राम मंदिर आंदोलन और हिंदुत्ववादी राजनीति: एक अंदरूनी चर्चा
नब्बे के दशक में नर्मदा बचाओ आंदोलन के दौरान वडोदरा में हुए एक संवाद में हिंदुत्व, बाबरी मस्जिद, राम मंदिर आंदोलन और सत्ता संघर्ष की गहरी पड़ताल। पढ़ें, कैसे राजनीति और धार्मिक ध्रुवीकरण ने भारत के समाज और सत्ता को प्रभावित किया।
राम के नाम !
नब्बे के दशक में, नर्मदा बचाओ आंदोलन के तरफ से, मणिबेली मे चल रहे सत्याग्रह के क्रम में, बरसात के दिनों में बैठे हुए थे. और मैं, उस सत्याग्रह को समर्थन देने हेतु कलकत्ता से बड़ोदरा आया था. जहां से दूसरे दिन मुझे मणिबेली जाना था. तो वडोदरा के मेरे जजमान श्री. बा. जोशी थे, जो कभी कलकत्ता नैशनल लायब्रेरी में थे. इसलिए हमारी दोस्ती हुई थी. और वह कलकत्ता से नैशनल लायब्रेरी से रिटायर होकर, वडोदरा में रह रहे थे. जोशीजी के घर में पहुंचते ही, उन्होंने कहा कि "आपको आज रात के खाने के लिए डॉक्टर नेने ने आमंत्रित किया है." तो मैंने पूछा कि "'माणूस' शीर्षक से मराठी साप्ताहिक में दादूमियाँ नाम से जो कॉलम लिखते हैं वह ?" तो जोशीजी ने कहा कि "हां वही." मैंने पूछा कि "क्या आपको भी बुलाया है ?" तो उन्होंने कहा कि "हां मुझे आपको उनके घर ले चलने के लिए कहा है."
डॉ. नेने कट्टर सावरकराईट, पेशे से डॉक्टर, वडोदरा रियासत में उनके पुरखे कभी काम के लिए महाराष्ट्र से आकर बसे हैं. और मैं कॉलेज के दिनों में 'माणूस' साप्ताहिक का नियमित ग्राहक था. तो उस साप्ताहिक में डॉक्टर नेने का 'दादूमियाँ' के नाम से एक पन्ने का कॉलम होता था. और वह भले ही 'दादूमियाँ' नाम से लिखते थे. लेकिन घोर हिंदुत्ववादी होने की वजह से उनका कॉलम मुख्यतः मुस्लिमों के खिलाफ ही होता था.
मैंने मन- ही- मन में सोचा कि इस
हम जोशीजी मिलकर डाक्टर नेने के घर रात के खाने के हिसाब से, लेकिन शाम से ही उन्होंने कहा था "कि जल्द आईए क्योंकि बातचीत के लिए समय चाहिए." तो हम लोग शाम के समय उनके घर पहुंचे. शुरू में इधर-उधर की बातें होने के बाद, मैंने कहा कि "डाक्टर बाबरी मस्जिद का आंदोलन आप लोगों ने अभी क्यों शुरू किया ?" यह बात वी पी सिंह जब प्रधानमंत्री पदपर थे. (2 दिसंबर 19 89 -10 नवंबर 1990 ) उस समय के दौरान हो रही थी. तो मैंने डाक्टर नेने को पूछा कि 'दादूमियाँ' के नाम से आपके कॉलम ज्यादातर मुस्लिम शासकों ने भारत में सत्ता हासिल करने के बाद हिंदुओं के साथ क्या - क्या किया ? इस पर ही होते थे. तो आपका इतिहास का अध्ययन काफी हुआ है. ऐसा माना जाए तो आप मुझे बताइए कि अगर पांच सौ साल पहले बाबर ने अयोध्या आकर राम की जन्मभूमि वाले मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने का काम किया था. तो इन पांच सौ सालों के भीतर मुस्लिम शासन खत्म हुआ, अंग्रेजी शासन भी दो सौ साल रहा है. और अभी आजादी के बाद भी चालीस सालों से अधिक समय हो गया है, तो आज ही अचानक राम मंदिर के लिए रथयात्रा, और "मंदिर वहीं बनाएंगे के" नारों के साथ, देश भर में उन्मादी माहौल पैदा करने की वजह क्या है ? गत 500 सालों में, इसके पहले कोशिश की गई थी ?"
