84 करोड़ सर्वहारा के लिए भारत के वामपंथी दलों के पास न कोई ठोस नीति है न कार्यक्रम- अभिनव सिन्हा
84 करोड़ सर्वहारा के लिए भारत के वामपंथी दलों के पास न कोई ठोस नीति है न कार्यक्रम- अभिनव सिन्हा
भला कोई कम्युनिस्ट पार्टी सिंगूर कैसे कर सकती है?
टोरंटो। मजदूर बिगुल के संपादक, दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थी और मजदूर कार्यकर्ता 34 वर्षीय अभिनव सिन्हा ने कहा है कि भारतीय वामपंथी दलों के पास 84 करोड़ सर्वहारा के लिए कोई ठोस कार्यक्रम नहीं हैं.
श्री सिन्हा तुरत-फुरत आयोजित की गयी एक बैठक में ब्राम्पटन में ‘भूमंडलीकरण युग में मेहनतकश तबके के प्रतिरोध की नई शक्लें और रणनीतियां' नामक विषय पर बोल रहे थे.
मजदूर आंदोलनों के अपने 17 साल के अनुभवों को शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय राज्य में 23 करोड़ मजदूर इंडस्ट्री, 33 करोड़ खेतीबाड़ी और 27 करोड़ कामगारों का ऐसा तबका है जिसके पास थोड़ी जमीन भी है लेकिन दूसरी जगह काम करके भी वह आपनी आय जुटाता है. इस कामगार तबके का 93% हिस्सा असंगठित है. भारतीय वामपंथी दलों द्वारा ट्रेड यूनियनें केवल 7% मजदूर तबके का नेतृत्व करती हैं जो पब्लिक सेक्टर (पोस्टल सर्विस, बीमा, बैंक, रेलवे इत्यादि) क्षेत्र से जुड़ी हैं और मजदूर यूनियनें केवल इस विशिष्ट मजदूर वर्ग के आर्थिक हितों को स्वर देने का काम करती हैं। जैसा कि जाहिर है आजकल उनके एजेंडे पर सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू कराना ही प्रमुख है.
अभिनव सिन्हा ने कहा कि इतने व्यापक मजदूर वर्ग को संगठित और उसका राजनीतिकरण किये बिना भारत में समाजवादी क्रांति का ऐतिहासिक कार्यभार कभी पूरा नहीं किया जा सकता. मारुति सुजुकी, हौंडा आदि के मजदूर आन्दोलनों के वक्त पम्परागत मजदूर यूनियनों के व्यवहार पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि हड़ताली मजदूरों ने जब स्थानीय मजदूर यूनियनों से उनके समर्थन में व्यापक हड़ताल करने का आह्वान किया तब उक्त संगठनों ने उनकी मांगों को बिना कोई ठोस जवाब दिए इंकार कर दिया. जाहिर है इन संगठनों के केन्द्रीय नेतृत्व के पास मजदूर आन्दोलनों को तीखा करने और व्यापक जनांदोलनों को संचालित करने का न कोई ठोस कार्यक्रम है और न इच्छा शक्ति. इसका उदहारण देते हुए उन्होंने कहा कि ये संगठन कांट्रेक्ट सिस्टम को ख़त्म करने के बजाय उसे रेग्यूलेट करने की मांग करती हैं जो श्रम शक्ति के वर्गीय हितों पर कुठाराघात है.
भरतीय वाम आन्दोलन पर अपनी आलोचना प्रस्तुत करते हुए अभिनव सिन्हा ने कहा कि इसमें स्वतन्त्र चिंतन का अभाव बार-बार देखा जा सकता है जिससे वाम आन्दोलन के आत्मगत वैचारिक संकट को भी देखा जा सकता है और वस्तुगत संकट को भी पहचाना जा सकता है. उन्होंने इटली के प्रसिद्द कम्युनिस्ट नेता और विचारक ग्राम्शी को उद्धृत करते हुए कहा कि कम्युनिस्टों को कारखानों के साथ-साथ उनकी बस्तियों में जाकर सामुदायिक संगठनों को खड़ा करना आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत है जिसे ग्राम्शी ने समाज के अणु स्तर तक घुलमिल जाने की नीति कहा था. इस काम को किये बिना भारत में इंकलाबी शक्तियों को एकजुट नहीं किया जा सकता और न फासीवादी ताकतों को सड़कों, मोहल्लों में शिकस्त दी जा सकती.
मजदूर बिगुल द्वारा किये जा रहे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और हरियाणा पंजाब आदि का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि इन प्रयोगों को ज़मीन पर उतार कर उन्हें न केवल मजदूरों की मांगों को फैक्ट्री मालिकों से मनवाने में कामयाबी मिली है बल्कि आंगनबाड़ी स्तर तक संघी प्रचार का मुकाबला करने में भी सफलता मिली है.
