकर 1976 में उनके काम को नोबेल पुरस्कार के जरिये मान्यता दी गई थी। लेकिन जल्द ही इस बात का एहसास हो चुका था कि बरुच ब्लमबर्ग ने जिसके बारे में खोज की थी, मात्र उसके जरिये रक्त या शरीर के तरल पदार्थ के माध्यम से फैलने वाले हेपेटाइटिस वायरस को समझ पाना काफी नहीं था। उसी दौर में इस वर्ष के शरीर विज्ञान क्षेत्र में नोबेल प्राप्त करने वालों में से एक हार्वे जे. ऑल्टर (Harvey J. Alter) अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ में उन रोगियों के बीच काम कर रहे थे जिन्हें रक्त चढ़ाया गया था।
Hepatitis B virus was already discovered
हेपेटाइटिस बी वायरस की खोज पहले ही की जा चुकी थी जिसकी वजह से हेपेटाइटिस के उन मामलों को कम किया जा सकता था जो रक्त चढाये जाने के जरिये प्रेषित होते थे। लेकिन ऑल्टर और उनके सहयोगियों ने इस बात को महसूस किया कि मामला सिर्फ हेपेटाइटिस बी वायरस का ही नहीं था, बल्कि कुछ अन्य हेपेटाइटिस वायरस भी हैं जो रक्त चढ़ाने वाले मामलों में संचरित हो रहे थे। उन्होंने हेपेटाइटिस ए वायरस के बारे में भी पड़ताल की, लेकिन हेपेटाइटिस ए और बी के अलावा भी उन्होंने पाया कि एक और वायरस था जो रक्त-जनित हेपेटाइटिस को उत्पन्न कर रहा था।
ऑल्टर एवं उनके सहकर्मियों ने पाया कि अज्ञात हेपेटाइटिस वायरस चिंपांज़ी को भी संक्रमित करने की क्षमता रखता है। ऐसा तब देखने को मिला जब उन्हें रक्त-जनित हेपेटाइटिस से पीड़ित रोगियों के रक्त से संक्रमित किया गया।
ऑल्टर ने इस बारे में व्यवस्थित तौर पर विस्तृत जांच करने का काम किया और उन्होंने अपने निष्कर्ष में एक नए जटिल हेपेटाइटिस को पाया जिसकी उत्पत्ति किन्हीं रक्त-जनित वायरस के चलते हुई थी। लेकिन इसके चलते नए वायरस की खोज करने की क्षमता को लेकर चिंता को बढ़ा दिया था।
इसी बीच माइकल हॉटन जोकि शरीर विज्ञान के क्षेत्र में 2020 के नोबेल हासिल करने वाले दूसरे वैज्ञानिक हैं, वायरस के आनुवंशिक अनुक्रम को खोजने के दुरूह कार्य में लगे हुए थे। वे और उनके सहयोगियों ने संक्रमित चिंपांज़ी के रक्त में पाए जाने वाले न्यूक्लिक एसिड से डीएनए टुकड़ों का संग्रह किया। उन्होंने क्रोनिक हेपेटाइटिस रोगियों के रक्त सेरा में से वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी खोजने की भी सफलतापूर्वक कोशिश की। उनके शोध से इस बात का पता चला कि अब तक जो अज्ञात वायरस था, वह असल में एक आरएनए वायरस था, और यह फ्लेववायरस नामक परिवार से सम्बद्ध रखता था। उन्होंने इसे हेपेटाइटिस सी वायरस नाम दिया।
यह अपने आप में उल्लेखनीय खोज थी, लेकिन एक सवाल अभी भी हैरान कर रहा था कि क्या हाल ही में खोजे गए वायरस के जरिये ही हेपेटाइटिस रोग उत्पन्न होता है, या कोई अन्य कारक भी हैं। इस पहेली को हल करने का एक तरीका यह हो सकता था कि क्या वायरस के एक क्लोन के जरिये इस बीमारी को दोहराया जा सकता है, और रोग का कारण बन सकता है।
यही वह बिंदु था जहां फिजियोलॉजी के क्षेत्र में 2020 के नोबेल के तीसरे प्राप्तकर्ता चार्ल्स एम. राइस की भूमिका सामने दिखती है।
राइस उन दिनों वाशिंगटन विश्वविद्यालय में शोधकर्ता के तौर पर कार्यरत थे। उनके कष्टसाध्य परिश्रम के जरिये आखिरकार यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया कि अकेले हेपेटाइटिस सी वायरस के माध्यम से रक्त चढ़ाने से संबंधित रोगियों में क्रोनिक हेपेटाइटिस उत्पन्न हो सकता है।
भले ही नोबेल पुरस्कार के जरिये इसे मान्यता मिलने में कई दशक लग गए हों, लेकिन हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज के कारण वायरल रोगों के खिलाफ लड़ाई में उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है। आज के दिन वायरस का पता लगाने के लिए रक्त परीक्षण का काम अत्यंत संवेदनशील तौर पर उपलब्ध है। इसके साथ ही वायरस के खात्मे के लिए एंटीवायरल दवाएं भी उपलब्ध हैं। अब यह आम धारणा बन चुकी है कि एंटीवायरल दवा की मदद से हेपेटाइटिस सी के रोगियों का इलाज संभव है।
संदीपन तालुकदार
(मूलतः यह लेख न्यूज़क्लिक में प्रकाशित हुआ था, उसका संपादित रूप साभार)
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