डाक्टर नेने ने कहा कि "हमने बीसवीं शताब्दी के शुरु में हिंदू महासभा की स्थापना की थी. और हम लोग शुरूआती दिनों में कुछ हद तक कामयाब हो रहे थे. क्योंकि कांग्रेस और मुखतः लोकमान्य तिलक जब तक जीवित थे, तब तक हमें काफी सफलता मिल रही थी. लेकिन उनकी मृत्यु के पश्चात, महात्मा गाँधी का कांग्रेस के ऊपर प्रभाव होने के बाद, हमें लगा कि अब कांग्रेस में रहकर कोई फायदा नहीं तो 1925 में आरएसएस की स्थापना की. लेकिन गांधी इतना चतुर निकले कि, अपने-आप को सनातनी हिंदू कहते हुए उन्होंने हिंदू धर्म के प्रार्थना, आश्रमों की पद्धति और खुद अधनंगा रहते हुए, ऋषियों के जैसे रहने से, उन्होंने भारतीय जनमानस के ऊपर अपना प्रभाव कायम किया था. और हमारी अपनी जगह को दखल कर के, हिंदू महासभा या आरएसएस का प्रभाव उस तुलना में बहुत ही सीमित रहा. हालांकि हम लोगों ने रामराज्य परिषद, गोहत्या तथा अन्य कई प्रकार के प्रयोग किए, लेकिन गांधी के सामने हमारे सभी प्रयासों को समर्थन नहीं के बराबर था. तो मैंने तपाक से पूछा कि" इसिलिये आप लोगों ने उन्हें जान से मार डाला ? " तो मेरे सवाल को अनदेखा करते हुए, उन्होंने आगे कहा कि "उन की हत्या से तो हमारी स्थिति और भी खराब हो गई. लगभग हमें हिंदू समाज में भी अछूत जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा. और हम लोग विभिन्न प्रकार की कोशिशें करते रहे. लेकिन कुछ कामयाबी नहीं मिल रही थी. लोकसभा में दो सीटें थीं तो अभी बड़ी मुश्किल से नब्बे तक पहुंचे हैं."
मैंने कहा कि डाक्टर 544 के लोकसभा में धार्मिक ध्रुवीकरण करने से आपको जिंदगी में कभी भी बहुमत नहीं मिल सकता. क्योंकि सौ करोड़ की आबादी में ब्राह्मण और तथाकथित ऊंची जातियां 25 - 30 % भी नहीं है ! बचे हुए 75 % जिसमें मुस्लिम, दलित, आदिवासी और पिछाडी जातियों के लोग आप की सेठ साहुकारों और पुंजीपति तथा ऊंची जाति के लोगों की पार्टी को क्यों वोट देंगे ?
स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि "भारत में इस्लाम या ख्रिश्चन धर्म मे ज्यादातर लोग जाति-व्यवस्था के वजह से अपनी मर्जी से धर्मांतरण किए हैं. अगर तलवार या सत्ता के दबाव से धर्मांतरण करने की कोशिश की गई होती तो आप और मैं भी जोशी, नेने, खैरनार की जगह जफर, नौशाद या खान नाम के रहे होते. डाक्टर नेने मैं आपके वडोदरा महाराज के मूल गांव के बगल का मतलब खानदेश से हूँ. लेकिन यह खानदेश कभी भी मुस्लिम बहुल नहीं था. और न ही आज है."