विश्व वित्तीय पूंजी के संकट को चिन्हित करते हुए अभिनव सिन्हा ने कहा कि 1970 के दशक के बाद इसकी विकास दर कभी दो प्रतिशत से ऊपर नहीं गयी, अब वित्तीय पूंजी और इंडस्ट्रियल पूंजी पूरी दुनिया में सस्ते कच्चे माल और सस्ते श्रम का शिकार कर रही है इसका स्वरूप ‘हंटर और गेद्रर’ का है. उन्होंने कहा कि 1920 के दशक में आरंभ हुआ फोर्डिस्म जिसके तहत बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयों का निर्माण किया गया था, एक ओर से कच्चा माल डाला जाता था और दूसरी ओर से तैयार उत्पाद निकलता था, और इक छत के नीचे हजारों कामगार काम करते थे, वह युग समाप्त हो चुका है, आज जूते के फीते किसी एक देश में बनते हैं, सोल किसी दूसरे देश में और अप्पर पार्ट कहीं ओर, उसे जोड़ा जाता है किसी दूसरे मुल्क में. भारत सहित अब कारें किसी एक जगह नहीं बनतीं, बल्कि उसके पुर्जे अलग-अलग जगह बनवाकर उसे असेम्बल किया जाता है. मजदूरों के लिए ऐसे हालत पैदा कर दिए गए हैं कि उन्हें एक मिनट में 72 फंक्शन करने होते हैं, उन्हें विश्राम देने के समय पर कटौती होती है. इन मानव विरोधी श्रम नीतियों का विरोध करने पर अब फैक्ट्री मालिक एक मजदूर को बर्खास्त नहीं करता वरन सैकड़ों लोगों को काम से हटा देता है और उनके मुँह पर कहता है कि मजदूरों की औकात कुत्तों से भी बदतर है, एक को हटाने पर 10 दूसरे श्रमिक उसे आसानी से मिल जाते हैं.
भारतीय राज्य के चरित्र पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने भाकपा माले से विभिन्न संगठनों द्वारा उसे अर्द्ध सामन्ती अर्द्ध ओपनिवेशिक और दलाल पूंजीपति की अवधारणाओं को ख़ारिज करते हुए उसे पिछड़े दर्जे का पूंजीवादी चरित्र बताया जिसका अपना राष्ट्रवादी चरित्र भी है.
माकपा के पूर्व सांसद मास्टर भगत राम के प्रश्न के उत्तर में अभिनव सिन्हा ने कहा कि हम 1951 तक की भाकपा और उसके नेतृत्व में चलाये गए तेलांगना, तेभागा जैसे आंदोलनों का भरपूर समर्थन और उनकी उपलब्धियों पर संतोष व्यक्त करते हैं लेकिन ख्रुश्चेव के तीन शांतिवादी सूत्रों के प्रभाव में आकर उसके संशोधनवाद की आलोचना भी करते हैं ठीक उसी तरह माकपा की वर्धमान कांग्रेस को हम ख़ारिज करते है. भाकपा माले लिबरेशन के संसदीय संशोधनवाद की भी हम आलोचना करते हैं, उसके दिवंगत नेताओं विनोद मिश्र और नागभूषण पटनायक द्वारा भेजा गया देंग शियाओ पेंग को भेजा गया बधाई सन्देश चीन के सन्दर्भ में एक उनके वैचारिक दिवालियेपन का सबूत है. मजदूर बिगुल चीन को समाजवादी फासिस्ट व्यवस्था मानता है.
वाम एकता के सन्दर्भ में किये गए एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने माले के विभिन्न घटकों में हुई एकता और उसके नतीजों का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी मार्क्सवादी दल में एकता सिर्फ कार्यक्रम, नीतियों और विचारधारात्मक एकता के आधार पर ही संभव है, इनके बिना की गयी एकता शीघ्र खंडित होने के लिए बाध्य है। उन्होंने कहा कि हमारी राजनीतिक जरूरत वैचारिक मुद्दों को पीछे रखते हुए हम मुद्दा आधारित मदद करने और एकता के पक्षधर हैं। लाख कमियों के बावजूद मजदूर बिगुल के जनसंगठनों ने जवाहर लाल यूनिवर्सिटी के कन्हैय्या कुमार और उस आन्दोलन का समर्थन ही नहीं किया बल्कि उसका बचाव भी किया है. पालिमिक्स अपनी जगह है लेकिन मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में व्यापक वाम एकता और संयुक्त कार्यवाही से हमें कोई हिचक नहीं है. लेकिन माकपा का पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ किया गया समझौता किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि भला कोई कम्युनिस्ट पार्टी सिंगूर कैसे कर सकती है? यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए.
उत्तर अमेरिका के अपने संक्षिप्त लेकिन व्यस्त दौरे में अभिनव सिन्हा ने अमेरिका की विश्व विख्यात यूनिवर्सिटी एम आई टी, हार्वर्ड जैसे कई विश्वविद्यालयो में अपने व्याख्यान दिए। दौरे के अंतिम चरण में उन्होंने यॉर्क यूनिवर्सिटी के एक पैनल चर्चा में भाग लिया और ब्राम्पटन में विभिन्न कम्युनिस्ट दलों से जुड़े कार्यकर्ताओ की एक बैठक में भी शिरकत की, जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी कनाडा और रेशनलिस्ट सोसाईटी के कार्यकर्ताओं ने शिरकत की. सभा की अध्यक्षता रेशनल सोसाईटी के कन्वेनर बलराज शोकर ने की और संचालन इन पंक्तियों के लेखक ने किया.


