2001 में पुर्तगाली योग परिसंघ और योग-सांख्य संस्थान ने बेंगलुरू में रखा था अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव
2001 में पुर्तगाली योग परिसंघ और योग-सांख्य संस्थान ने बेंगलुरू में रखा था अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव
शास्त्री कोसलेन्द्र दास
शरीर और मस्तिष्क के बीच स्वस्थ संबंध स्थापित करने का प्रभावी तरीका योग है। योग एक प्रकार का व्यायाम है, जो आंतरिक और बाहरी, दो भागों में बंटा है। शरीर तथा मन को स्वस्थ रखने के लिए योग श्वास और शारीरिक आसनों के माध्यम से किया जाता है। शरीर के लिए व्यायाम तथा मन को स्वस्थ रखने के लिए प्राणायाम, ध्यान एवं समाधि। समग्र चिकित्सा के इस प्राचीनतम रूप को संयुक्त राष्ट्र संघ ने गहराई से समझा। फिर इसे औपचारिक मान्यता दी। इस मान्यता का परिणाम विश्व योग दिवस के रूप में मिला। संघ ने योग को धर्म और किसी राष्ट्र के एकाधिकार से ऊंचा माना। इसी कारण संघ का गठन करने वाले 193 देशों में से 177 देशों ने विश्व योग दिवस मनाने का समर्थन किया। संघ के किसी भी प्रस्ताव के लिए यह सर्वोच्च समर्थन था।
यह भी जानने की बात है कि इस ऐतिहासिक घोषणा के मूल को वर्ष 2001 में खोजा जाना चाहिए। जब पुर्तगाली योग परिसंघ और योग-सांख्य संस्थान ने ‘योग-विश्व के लिए एक विज्ञान’ विषयक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन बेंगलूरु में किया था। दुनिया के सभी हिस्सों से आए योग गुरु यहां इकट्ठे हुए। उन्होंने जो विचार दिए, उसमें एक यह भी था कि किसी एक तिथि को योग दिवस के रूप में निर्धारित किया जाए। सम्मेलन में ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ मनाने का प्रस्ताव पहली बार रखा गया। इसी का परिणाम यह हुआ कि दुनिया भर के योग गुरु ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के आयोजन के लिए एकराय हुए। नतीजतन, उसके अगले वर्ष यानी 21 जून, 2002 में सारी योग संस्थाओं ने अपने स्तर पर पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया। लेकिन यह सच है कि इससे योग का वैसा प्रचार नहीं हुआ जैसा 2015 से शुरू हुआ।
संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को आगे बढ़ाया। उन्होंने विश्व योग दिवस मनाने का सुझाव संघ को दिया। दुनिया भर के देशों के प्रतिनिधियों को योग के फायदे गिनाए। मोदी के सुझाव का असर पड़ा। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 11 दिसंबर, 2014 को विश्व योग दिवस मनाने की घोषणा कर दी। संघ ने इसके लिए 21 जून की तारीख तय की। इसका परिणाम हुआ कि 2015 में 21 जून को पहली बार दुनिया भर में पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। इस तिथि को विशेष महत्व इसलिए दिया गया क्योंकि यह उत्तरी गोलार्ध में सबसे लंबा दिन है। सूर्य की किरणों का सीधा प्रभाव इस दिन धरती पर सबसे ज्यादा पड़ता है। यह दिन हमारे जीवन पर प्रभाव डालता है।
योग एक पुरानी ज्ञान प्रक्रिया है। इसे महर्षि पतंजलि से शुरू मानते हैं। इसका संबंध मुक्ति से है। पर अब इसका रूप बदल-सा गया है। फिर भी यह तो मानना पड़ेगा कि आज जो योग है, उसका मूल पतंजलि से जुड़ा हुआ है। पतंजलि के लिखे ‘योग शास्त्र’ के चार भाग हैं। इन्हें ‘पाद’ कहा जाता है। ये चार पाद- साधन, समाधि, विभूति और कैवल्य हैं। इन चारों में संस्कृत में लिखे सूत्र हैं। पतंजलि के योग दर्शन में 195 सूत्र हैं। भारतीय दर्शन शास्त्र के इतिहासकार पतंजलि को तीन हजार वर्ष पुराना मानते हैं। पतंजलि के बाद अनेक विद्वानों ने योग शास्त्र पर अपनी कलम चलाई। पतंजलि के ‘योगसूत्र’ पर व्यास मुनि ने ‘व्यास भाष्य’ लिखा। ‘हठप्रदीपिका’ और ‘घेरण्ड संहिता’ योग दर्शन के खास ग्रंथ हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि विश्व साहित्य में ‘ऋग्वेद’ सबसे पुराना ग्रंथ है। इसमें योग का उल्लेख है। अत: योग भी उतना ही पुराना है, जितना वैदिक साहित्य। हम सब जानते हैं कि ‘ऋग्वेद’ सारी मानव जाति का सबसे पुराना ग्रंथ है। इस हिसाब से योग कई सहस्राब्दियों पुराना है और यह मनुष्य मात्र को आध्यात्मिक ऊर्जा व आंतरिक बल देने वाली सबसे बड़ी शक्ति है।
योग साधना में पहला चरण शरीर की शुद्धि का है। दूसरे चरण में मन की शुद्धि की बात है। व्यक्ति के बाहर से भीतर की यात्रा तक ये चरण चलते रहते हैं। योग शास्त्र में यह अवधारणा है कि मनुष्य के शरीर में बहुत से शरीरों की उपस्थिति है। जो शरीर दिखता है, वह पहली परत है। उसके भीतर ढेर सारे शरीर हैं। श्वास और एकाग्रता एक-दूसरे से जोडक़र इनका अनुभव करवाते हैं। यही योग साधना का सार है। इसमें समझने की बात यह है कि जो साधक आंतरिक सक्रिय होता है, वह चारों तरफ से अपने लिए ऊर्जा एकत्र करता है। योग में अपनी-अपनी विधियां मन को केंद्र में रखकर योगियों ने चलाई है।
(शास्त्री कोसलेन्द्रदास, लेखक राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर में योग दर्शन प्राध्यापक है)


