शेष नारायण सिंह

के वी एल नारायण राव नहीं रहे। एनडीटीवी को राधिका रॉय की बहुत छोटी कंपनी से बड़ी कंपनी बनाने में जिन लोगों का योगदान है, नारायण राव उसमें सरे फेहरिस्त हैं। 63 साल की उम्र में कूच करके नारायण राव ने बहुत लोगों को तकलीफ पंहुचाई है, मुझे भी।

बृहस्पतिवार दिनांक २० नवम्बर 1997 के दिन मैं नारायण राव से पहली बार मिला था। ने प्रवेश दिलाया था। हिंदी विभाग की प्रमुख मृणाल पांडे ने किसी ऐसे पत्रकार को अपने नए कार्यक्रम के लिए लेने का फैसला किया था, जो बीबीसी के कार्य पद्धति को जानता हो। पंकज ने कहा कि बीबीसी छोड़कर तो कोई नहीं आएगा लेकिन अगर आप कहें तो एक आउटसाइड कंट्रीब्यूटर को बुला दूं। मृणाल जी ने पंकज से सुझाव माँगा तो उन्होंने मेरा नाम बता दिया। मृणाल जी ने मुझे राधिका रॉय से मिलवाया और वहीं, प्रणय रॉय और आई पी बाजपाई भी आ गए और मेरा इंटरव्यू हो गया। चुन लिया गया। राधिका ने कहा अब आप नरायन के पास जाइए क्योंकि Only he negotiates the money। इस तरह मेरी, के वी एल नारायण राव से डब्लू-17 गेटर कैलाश-1 वाले दफ्तर में मुलाक़ात हुयी।

नारायण राव उन दिनों जनरल मैनेजर थे। मालिकों के बाद सबसे बड़ी पोजीशन वही थी। मैं अख़बार से गया था, मुझे पता ही नहीं था कि एनडीटीवी में तनखाहें बहुत ज्यादा होती थीं। मुझे जो मिल रहा था मैने उस से काफी आगे बढ़ कर बताया। नारायण राव ने कहा कहा कि सोच लीजिये। मुझे नौकरी ज़रूर चाहिए थी, मैंने थोड़ा कम कर दिया। मुस्कराते हुए टोनी ग्रेग की लम्बाई वाले गंभीर आवाज वाले शख्स ने कहा कि आपने जो पहले कहा था, कंपनी ने आपको उस से ज्यादा धन देने का फैसला लिया है। अगर आप उससे ज्यादा कहते तो भी मिल सकता था। बहरहाल अब आप जाइए, काम शुरू करिए। आपकी उम्मीद से ज्यादा तनख्वाह आपको मिलेगी।

आज उस दिन को बीस साल हो गए थे। मैं आज ही सोच रहा था कि अपने बीस साल पहले के दिन को याद करूंगा और कुछ लिखूंगा। मैंने बिलकुल नहीं सोचा था कि उस दिन को याद करते हुए मैं आज के वी एल नारायण राव के लिए श्रद्धांजलि लिखूंगा। दिल एकदम टूट गया है।

मैं एनडीटीवी में ज़्यादातर सुबह ही शिफ्ट में काम करता था। सुबह छः बजे से दिन के दो बजे तक। उसी शिफ्ट में अंग्रेज़ी बुलेटिन की इंचार्ज रेणु राव भी हुआ करती थीं। रेनू ने नारायण राव से विवाह किया था। रेनू, स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा की भांजी थीं। मैं बहुगुणा जी को जानता था और इन दोनों की शादी में बहुगुणा जी के आवास सुनहरी बाग़ रोड पर शामिल हुआ था। यह दोनों इन्डियन एक्सप्रेस में मिले थे जहां राधिका रॉय डेस्क की इंचार्ज हुआ करती थीं। बाद में नारायण राव, आई आर एस में चुन लिए गए। कुछ साल वहां काम किया लेकिन जब राधिका रॉय ने एनडीटीवी को बड़ा बनाने का फैसला किया तो उन्होंने नारायण राव को अपने साथ आने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने नौकरी छोड़ी और एनडीटीवी आ गए। रेनू वहां पहले से ही थीं। एनडीटीवी में काम करने का जी बेहतरीन माहौल था, अब शायद नहीं है, उसको राधिका रॉय की प्रेरणा से नारायण राव ने ही बनाया था।

नारायण राव से किसी ने पूछा कि इनकम टैक्स के बड़े पद पर आप थे, उसको छोड़कर प्राइवेट कंपनी में क्यों आ गए। उन्होंने कहा कि वहां तनखाह कम थी, यहाँ पैसे बनाने आया हूँ। नारायण राव ने इनकम टैक्स विभाग में भी बहुत इमानदारी का जीवन जिया था। उनके पिता, स्व. जनरल के वी कृष्णा राव, भारतीय सेना के प्रमुख रह चुके थे। रिटायर होने के बाद जम्मू-कश्मीर, त्रिपुरा, नगालैंड और मणिपुर के राज्यपाल भी हुए। नारायण राव ने अपने बहुत ही बड़े इन्सान और आदरणीय पिता के गौरव को अपना आदर्श मानते थे। के वी एल नारायण राव को मैं कभी नहीं भुला पाऊंगा।