2013 के भूमि अधिनियम और 2014 के भूमि अध्यादेश का तुलनात्मक विश्लेषण
नई दिल्ली। 1894 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अंतर्गत जबरन, अनुचित और अन्यायपूर्ण तरीके से जमीन अधिग्रहण के अनुभवों के आधार पर, विविध जन आंदोलनों के लम्बे संघर्ष के बाद भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में समुचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था। एक दशक तक चले अभूतपूर्व देशव्यापी परामर्श, संसद में और बीजेपी के नेतृत्व वाली दो स्थायी समितियों में बड़े पैमाने पर बहस के बाद ही 2013 का यह भूमि अधिग्रहण अधिनियम बना। उस वक्त वर्तमान लोकसभा अध्यक्ष और उस वक्त स्थायी समिति की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के साथ बीजेपी तहेदिल से अधिनियम के समर्थन में थी, और खुलकर इस कानून के प्रावधानों का समर्थन कर रही थी। और अब एक झटके में लोकतान्त्रिक ढांचे को अनदेखा करके, 2013 के अधिनियम के सभी लाभों को खत्म करते हुए, और 1894 के कानून पर वापस आने वाला एक अध्यादेश मोदी सरकार ले आई है।

जनसंगठनों का कहना है कि इससे, मोदी सरकार लोगों के हितों की पूरी अनदेखी करते हुए, किसी भी कीमत पर कॉर्पोरेट के हितों का विस्तार करने के अपने संकल्प की पुष्टि ही की है, और साथ ही इसमें इस बात का संकेत भी मिलता है कि मौजूदा कॉर्पोरेट-सरकार संबंधों में किसी भी तरह के पारम्परिक लोकतान्त्रिक और भारतीय संविधान के ढांचे के मूल्यों से परेशान नहीं किया जायेगा।

2014 का भूमि अध्यादेश पूरी तरह से, समुचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013, का और अन्यायपूर्ण भूमि अधिग्रहण के खिलाफ सालों के संघर्ष का मजाक बना रहा है।

जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम), अखिल भारतीय वन श्रम जीवी मंच, राष्ट्रीय किसान संघर्ष समिति, संयुक्त किसान संघर्ष समिति, इंसाफ, दिल्ली समर्थक समूह, घर बचाओ-घर बनाओ आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन, अखिल भारतीय किसान सभा तथा किसान मंच ने 2013 के कानून और 2014 के अद्यादेश का तुलनात्मक अधेययन प्रस्तुत किया है, जो निम्नवत् है।

प्रावधान
2013 कानून
2014 अध्यादेश

परियोजना के लिए सहमति


निजी परियोजना के लिए 80% भूमि मालिकों से और पीपीपी परियोजनाओं के लिए 70% भूमि मालिकों की सहमति आवश्यक
निम्न पांच श्रेणियों की परियोजनाओं के लिए किसी भी तरह कि सहमति आवश्यक नहीं है : (i) डिफेन्स, (ii) ग्रामीण बुनियादी ढांचा , (iii) सस्ते आवास , (iv) इंडस्ट्रियल कोरिडोर और (v) पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप वाले ढांचागत परियोजनाएं, जहाँ केन्द्रीय सरकार भूमि की मालिक है.

सामाजिक प्रभाव आंकलन (एसआईए)
जहाँ भूमि अधिग्रहित की जा रही है, वहां प्रभावित परिवारों की संख्या और सामाजिक प्रभाव का आंकलन करने के लिए, सिंचाई परियोजनाओं को छोडकर सभी परियोजनाओं के लिए आवश्यक.
ऊपर बताई गयी श्रेणी के लिए कोई जरुरत नहीं, यानी कि हर तरह की परियोजना

खाद्य सुरक्षा के लिए बहुफसलीय भूमि का अधिग्रहण
उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण पर प्रतिबन्ध
उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण पर कोई प्रतिबन्ध नहीं

सार्वजानिक उद्देश्य
भूमि अधिग्रहण के प्रावधान सार्वजानिक उद्देश्यों को छोड़कर सभी ढांचागत परियोजनाओं पर लागू होंगे जैसे अस्पताल, निजी शैक्षिणिक संस्थाएं, और निजी होटल
बुनियादी सुविधाओं के नाम पर अब सरकार निजी शिक्षण संस्थानों और निजी अस्पतालों के लिए जमीन का अधिग्रहण कर सकते है

निजी परियोजनाओं के लिए अधिग्रहण
सिर्फ पंजीकृत कम्पनियां जो कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत पंजीकृत हैं.
किसी भी ‘निजी संस्था'के लिए अधिग्रहण , जिसमें स्वामित्व या साझेदारी , गैर सरकारी संगठन या किसी अन्य संस्था शामिल हैं

2013 अधिनियम का पूर्व व्यापी आवेदन
1895 के अधिनियम के तहत अधिग्रहित भूमि पर लागू, यदि 5 सालों में भौतिक रूप से जमीन कब्जे में नहीं ली गई या मुआवजा प्रभावित व्यक्ति के खाते में सीधा नहीं पहुचाया गया. इससे बहुत से पुराने मामलों में लाभान्वित हुए.
इसमें प्रभावित लोगों के अधिकार और मुआवजे को खत्म किया गया है. केवल उन मामलों तक ही सीमित करता है जिन में देरी किसी भी न्यायिक आदेश या लंबित मामले के कारण नहीं हुई थी |

उल्लंघन करने वाले अधिकारीयों के खिलाफ कार्यवाही
यदि किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा उल्लंघन होता है तो विभाग प्रमुख को दोषी माना जायगा और इसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान रखा गया. यदि यह साबित न हो जाये कि किसी खास अधिकारी ने गड़बड़ी की है.
इस अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं हो होगी

इस्तेमाल न हुई भूमि की वापसी
यदि अधिग्रहण के बाद पांच सालों के अन्दर जमीन का इस्तेमाल शुरू नहीं हुआ तो वह उसके मालिक, कानूनी वारिश या भूमि बैंक को वापस सौप दी जाएगी.


पांच साल में इस्तेमाल करने के प्रतिबन्ध को हटा दिया गया. निर्दिष्ट परियोजना अवधि या पांच साल जो भी बाद में हो, का प्रावधान रख दिया गया है.

केन्द्रीय सरकार के दिशा निर्देशों और अधिसूचनाओं को जारी करने की शक्ति
दिसम्बर 2015 तक दो साल
2019 तक पांच साल बढ़ा दिया गया

भूमि अधिग्रहण के लिए सेज, एनएचआई, रेलवे अधिनियम आदि सहित 13 केन्द्रीय कानूनों का इस्तेमाल


इस दायरे से छूट दी गयी. 2013 के अधिनियम की धारा 105 में एक साल के अंदर मुआवजा, पुनंर्वास और और पुनर्स्थापन के प्रावधान को इन 13 कानूनों में लाया गया.
यह अधिनियम 2013 के एलएआरआर अधिनियम 2013 के अनुरूप इन 13 कानूनों में मुआवजा, पुनर्वास और पुनर्स्थापन का प्रावधान लाया है.