26 जून 1975 देश के लोकतांत्रिक इतिहास का काला दिन है और रहेगा
26 जून 1975 देश के लोकतांत्रिक इतिहास का काला दिन है और रहेगा
'इमरजेंसी'-देश के इतिहास का काला अध्याय
शिवानन्द तिवारी
26 जून 1975 देश के लोकतांत्रिक इतिहास का काला दिन है और रहेगा। देश का इतिहास उस काले दौर को नहीं भूलेगा। आज देश की जो नौजवान पीढ़ी है, उसने इमरजेंसी का वह दौर नहीं देखा है। वह इमरजेंसी की कारगुजारियों से अवगत नहीं है। उसे अवगत कराने की जरूरत भी नहीं महसूस की जा रही। या यूं कहें कि जानबूझ कर उसे उससे अवगत नहीं कराया जा रहा तो कोई अशियोक्ति नहीं होगी। जबकि लोकतंत्र को कायम रखने और मजबूत बनाने के लिए नौजवान पीढ़ी को उस दौर की जानकारी बेहद जरूरी है।
इस प्रकार उन्होंने इमरजेंसी लगाने की परिस्थिति पैदा करने की पूरी जवाबदेही जेपी और उनके नेतृत्व में चलने वाले आंदोलन पर डाल दिया। लेकिन सवाल है कि क्या सचमुच इमरजेंसी जेपी और उनके आंदोलन के दबाव में लगाई गई थी? हकीकत है कि उस समय तथा इमरजेंसी के बाद सामने आए तथ्यों ने इंदिरा जी के दावे को सफेद झूठ साबित कर दिया है।
मुझे याद है 12 जून को जेपी के साथ ही हमलोगों ने पीरो (भोजपुर) के डाकबंगला में जगमोहन लाल सिन्हा द्वारा दिया गया इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सुना था। इस फैसले में राजनारायण जी की चुनाव याचिका पर सुनवाई करते हुए इंदिरा जी द्वारा अपने चुनाव में भ्रष्टाचार का सहारा लेने के आरोप को सही पाते हुए उसको अवैध घोषित कर दिया गया था। जेपी भोजपुर के नक्सल प्रभावित इलाके में दो दिन के दौरे पर थे। उस क्षेत्र में अपनी दो सभाओं में उन्होंने इस फैसले का जिक्र तक नहीं किया। जबकि हम लोग उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए बेचैन थे।
दूसरे दिन आरा के रमना मैदान की सभा में जेपी ने इंदिरा गांधी से नैतिकता के आधार पर प्रधान मंत्री के पद से इस्तीफा देने की मांग की। उसके बाद देश भर से इस्तीफे की मांग शुरू हो गई।
दरअसल प्रधान मंत्री की कुर्सी को बचाना ही इमरजेंसी की एकमात्र वजह थी। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को रद्द नहीं किया। जस्टिस कृष्ण अय्यर ने उनको अंतरिम राहत दी। उन्होंने कहा इंदिरा गांधी संसद में जा सकती हैं, लेकिन न तो बहस में भाग लेंगी और न वोट डाल पायेंगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद ही इमरजेंसी की योजना पर विचार- विमर्श शुरू हो गया था। इंदिरा जी की दोस्त पुपुल जयकर ने लिखा है कि गिरफ्तारी की लिस्ट बनाई जाने लगी। खुद इंदिरा जी उस लिस्ट को बना रहीं थीं। इमरजेंसी की घोषणा पर राष्ट्रपति जी के दस्तखत के पहले ही इमरजेंसी के प्रावधानों के अंतर्गत गिरफ्तारी शुरू हो गई। जेपी, मोरारजी देसाई सहित तमाम बड़े नेता 25 जून की आधी रात से लेकर अगली सुबह तक गिरफ्तार कर लिए गए। जबकि इमरजेंसी की घोषणा पर राष्ट्रपति का दस्तखत 26 जून को सुबह दस बजे के लगभग हुआ था और दोपहर में वह गजट हुआ।
इन कहानियों को बार-बार याद करने और बराबर चौकस रहने की जरूरत है, ताकि देश को दुबारा कभी वैसे काले दिन का सामना नहीं करना पड़े। साथ ही साथ कोई सत्तारूढ़ दल वैसी हरकत करने की कोशिश नहीं कर सके, इसके लिए भी निरंतर सजगता जरूरी है।