मुख्य मुद्दा एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कुरआन लेकर मुस्लिम बादशाह आए थे. यह संघ की शाखाओं में कहा जाता है. तो औरंगाबाद के नाम वाले औरंगजेब नब्बे साल से अधिक उम्र तक जीवित रहा और गिनकर पचास साल बादशाह था. और उन पचास वर्षों में, से सबसे अधिक समय उत्तर भारत की तुलना में अधिक से अधिक समय दक्षिण भारत में रहा ! और मरा भी दौलताबाद में. फिर भी उसने अपने कब्जे के कर्नाटक, मराठवाड़ा, खानदेश, विदर्भ तथा भारत के बहुत बड़े हिस्से में इस्लाम धर्म को क्यों नहीं फैलाया ? "
डॉ. नेने ने मुझे कहा कि "वह सब छोडिए, हमारी हिंदुत्ववादी राजनीतिको आगे बढ़ाने के लिए, इसके पहले सभी कोशिशों से कुछ हासिल नहीं हो रहा था. लेकिन यह रामानंद सागर का रामायण टीवी धारावाहिक के समय हमारे रस्ते खाली हो जा रहे हैं. यहां तक कि लोग अपने घर के शादी - ब्याह जैसे कार्यक्रमों को भी टीवी धारावाहिक के समय को टालकर कर रहे हैं. विधानसभा तथा अन्य सार्वजनिक कार्यक्रम तक लोगों को उस हिसाब से करने पड़ रहे हैं. तो हम लोगों ने 'जस्ट ट्रायल एंड एरर' के तौर पर राम मंदिर के मुद्दे पर, रथयात्रा और अन्य कार्यक्रम करने की शुरूआत की. और हमारे ध्यान में आया कि यह बहुत ही भीड खींचने वाला होता जा रहा है. हमें लगता है कि बाबरी मस्जिद बनी रहे. अन्यथा हमारा मुद्दा खत्म हो जायेगा. इसलिए हम तो चाहते हैं कि मस्जिद बनी रहे और आगे हमारे धार्मिक ध्रुवीकरण के प्रयास जारी रहेंगे, तभी हम दिल्ली की सत्ता पर कब्जा कर सकते."
तो मैंने कहा कि डाक्टर एक मिनट के लिए माना जाय कि आप दिल्ली के तख्त तक पहुंच जाओगे. लेकिन अखंड भारत का क्या ? क्योंकि भारत के बंटवारे के आरोप करते हुए, आप लोगों ने गांधीजी की हत्या की है. और आज भी बंटवारे के आरोप कांग्रेस तथा अन्य लोगों पर करते हुए थकते नहीं हो. लेकिन आज से पचास साल पहले बंटवारा मांगने वाले लोगों का आरोप क्या था ? कि हिंदू बहुल भारत में हमें न्याय नहीं मिल सकता इसलिए हमें अलग मुल्क चाहिए. 1947 में पाकिस्तान बनने के बावजूद भारत में पाकिस्तान से भी अधिक संख्या में मुसलमानों की संख्या है. और वह कहीं भी जाने वाले नहीं हैं. क्योंकि 1971 में बंगला देश बनने के बाद तो पाकिस्तान की धर्म के आधार पर अलग देश बनाने की मांग कितनी गलत थी, वह सिद्ध हो गया. और आज का बचा-खुचा पाकिस्तान में भी सिंध, बलुचिस्तान, पख्तूनीस्थान, पंजाब के बीच रत्ती भर की एकता नहीं है. इसलिए धर्म के आधार पर राष्ट्र निर्माण करने की मांग शत प्रतिशत गलत साबित हो रही है. और एक आप लोग हो जो हिंदुत्व के आधार पर गत सौ वर्ष से माथापच्ची कर रहे हो, जिन्हें आप बाहरी धर्म के लोग बोलकर, उनके खिलाफ नफरत पैदा कर रहे हो, वह कोई छोटी सी जनसंख्या नहीं है. वह कम-से-कम पंद्रह करोड जनसंख्या जो इंडोनेशिया के बाद, दुनिया की दूसरे नंबर की आबादी है. और इतनी बड़ी जन संख्या के लोगों को असुरक्षित मानसिकता में डालने का मतलब और बंटवारे की नींव खोदना. क्योंकि किसी भी युद्ध में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को मारने के आकड़े नहीं हैं. एक साथ मिलजुल कर रहने का, वह भी एक दूसरे को देखते हुए, आंखों को लाल - पीला करने से नहीं प्यार मोहब्बत से रहना यही एकमात्र उपाय है. अन्यथा और बंटवारा की नौबत आ सकती है.
तो डॉक्टर ने कहा कि पहले हमें दिल्ली की गद्दी पर बैठने दो फिर बाद में देख लेंगे.
मेरे जजमान श्री. बा. जोशीजी ने वहां से खाना खाने के बाद, घर लौटने के रस्ते में कहा कि "हिंदुत्ववादी लोग इतने हृदयहीन होते हैं ?"
मैंने कहा कि "सभी धर्म को लेकर राजनीति करने वाले, एक जैसे ही हृदयहीन होते हैं."
डॉ. सुरेश खैरनार,
20 मार्च 2025, नागपुर.