9/11 के बाद सीआईए ने मानवता को बार-बार अपमानित किया
9/11 के बाद सीआईए ने मानवता को बार-बार अपमानित किया
अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी, सीआईए को हमेशा से ही गैरकानूनी तरीके से अमरीकी मनमानी को लागू करने का हथियार माना जाता रहा है। तरह-तरह की आपराधिक गतिविधियों में सीआईए को अक्सर शामिल पाया जाता है। दुनिया भर में कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों की हत्या के आरोप भी इस संगठन पर लगते रहे हैं। इसी क्रम में अमरीकी सीनेट की एक रिपोर्ट को देखा जा सकता है, जिसमें लिखा है कि नौ ग्यारह के आतंकी हमले के बाद अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी ने अपनी हिरासत में लिए गए लोगों से जिस तरह से पूछताछ की उस से लगता है कि मानवता को हर क़दम पर अपमानित किया गया था। इसी हमले के बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने आतंकवाद को धार्मिक आधार देने के अपने प्रयास को अमली जामा पहनाने की कोशिश शुरू कर दी थी। इस्लामिक आतंकवाद, जेहादी आतंक आदि शब्द उसी दौर में ख़बरों की भाषा में घुस गए थे जो अब तक मौजूद हैं। इसी दौर में अल कायदा के खिलाफ काम कारने के लिए सीआईए को इतने अधिकार दे दिए गए कि उसने पूरी दुनिया में अमरीकी विदेश विभाग के काम को रौंदना शुरू कर दिया और कई बार तो विदेश विभाग की मर्जी के खिलाफ भी सीआईए ने काम किया है। यह सारी बात सीआईए के बारे में अमरीकी सीनेट की ताज़ा रिपोर्ट में दर्ज है।
अमरीकी सीनेट की एक कमेटी की जांच रिपोर्ट आई है। करीब 6000 पृष्ठों की रिपोर्ट के केवल 600 पृष्ठ ही जारी किये गए हैं लेकिन उनके आधार पर ही कहा जा सकता है कि सीआईए ने मानवता के प्रति अपराध की सारी सीमाएं पार कर ली थीं। रिपोर्ट में कैदियों से पूछ-ताछ के अमानवीय तरीकों का उल्लेख किया गया है और यह बताया गया है कि किस तरह से डॉक्टरों की मर्जी के खिलाफ इस तरह की कारगुजारी की जाती थी। पूछ-ताछ का सबसे खतरनाक तरीका वाटरबोर्डिंग का है। इसमें कैदी के मुंह पर कपड़ा लपेट कर उसे पीठ के बल लेटा दिया जाता है। मुंह पर पड़े कपड़े पर पानी की बौछार डाली जाती है। उस व्यक्ति को लगता है कि वह पानी में डूब रहा है। नाक और मुंह से साँस लेना दूभर हो जाता है और वह कई बार तो बेहोश भी हो जाता है। अगर सांस लेने में लगातार मुश्किल आती रही तो व्यक्ति के मर जाने का भी ख़तरा रहता है। संदिग्ध व्यक्तियों से पूछ-ताछ का जो दूसरा सबसे अमानवीय तरीका अपनाया गया वह उनको खाना खिलाने का था। गुदा के रास्ते खाना खिलाने का यह पैशाचिक काम भी पूरी तरह से राक्षसी प्रवृत्ति का नमूना है। सीआईए ने जांच और प्रताड़ना के यह केंद्र पूरी दुनिया में अपने केन्द्रों पर बना रखा था। अमरीकी प्रभाव वाले जिन देशों में सीआईए के औपचारिक दफ्तर हैं, वहां इस तरह के जांच केंद्र बने हुये हैं। अफगानिस्तान, थाईलैंड, रोमानिया, लिथुआनिया और पोलैंड में सीआईए के आतंक के केंद्र बने हुए हैं। जिनको सरकारी भाषा में पूछताछ के केंद्र बताया जाता है।
नौ ग्यारह के आतंकी हमले के बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश जूनियर लगभग बौखला गए थे। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि अमरीका की सरकार आतंकवाद को ख़त्म कर देगी, चाहे जो करना पड़े। सीनेट की कमेटी की रिपोर्ट से बाहर आयीं सीआईए की जांच की यह तरकीबें उसी में से एक हैं। सी आई ए का यह तामझाम बुश जूनियर के राज में ही रहा, सत्ता में आने पर ओबामा ने इसे ख़त्म कर दिया था. अमरीकी सीनेट की कमेटी की जो रिपोर्ट आयी है वह अमरीकी राष्ट्रपति भवन को आतंकवाद की मशीनरी के रूप में पेश करता है। अमरीकी सरकार में जिम्मेवार पदों पर तैनात लोगों को भी व्हाईट हाउस के लोग अन्धकार में रख रहे थे। एक आतंरिक मेमो में अमरीकी राष्ट्रपति भवन के एक आदेश का ज़िक्र किया गया है जिसमें लिखा है कि तत्कालीन विदेश मंत्री कालिन पावेल को इसके बारे में कुछ न बताया जाए क्योंकि अगर उनको पता चल गया तो हल्ला मचाएंगे।
