1984- दिल्ली जल रही थी तो संघ परिवार सोया हुआ था ?
1984- दिल्ली जल रही थी तो संघ परिवार सोया हुआ था ?
1984 के दंगे भाजपा,कांग्रेस और हम
जिन संघ कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में सिख नरसंहार में हिस्सा लिया था उनको संघ ने दण्डित क्यों नहीं किया ?
जगदीश्वर चतुर्वेदी
सन् 1984 में जब सिख नरसंहार हो रहा था, तो संघ परिवार के नेता घरों में दुबके हुये क्यों बैठे थे ? मैंने दो दिन पहले ही जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष का दायित्व लिया था। हमने इंदिरा गांधी की हत्या के दिन ही सभी छात्रों को गोलबंद किया, कैम्पस में सक्रियता बढाई,वसंत विहार स्थित हरिकिशन पब्लिक स्कूल में बंद तकरीबन 34 सिखों को दंगों के समय मैं अपने साथियों की मदद से इस स्कूल के तहखाने से निकालकर कैम्पस के अंदर देर रात गये 2बजे करीब लेकर आया ।
उस समय मुनीरका, आर.के.पुरम आदि में आगजनी हो रही थी, हरिकिशन सिंह पब्लिक स्कूल में आग लगाई जा चुकी थी, पीड़ित सिख तहखाने में बंद थे किसी तरह जेएनयू के मैनगेट पर फोन पर मेरे नाम एक स्कूल शिक्षक का संदेश था कि आकर हमारी जान बचाओ, मैं निजी तौर पर बेहद परेशान था कि क्या करुँ, एक कॉमरेड को मोटर साइकिल से लेकर गया तो देखा कि रास्ते में गुण्डे हथियारों से लैस गाड़ियों में हिंसा-आगजनी करते घूम रहे थे। किसी तरह झूठ बोलते हुये हरिकिशन पब्लिक स्कूल में जलती बिल्डिंग के तहखाने में जाकर सब पीड़ित सिखों को देखा तो रूह कांप गयी। खैर, मैं उलटे मोटर साइकिल से जेएनयू लौटा और परिचित शिक्षकों की 5 कारों को लेकर तुरन्त लौटा और पीड़ितों को तहखाने से निकालकर कैम्पस लेकर आया और यह खबर हमने जेएनयू के छात्रों से भी छिपायी। बाद में रात में ही सभी 34 सिखों को जेएनयू शिक्षकों के घर में 2-2 के ग्रुप में करके रख दिया गया। यह काम बहुत ही तेजी और गोपनीयता के साथ किया गया। यही वह घटना थी जिसने अकाली दल को गहरे तक प्रभावित किया और संत लोंगोवाल अकाली दल की ओर से मिलने जेएनयू आए। उन्होंने निजी तौर पर मुझे बहुत ही प्यार दिया और कहा कि इस तरह के युवाओं पर ही देश गर्व करता है। संत का प्यार मेरे जीवन की अनमोल उपलब्धि थी।
वेद मारवाह का एक वाकया याद आ गया। मारवाह साहब ने हमें जुलूस निकालने की परमीशन नहीं दी थी, मैंने यह बात सबसे छिपा ली थी और सबको यही कहा कि परमीशन मिल गयी है, क्योंकि शिक्षकगण परमीशन के बिना जाने के लिये तैयार नहीं थे। मेरे झूठ बोलने पर सब जुलूस में गये, इसमें ऐसे शिक्षक भी जुलूस में गये जो कभी जुलूस में नहीं गये थे, मसलन शिवतोष मुखर्जी, अंजली मुखर्जी आदि। आर.के.पुरम में वेद मारवाह ने मुझे धमकाया भी कि मैं आपको गिरफ्तार कर लूँगा क्योंकि आपने परमीशन के जुलूस निकाला है। मैंने कहा जुलूस के बाद पकड़ना और यह भी सोच लो तुम्हारा क्या होगा, क्यों कि सभी शिक्षक-छात्र मेरे साथ जायेंगे और इनमें वे लोग भी हैं जो गांधी परिवार से सीधे जुड़े हैं। मारवाह साहब गिरफ्तार नहीं कर पाये और निराश होकर कैम्पस तक हमें जुलूस सहित घुमाकर छोड़ गये। मैंने उनसे कहा था दंगाईयों को पकड़ो। वे चुप थे।
सन् 1984 के सिख नर संहार पीड़ितों के सभी पीड़ितों के परिवारों को जेएनयू की ओर से हमने घर घर जाकर एक महीने का राशन और सभी को जरूरी सामान और काम के सभी बर्तन दिये, सभी कैम्पों में सक्रिय रूप से कई हजार छात्रों ने मदद की और कई हजार छात्रों ने दिल्ली में खासकर दक्षिणी दिल्ली में हर घर से मदद इकट्ठा की और उसको पीडित सिख परिवारों तक पहुँचाया। सहायता शिविरों से सज्जन कुमार, धर्मदत्त शास्त्री आदि को पीड़ितों के प्रतिवाद के कारण लौटना पड़ा।
मैं निजी तौर पर कांग्रेस के इन दागी नेताओं की धमकियों को सुन चुका था। उनको सिखों पर हमले करते हुये जिन लोगों ने देखा था उनके आंखों देखे ब्यौरे दैनिकपत्रों में छपे हैं।
दिल्ली जिस समय जल रही थी संघ परिवार सोया हुआ था। सवाल यह है कि संघ परिवार ने सिख नरसंहार रोकने के लिये हस्तक्षेप क्यों नहीं किया? अपने कैडर को सड़कों पर सिखों की रक्षा हेतु क्यों नहीं उतारा ? उनको हस्तक्षेप करने से किसने रोका था ? जिन संघ कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में सिख नरसंहार में हिस्सा लिया था उनको संघ ने दण्डित क्यों नहीं किया ?
जेएनयू के छात्रों की भूमिका की सन् 1984 के दंगों के समय पीड़ितों में सद्भाव और मदद के काम की थी जिसकी अकाली दल की कार्यकारणी ने प्रशंसा की थी। संत हरचंद सिंह लोंगोवाल, सुरजीत सिंह बरनाला, लेखक महीप सिंह जेएनयू कैम्पस आए थे और उन्होंने झेलम लॉन में हुयी आमसभा में शानदार भाषण देकर जेएनयू के छात्रों- शिक्षकों- कर्मचारियों को धन्यवाद दिया और अकाली दल का प्रस्ताव पढ़कर सुनाया था, मीटिंग की अध्यक्षता मैं खुद कर रहा था।
अकाली दल के केन्द्रीय नेतृत्व की दिल्ली में यह एकमात्र बड़ी मीटिंग थी जिसमें संत लोंगोवाल आए थे। उल्लेखनीय है जिस तरह कांग्रेस के नेतागण सिख नरसंहार में सक्रिय थे उसी तरह कई इलाकों में संघ के लोग भी सक्रिय थे, यह बातें उस समय के समाचार पत्रों में छपी हैं।


