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भारत का प्राइवेट सैक्टर निठल्ला है, क्या 1, 76,000 करोड़ का अभी तक कोई हिसाब आया

बैंकों का विलय और अर्थशास्त्र! Banks merger and economics!
हम शस्त्र और शास्त्र को साथ लेकर चलते हैं।
What Chanakya has written in Economics
महापंडित चाणक्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि श्रम का विभाजन और विलय, दोनों समाज में उन्नति और खुशहाली पैदा करता है।
पर अर्थ का विभाजन सही है, विलय नहीं। क्योंकि अर्थव्यवस्था के लिये अर्थ का प्रसार (circulation) ज़रूरी है। और प्रसार तभी होता है, जब अर्थ का संचय ज़यादा से ज़यादा, भिन्न से भिन्न, और नीचे से नीचे, हाथों में हो। अगर अर्थ का किसी बड़ी संस्था में विलय हो जाता है, तो उसका प्रसार रुक जाता है।
अर्थशास्त्र 2nd century BC, यानी आज से 2000 हज़ार साल पहले, इसी भारत की धरती पर, लिखा गया था।
आज मोदी सरकार ने बैंकों का विलय (Merger of banks) कर दिया। यह वही बात हुई कि 2014 के बाद मेरी बचत Rs. 100 से घट कर 50 हो गयी। पड़ोसी की 100 से घट कर 40 हो गयी। हमने दोनो की बचत का विलय कर, Rs. 90 अपनी बचत कर ली। अब ये 50 और 40 से ज़यादा है। पर असलियत क्या है? हम 90 कहीं इन्वेस्ट करेंगें, तो हमारा रिटर्न क्या होगा? मोहल्ले का विकास कैसे होगा? कोई दूसरा मोहल्ला हममे इन्वेस्ट क्यों करेगा?
बैंकों का विलय, मूल प्रश्न, कि हमारी बचत कम क्यों हुई, से ध्यान भटकाता है। बचत कम हुई क्योंकि नोटबंदी से हमारा पैसा बैंकों के पास पहुंच गया। हमारे पास खर्च करने को नकद रहा नहीं। कैशलेस अर्थव्यवस्था आगे बढ़ी नहीं। जब हमने खर्च करना कम कर दिया, तो बाज़ार मे मांग (demand) कम हो गई। मांग कम हुई तो माल बिकना कम हुआ। माल बिकना कम हुआ, तो उत्पादन कम हुआ। उत्पादन कम हुआ तो छंटनी शुरू हुई। बेरोज़गारी बढ़ी।
इस तरह से आज हम मंदी की तरफ बढ़ रहे हैं। सरकार का काम होना चाहिये निवेश-विदेशी निवेश तभी आयेगा, जब देसी निवेश बढ़ेगा।
सरकार ने अर्थव्यवस्था मे निवेश करना बंद कर दिया है। भारत का प्राइवेट सैक्टर निठल्ला है। उसे खुद बैंकों से निवेश की ज़रूरत रहती है। 1, 76,000 crore का अभी तक कोई हिसाब आया, कि वो कहां और कैसे खर्च हो रहा है?
अमरेश मिश्रा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, इतिहासकार व मंगल सेना प्रमुख हैं)


