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संविधान का गलत इस्तेमाल रोकने को जनजागरण अब सबसे जरूरी
अब खबरें आ रही हैं। शासकीय आयोजन होने से महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर हर तबके के लोगों ने संविधान दिवस मनाया। बंगाल में ममता बनर्जी की इजाजात न होने से भले ही अंबेडकरी संगठन और बड़े नेता रास्ते पर नहीं निकले, लेकिन उत्तर बंगाल और दक्षिण बंगाल में सभी तबकों ने लोकतंत्र उत्सव मनाया। नई दिल्ली, राजस्थान, ओड़ीशा, बिहार, झारखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ से लेकर अलग-अलग जगह अलग-अलग संगठनों ने अस्मिताओं के आर-पार संविधान दिवस मनाने की शुरुआत कर दी है। अलग-अलग राज्यों से रपटें जो मिलेंगी हम उसे साझा जरूर करेंगे।
संविधान का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए जनजागरण अब सबसे जरूरी है। क्योंकि सतावर्ग के हितों में ही अब तक संविधान और लोकतंत्र का इस्तेमाल होता रहा है और चूंकि देश में कानून का राज नहीं है, नस्ली भेदभाव है बहुसंख्य जनता के खिलाफ जो अस्मिताओं बंटी वोट बैंक राजनीति की शरण में सांसों की मोहलत जीने को मजबूर है, इसलिए अब इस पर गौर करना जरूरी है कि इस संविधान की खूबिया क्या हैं और खामियां भी कौन सी हैं।
कैसे संविधान का गलत इस्तेमाल करते हुए कृषि और कारोबार से जनता बेदखल है और समता और सामाजिक न्याय के बदले वर्चस्ववादी नस्ली जनसंहारी सैन्यराष्ट्र में बदल गया है यह लोक गणराज्य भारत, इस समीकरण का हल निकलना अब जीवन मरण का प्रश्न है।
संविधान का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए जनजागरण अब सबसे जरूरी है। क्योंकि धर्मोन्मादी राष्ट्रवादी की असली पूंजी हमारी अज्ञानता और अंध विश्वास है और हम धर्मोन्मादी सत्ता वर्चस्व के गुलाम हैं तो देश भी गुलाम होता रहा और अब वह मुकम्मल मुक्त बाजार है और इस देश के नागरिकों के लिए कोई मौलिक अधिकार बचे ही नहीं हैं।
संविधान का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए जनजागरण अब सबसे जरूरी है। क्योंकि संवैधानिक रक्षा कवच तहस नहस है और संसदीय प्रणाली बाहुबलियों और धनपशुओं की कठपुतली है।
आज आनंद तेलतुंबड़े से इसी सिलसिले में लंबी बातचीत हुई और हमने उनसे खुल्ला दस्तावेज बनाने का आवेदन किया कि कैसे अब तक भारतीय संविधान का गलत इस्तेमाल करते हुए हमारे मौत का समान तैयार करता रहा है प्रभु वर्ग और किन धाराओं और प्रावधानों की आड़ में नवनाजी जायनी अमेरिका गुलाम देश के संसाधनों को प्रकृति और मनुष्यता के विरुद्ध विदेशी पूंजी के हवाले करके आम जनता के खिलाफ युद्ध, गृहयुद्ध, सलवा जुड़ुम आफसा और दंगों की राजनीति कर रहा है।
आनंद ने वायदा किया है कि वे ऐसा जल्दी ही करेंगे। हम तुरंत उसे साझा भी करेंगे।
हम संविधान विशेषज्ञों और कानून के जानकारों से भी जानना चाहेंगे कि लोकतंत्र क्यों भारत में दम तोड़ रहा है, क्यों अधिसंख्य जनता नस्ली भेदभाव के शिकार हैं और उन्हें जीवन के किसी भी क्षेत्र में क्यों नहीं कोई अवसर मिलता है और उनके हक हकूक का खात्मा किस तरह संविधान की धज्जियां उड़ाकर की जा रही हैं।
