10 मई 1857 मेरठ में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत (Beginning of India's First Freedom Struggle) हुई और 11 मई 1857 को सिपाही दिल्‍ली पहुंचे. देश पर साम्राज्‍यवादी कब्‍जे के खिलाफ बलिदानी सिपाही और जनता दो साल तक लड़ते रहे. कई लाख लोगों ने देश की आज़ादी के संघर्ष में अपने प्राण न्‍यौछावर किए. हर साल महान मई का महीना आता है. देश के किसी अखबार, पत्रिका, चैनल में यह चर्चा देखने-सुनाने को नहीं मिलती. सामाजिक-राजनीतिक संगठन या सरकारें इस मौके पर कार्यक्रमों का आयोजन नहीं करते. अलबत्‍ता सरकारी धन मिले, जैसा कि 2007 में 1857 के विद्रोह के डेढ़ सौ साल पूरे होने पर मिला, तो वह एक से बढ़ कर एक सेमिनार और उत्‍सव आयोजित कर सकते हैं!

किशन पटनायक ने अपनी पुस्तक ‘विकल्‍पहीन नहीं है दुनिया’ में एक जगह लिखा है, भारत के बुद्धिजीवी की आज तक यह धारणा बनी हुई है कि अगर 1857 के लड़ाके जीत जाते तो देश अंधकार के गर्त में चला जाता!

कारपोरेट की लहर पर सवार 2014 के चुनावों में मनमोहन सिंह/कांग्रेस ने बैनेट अपने सर्वश्रेष्ठ उत्तराधिकारी की थमा दिया था. सही उत्तराधिकारी के ‘राज्‍याभिषेक’ में एनजीओ सरगनाओं और नागरिक समाज (समाजवादियों-साम्यवादियों समेत) ने बखूबी अपनी भूमिका निभाई. उन्‍होंने नवसाम्राज्यवाद के खिलाफ देश की आज़ादी और संप्रभुता को बचाने की लड़ाई को छिन्न-भिन्न करके सचमुच देश को कारपोरेट घरानों के लिए बचा लिया! नवसाम्राज्‍यवादी निजाम में उन्हें खिलअतें और पदवियां मिली हैं. जैसे उपनिवेशवादियों ने 1857 को कुचलने में मदद करने वाले रजवाड़ों, दलालों, जासूसों को दी थीं.

कांग्रेस ने पिछले करीब तीन दशकों में आजादी के संघर्ष की विरासत को धो-पोंछ कर साफ़ कर दिया है. आरएसएस/भाजपा तब अंग्रेजों के साथ थे ही. ज़ाहिर है, वे अब भी मुस्तैदी से नवसाम्राज्यवाद की ताबेदारी कर रहे हैं.

तब एक ईस्ट इंडिया कंपनी की गुलामी थी, अब अनेक कारपोरेट घरानों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का शिकंजा संसाधनों, संस्थानों और समाज पर कसा हुआ है. रक्षा क्षेत्र में सौ प्रतिशत विदेशी निवेश से लेकर रेलवे स्टेशनों और लाल किला जैसी सैंकड़ों धरोहरों को बेचने तक यह आलम देखा जा सकता है. और पाखंडी आधुनिकता से पैदा हुए नए डिज़िटल इंडिया के चरण तेज़ी से बढ़ रहे हैं!

1857 के क्रांतिकारियों की सेना का यह झंडा सलामी गीत अज़ीमुल्ला खां ने लिखा था. आइये इसे पढ़ते हैं -

हम हैं इसके मालिक हिंदुस्‍तान हमारा,

पाक वतन है कौम का जन्‍नत से भी प्‍यारा।

यह हमारी मिल्कियत हिंदुस्‍तान हमारा,

इसकी रूहानियत से रौशन है जग सारा।

कितना कदीम कितना नईम सब दुनिया से न्‍यारा,

करती है जरखेज जिसे गंगो-जमुन की धारा।

ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा,

नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्‍कारा।

इसकी खानें उगल रहीं सोना हीरा पारा,

इसकी शान-शौकत का दुनिया में जयकारा।

आया फिरंगी दूर से ऐसा मंतर मारा,

लूटा दोनों हाथों से प्‍यारा वतन हमारा।

आज शहीदों ने है तुमको अहले-वतन ललकारा,

तोड़ो गुलामी की जंजीरें बरसाओ अंगारा।

हिंदू-मुसलमां-सिख हमारा भाई-भाई प्यार,

यह है आजादी का झंडा इसे सलाम हमारा।।

सूचना

सोशलिस्ट पार्टी हर साल 11 मई को 'कूच-ए-आज़ादी' का आयोजन करती है. पार्टी के कार्यकर्ता शाम को मंडी हाउस पर एकत्रित होकर वहां से 1857 के बलिदानियों की याद में आपसी मोहब्बत और भाईचारे के लिए पार्लियामेंट स्ट्रीट तक मार्च करते हैं. पार्लियामेंट स्ट्रीट पर मशाल जला कर बलिदानियों को सलामी दी जाती है. हर साल भारत के राष्ट्रपति को दिया गया ज्ञापन दोहराया जाता है - कि बहादुरशाह ज़फर के अवशेष रंगून से दिल्ली लाए जाएं. पिछले साल पार्टी ने सामाजिक संगठन खुदाई खिदमतगार के साथ मिल कर मेरठ स्थित शहीद स्मारक स्थल से चल कर दिल्ली में खूनी दरवाज़ा और लालकिला तक 'कूच-ए-आज़ादी' का आयोजन किया था. इस बार दिल्ली में 11 मई को लोकसभा चुनाव का दिन होने की वजह से सोशलिस्ट पार्टी ने 'कूच-ए-आज़ादी' का आयोजन स्थगित किया है. अगले साल फिर यह आयोजन होगा. इस बार दिल्ली पार्टी कार्यालय में 11 मई को शाम 5 बजे क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि दी जायेगी और परिचर्चा होगी.

सोशलिस्ट पार्टी का नारा समता और भाईचारा

सोशलिस्‍ट पार्टी की ओर से जारी। 10 मई 2019