सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से अब जलवायु परिवर्तन रोकने के ठोस कदम न उठाने पर सरकारों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

भारत की अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

"नेचर" पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, अगर कार्बन एमिशन में आज से ही भारी कटौती कर ली जाए, तब भी जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक 19 प्रतिशत की आय में कमी आने का अनुमान है। आने वाले 50 सालों में वैश्विक अर्थव्यवस्था (global economy) में कमी का असर लगभग सभी देशों में देखने को मिलेगा। एशियाई देशों पर जलवायु परिवर्तन का बुरा असर (Bad effects of climate change on Asian countries) - भीषण सूखे, प्रलयंकारी बाढ़ और भयंकर तपिश के दुष्‍प्रभावों क़हर बनकर टूट रहे हैं। इनमें भारत, चीन सहित तमाम दक्षिण एशियाई देश शामिल हैं।

जलवायु परिवर्तनके कारण वैश्विक वार्षिक नुक़सान का अनुमान 2050 तक 38 खरब डॉलर है, जिसकी संभावित सीमा 19-59 खरब डॉलर के बीच मानी जा रही है। यह नुक़सान मुख्य रूप से बढ़ते तापमान के कारण होता है, लेकिन बारिश में बदलाव और तापमान में उतार-चढ़ाव से भी जुड़ा है। अगर तूफान या जंगल की आग (Forest fire) जैसी अन्य मौसम संबंधी अतिशयोक्तियों को भी इसमें शामिल कर लिया जाए, तो यह नुक़सान और भी बढ़ सकता है।

भारत की बात करें, तो नेचर के मुताबिक़ जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक अर्थ व्यवस्था में होने वाले नुक़सान का यह आंकड़ा 22% हो जाता है, जो कि ग्लोबल औसत से 3% अधिक है। यानी साफ़ अल्फ़ाज़ में कहा जाये तो हिंदुस्तानी इसका पश्चिमी देशों से ज़्यादा नुक़सान झेलेंगे।

वाजिब है कि ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में पहली बार हिंदुस्तान के लाखों करोड़ों गरीब और बेबस लोगों के ज़िंदा रहने के लिये ऑक्सीजन आने के दरवाज़े खोल दिए हैं। जो जलवायु परिवर्तन से बचाव के अधिकार को एक बुनियादी हक़ के रूप में देखता है। यानी साफ़ हवा में सांस लेना, साफ़ पानी पीने के लिए मिलना, नदियों का साफ़ बहाव, बेतहाशा गर्मी से बचाव, मौसम की मार से बचाव, ग्लेशियर तेज़ी से पिघलने की वजह को कम करना जैसी बातें अब हम आप हर हिंदुस्तानी के जीने के हक़ में शामिल है।

ख़ासतौर से ऐसे हालात में जब एशियाई देश अचानक बेहिसाब गर्मी और अचानक झमाझम बारिश से बाढ़ और फसलों के बर्बाद होने के तमाम रिकॉर्ड ध्‍वस्‍त होने से हर साल रूबरू हो रहे हैं। साल 2022 में हीट वेव के मामले में करीब सवा सौ साल का रिकॉर्ड टूट गया। यूरोप ने पहली बार अनुभव किया कि थर्ड वर्ल्ड कहे जाने वाले कई देश आखिर गर्मी की कैसी मार झेलते हैं।

पिछले साल भारत में असम में, फिर मध्य प्रदेश से सटे राजस्थान के कुछ हिस्सों में अत्यधिक बारिश, और हाल ही में बेंगलुरू में बारिश के बाद बाढ़ जैसी स्थिति से किसानों को मॉनसून से पहले और बाद दोनों ही वक्त की फसल से भी हाथ धोना पड़ा। इन सभी घटनाओं ने दिखाया है कि कैसे दक्षिण एशिया में चरम घटनाओं की मात्रा में तेजी से वृद्धि हुई है।

ग़ौरतलब है कि ऐसे वक़्त में जब भारत लगातार 2023 -24 में दूसरे साल गर्म सर्दियों से जूझ रहा है, विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के लिए असामान्य मौसम पैटर्न को जिम्मेदार मानते हैं।

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला जो जल जंगल ज़मीन और हवा पानी जैसे हर मामले में एक का मील का पत्थर साबित होगा। दरअसल यह उस गंभीर खतरे की पहचान है जो जलवायु परिवर्तन से लोगों के ज़िन्दगी बसर करने पर पड़ता है। इस फैसले से उम्मीद बंधी है कि अब जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए ठोस कदम न उठाने पर सरकारों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। उधर यूरोप की सबसे बड़ी ह्यूमन राइट्स कोर्ट ने भी जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा न मिलना लोगों के मानवाधिकार का उल्लंघन बताया है।

जो कम ज़िम्मेदार हैं, वो ज़्यादा भुगतेंगे - लगभग हर जगह क्लाइमेट चेंज से नुक़सान हो रहा है, लेकिन दक्षिणी एशियाई देश सबसे अधिक प्रभावित होंगे क्योंकि वे पहले से ही गर्म हैं। वहां तापमान में और वृद्धि सबसे अधिक हानिकारक होगी। जलवायु परिवर्तन के लिए कम ज़िम्मेदार देशों को उच्च आय वाले देशों की तुलना में आय में 60% अधिक और अधिक एमिशन करने वाले देशों की तुलना में 40% अधिक आय में कमी का सामना करना पड़ेगा। उनके पास जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए संसाधन भी कम हैं।

ज्ञात हो कि सन् 2020 में दुनिया में पहली बार वायु प्रदूषण मौत का सबब बना था। ब्रिटेन की एक अदालत ने यह फ़ैसला देकर इतिहास रचा था। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि लंदन की एक अति व्यस्त सड़क के पास स्थित अपने मकान में अपनी मां के साथ रहने वाली 9 साल की इला किस्सी डेब्रा की मौत के कारणों में वायु प्रदूषण भी शामिल है। इस मामले ने यह स्वास्थ्य, साफ़ हवा और जीवन जीने के उस अधिकार के बीच संबंधों की तरफ ध्यान खींचा, जिसकी ब्रिटेन तथा अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून दोनों में ही गारंटी दी गई है।

डॉ. सीमा जावेद

पर्यावरणविद & साइंस,जलवायु परिवर्तन & साफ़ ऊर्जा की कम्युनिकेशन एक्सपर्ट

Estimated to have 22% adverse impact of climate change on India's economy by 2050.