इस सिलसिले में हम माननीय न्यायविदों का मार्गदर्शन भी मांगेंगे।
यह इसलिए भी जरूरी है कि नवनाजी सत्ता वर्चस्व कारपोरेट हित में धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की आड़ में भारतीय जनता को जीने के लिए अस्मिताबद्ध एक दूसरे समुदायों के खिलाप मोर्चाबंद युद्धरत पैदल फौजों में बदल दिया है।
यह इसलिए भी जरूरी है कि संघ परिवार ज्ञान विज्ञान, इतिहास, भूगोल से लेकर संविधान और लोकतंत्र, प्रकृति और मनुष्यता, भाषा, माध्यम, सभ्यता और संस्कृति वैदिकी पुनरूत्थान के मनुस्मृति एजंडे के तहत बदल रहा है।
यह इसलिए भी जरुरी है कि महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने संविधान दिवस को शासकीय आयोजन बनाकर संकेत दे दिया है कि बाबासाहेब के संविधान का वे कैसे गलत इस्तेमाल करना चाहते हैं। जैसे हमारे तमाम पुरखे और उनकी विरासत बेदखल है, जैसे अंबेडकरी आंदोलन का केसरियाकरण है वैसे ही नेहरु और सरदार पटेल की तरह संघ परिवार बाबा साहब को हमारे दिलोदिमाग से निकाल कर वैदिकी कर्मकांड में कैद करने जा रहा है। इसलिए अंध आस्था के बदले पूरी वैज्ञानिक चेतना और विवेक के साथ हमें अपने बाबा साहेब को नये सिरे से पहचानना होगा और उनके आंदोलन की जनपक्षधर धार को तेज करके इस कयामती फिंजां के खिलाफ मोर्चा बंद होना होगा।
यह इसलिए भी जरूरी है कि देश भर में हमारे ही स्वजनों के खून की नदियां बह रही हैं और हमारी आंखें देख नहीं पाती, जैसे हम ग्लेशियरों के रेगिस्तान में बदलते देख नही रहे हैं।
जैसे हम समूची हरियाली को सीमेंट के जंगल में तब्दील होते देख नहीं रहे हैं।
जैसे हम नदियों, झरनों, समुंदरों और दूसरे तमाम जलस्रोतों का सूखते हुए नहीं देख पा रहे हैं।
जैसे हम अपने भोजन और पेय में जहरीला रसायन, अपनी सांसों में प्राणनाशक गैस और रेडियोएक्टिव तरंगों का आयात समझ नहीं पा रहे हैं।
जैसे हम खुद को अपने घर, जल जंगल जमीन कारोबार नौकरी आजीविका पर्यावरण और नागरिकता से बेदखल होते हुए महसूस नहीं कर रहे हैं।
क्योंकि हम लोकतंत्र को अब भी समझ नहीं रहे हैं और न भारतीय संविधान के बारे में हमारी कोई धारणा है।
आज सुबह कश्मीर घाटी से फोन आया और जो सूचनाएं मिली वह भारत में संविधान और लोकतंत्र के वर्तमान और भविष्य के लिए सकारात्मक है।
कश्मीर घाटी और जम्मू में भी राष्ट्रीय झंडे के साथ संविधान दिवस मनाया गया है।
संघ परिवार भले ही पंजाब, बंगाल और तमिलनाडु के साथ दंडकारण्य, पूर्वोत्तर और दक्षिणात्य धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के बुनियाद पर जीत लें, लेकिन कश्मीर घाटी में भारी मतदान संघ परिवार के विरुद्द मोर्चाबंद जनता का तीखा प्रतिवाद है।
इस सूचना का सच मतगणना के बाद सामने आ जायेगा और आगे खुलासा कश्मीर को संवेदनशील बनाने वाले लोगों की सुविधा के लिए फिलहाल करने की जरूरत नहीं है।
O- पलाश विश्वास