इस रिपोर्ट से इसी तरह की और भी बहुत सारी अजीबोगरीब जानकारी मिली है। एक जेल में सीआईए के करीब 119 कैदी हिरासत में थे, जिनमें से 26 ऐसे कैदी थे जिनको गलती से उठा लिया गया था लेकिन जब उठा लिया तो उनको बंद रखा गया क्योंकि बाहर जाकर वे सीआईए की पोल न खोल दें। इस रिपोर्ट की ख़ास बात यह है कि मानवीय मूल्यों को पूरी तरह से दरकिनार कर देने के बाद भी सीआईए को वह नतीजे नहीं मिले जिसकी उनको उम्मीद थी। ओसामा बिन लादेन की खोज के बारे में भी इस रिपोर्ट में दावे किये गए हैं, लेकिन वहां भी सीआईए के दावे पूरी तरह से गलत हैं। जांच के इन तरीकों से ओसामा बिन लादेन को तलाशने में कोई मदद नहीं मिली। हालांकि कमेटी की इस जांच को रिपब्लिकन पार्टी के सीनेट सदस्यों ने गलत बताया है लेकिन जानकार बताते हैं कि बुश जूनियर के राज की खामियों को उनकी पार्टी वाले आसानी से स्वीकार नहीं करते।
जबकि वर्तमान राष्ट्रपति ओबामा ने इस रिपोर्ट की तारीफ़ की है और कहा है कि अल कायदा को तबाह करने के अपने कार्यक्रम में सीआईए को बड़ी सफलता मिली है लेकिन कैदियों के साथ हुए आचरण से अमरीकी मूल्यों की अनदेखी की है और उनके कारण अमरीका को दुनिया के सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा। इस रिपोर्ट के आने के बाद सीआईए ने भी एक जवाब दिया है। सीआईए ने स्वीकार किया है कि उनसे गलती तो हुयी है लेकिन उनका इरादा सरकार को अँधेरे में रखने का नहीं है। अमरीकी प्रबुद्ध वार्ग इस बात का विश्वास नहीं कर रहा है क्योंकि पकड़े जाने पर हर अपराधी अपने इरादों को पाक साफ़ बताता है। सीआईए ने यह भी दावा किया है कि इस तरह से को जानकारी इकट्ठा की गयी, सीआईए को तबाह करने में उससे बहुत मदद मिली है। सीआईए ने यह भी दावा किया कि तथाकथित इस्लामी आतंकवाद को ख़त्म करने में जांच के इन तरीकों से बहुत फ़ायदा मिला है लेकिन सबको मालूम है कि यह बिलकुल गलत दावा है। पूरी दुनिया में सभ्य समाजों में किसी भी आतंकवाद को इस्लामी आतंकवाद का नाम देने की घोर निंदा हुयी है और सीरिया और इराक में इस्लामिक स्टेट के संगठन के तहत जो आतंक चल रहा है वह अल कायदा की ही पैदावार है। यहाँ यह नोट करना भी दिलचस्प होगा कि अल कायदा और ओसामा बिन लादेन शुरुआती दौर में अमरीका की मदद से ही फलते फूलते रहे थे। मौजूदा रिपोर्ट में जो कुछ भी लिखा गया है उसमें से ज़्यादातर सीआईए के अपने कर्मचारियों को लिखे गए पत्रों या आदेशों का उद्धरण है, इसलिए याह नामुमकिन है कि कोई भी इस रिपोर्ट पर गलत बयानी का आरोप लगा सके। मिसाल के तौर पर थाईलैंड के सीआईए ठिकाने में कैद अल कायदा के अबू जुबैदा पर जब पूछ ताछ के दौरान अत्याचार शुरू हुआ तो वहां तैनात सीआईए कर्मचारी रो पड़ा और यह बात उसने अपने बड़े अफसरों के पास लिख भेजी। उसकी बात को ज्यों का अत्यों रिपोर्ट में नक़ल कर दिया गया है।
इस रिपोर्ट से साफ़ हो गया है कि जो सीआईए घोषित रूप से केवल इंटेलिजेंस इकठ्ठा करने की संस्था थी, वह अब कैसे एक पुलिस संगठन के रूप में बदल चुकी है। इसके पहले अन्य देशों के मामलों में जो भी दखलन्दाजी की जाती थी वह शुद्ध रूप से गुपचुप तरीकों से की जाती थी लेकिन अब अल कायदा के नाम पर वह खुले आम धर पकड़ करना ड्रोन हमले करना, लोगों को गिरफ्तार करना आदि कर रही है। नौ ग्यारह के तुरंत बाद से ही राष्ट्रपति बुश जूनियर ने एक सीक्रेट आदेश पर दस्तखत कर दिया था जिसके अनुसार सीआईए को "उन लोगों को पकड़ने और हिरासत में लेने का अधिकार दे दिया गया था जो अमरीकी अवाम और उसके हितों के लिए ख़तरा बने हुए हों।" इस आदेश में पूछताछ करने का अधिकार नहीं दिया गया था। लगता है कि हस्बे मामूल सीआईए ने बहुत सारे अधिकार लपक लिए हैं।
O- शेष नारायण सिंह


