आचार्य विनोबा भावे और आरएसएस : 130वीं जयंती पर उनकी चेतावनी और आज की प्रासंगिकता
आचार्य विनोबा भावे की 130वीं जयंती पर उनका 1948 का आरएसएस को लेकर साफ़ और बेबाक विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।

Acharya Vinoba Bhave
आचार्य विनोबा भावे और आरएसएस : 130वीं जयंती पर स्मरण
- आचार्य विनोबा भावे कौन थे?
- विनोबा भावे और 1948 की सेवाग्राम बैठक
- आरएसएस पर विनोबा भावे की ऐतिहासिक टिप्पणी
- गीताई : गीता का विनोबा भावे द्वारा मराठी अनुवाद
- वर्तमान समय में विनोबा भावे की चेतावनी की प्रासंगिकता
- गांधीवाद, विनोबा भावे और आरएसएस का प्रभाव
विनोबा भावे को सही श्रद्धांजलि कैसे दें?
आचार्य विनोबा भावे की 130वीं जयंती पर उनका 1948 का आरएसएस को लेकर साफ़ और बेबाक विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। गांधी हत्या के बाद सेवाग्राम में हुई ऐतिहासिक बैठक, विनोबा जी के कथन, गीताई का महत्व और वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में उनकी चेतावनी—पढ़ें डॉ सुरेश कैरनार के इस विस्तृत विश्लेषण में...
आचार्य विनोबा भावे और आरएसएस.
आज आचार्य विनोबा भावे जी की 130 वी जयंती पर विनम्र अभिवादन के साथ मैं एक कन्फेशन करना चाहता हूँ. विनोबाजी के बारे में जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में चले आंदोलन और उस वजह से श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल की घोषणा में उनकी भूमिका को लेकर मैं बेहद नाराज था. लेकिन, 'गाँधी अब नहीं रहे आगे क्या ?' Gandhi is Gone. Who Will Guide Us Now ? इस शीर्षक की किताब जो सर्व सेवा संघ की स्थापना की बैठक का Proceeding है, जिसे पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल श्री. गोपाल कृष्ण गांधी ने कोलकाता के राजभवन में रहते हुए, सम्पादित किया है, किताब पढ़ने के बाद अब मेरे मन से वह नाराजगी एकदम साफ हो गई है. क्योंकि आरएसएस का 1948 में सिर्फ 23 साल की उम्र में आचार्य विनोबा भावे की इतनी साफ़गोई देखते हुए आज आरएसएस के शताब्दी में उन्होंने जो कहा है वह मुझे बरबस याद आ रहा है.
गाँधी हत्या के छ सप्ताह बाद, सेवाग्राम में 1948 के मार्च के 11 से 14 तक, एक बैठक हुई थी, जिसमें जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, राजेंद्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण, राष्ट्र संत तुकडोजी महाराज, आचार्य कृपलानी, डॉ. जाकिर हुसैन, आचार्य दादा धर्माधिकारी, आचार्य विनोबाजी भी शामिल थे.
डॉ. राम मनोहर लोहिया बैठक में नहीं शामिल हो सके इसका अफसोस गोपाल कृष्ण गांधी जी ने किताब की प्रस्तावना में विशेष रूप से लिखा है. बैठक का इतिवृत्त आचार्य दादा धर्माधिकारी जी ने लिखा है, जिसे गोपाल कृष्ण गांधी ने संपादित करने के बाद यह किताब की शक्ल में Permanent black प्रकाशन रानीखेत ने किया है. जो अमेजन पर भी उपलब्ध है.
उस पांच दिन की बैठक में विनोबाजी की बात पृष्ठ नंबर 176 -77" मैं कुछ कहना चाहता हूँ, मैं उस प्रदेश का हूँ जिसमें आरएसएस का जन्म हुआ है. जाति छोडकर बैठा हूँ. फिर भी भूल नहीं सकता कि उसकी जाति का हूँ, जिसके द्वारा बापू की हत्या हुई है. कुमाराप्पाजी और कृपलानीजी ने फौजी बंदोबस्त के खिलाफ परसों सख्त बातें कहीं. मैं चुप बैठा रहा. वे दुख के साथ बोलते थे. मैं दुख के साथ चुप था. न बोलने वाले का दुख जाहिर नहीं होता. मैं इसलिए नहीं बोला कि मुझे दुख के साथ लज्जा भी थी. पवनार में मैं बरसों से रह रहा हूँ. वहाँ पर भी चार-पांच आदमियों को गिरफ्तार किया गया है. बापू की हत्या से किसी न किसी तरह का संबंध होने का उन पर शुबाह है. वर्धा में गिरफ्तारियां हुई, नागपुर में हुईं, जगह-जगह हो रही हैं.
यह संगठन इतने बड़े पैमाने पर बड़ी कुशलता के साथ फैलाया गया है. इसके मूल बहुत गहरे पहुंच चुके हैं. यह संगठन ठीक फासिस्ट ढंग का है. उसमें महाराष्ट्र की बुद्धि का प्रधानतः उपयोग हुआ है. चाहे वह पंजाब में काम करता हो या मद्रास में, सब प्रांतों में उसके सालार और मुख्य संचालक अक्सर महाराष्ट्रीय, और अक्सर ब्राम्हण, रहे हैं. गोलवलकर गुरूजी भी महाराष्ट्र के ब्राह्मण हैं. इस संगठन वाले दूसरों को विश्वास में नहीं लेते. गाँधी जी का नियम सत्य का था. मालूम होता है कि इनका नियम असत्य का होना चाहिए. यह असत्य उनकी टेकनिक-उनके तंत्र-और उनकी फिलासफी का हिस्सा है.
एक धार्मिक अखबार में मैंने गोलवलकर गुरूजी का एक लेख या भाषण पढ़ा. उसमें लिखा था कि हिंदु धर्म का उत्तम आदर्श अर्जुन है, उसे अपने गुरुजनों के लिए आदर और प्रेम था, उसने गुरूजनों को प्रणाम किया और उनकी हत्या की, इस प्रकार की हत्या जो कर सकता है वह स्थित-प्रज्ञ है. वे लोग गीता के मुझसे कम उपासक नहीं हैं. वे गीता को उतनी ही श्रद्धा से पढ़ते होंगे जितनी श्रद्धा मेरे मन में है. मनुष्य यदि पूज्य गुरुजनों की हत्या कर सके तो वह स्थित-प्रज्ञ होता है, यह उनकी गीता का तात्पर्य है. बेचारी गीता का इस प्रकार उपयोग होता है. मतलब यह कि यह सिर्फ दंगा-फसाद करने वाले उपद्रवकारियों की जमात नहीं है. यह फिलासाफरों की जमात है. उनका एक तत्व ज्ञान है, और उसके अनुसार निश्चय के साथ वे काम करते हैं. धर्मग्रंथों के अर्थ करने की भी उनकी अपनी एक खास पद्धति है.
गांधी जी की हत्या के बाद महाराष्ट्र की कुछ अजीब हालत है. यहाँ सब कुछ अत्यांतिक रूप में होता है. गाँधी हत्या के बाद गांधीवालों के नाम पर जनता की तरफ से जो प्रतिक्रिया हुई है, जैसे पंजाब और बंगाल में पाकिस्तान के निर्माण के वक्त हुई थी.
नागपुर से लेकर कोल्हापुर तक भयानक प्रतिक्रिया हुई है. साने गुरूजी ने मुझे आवाहन किया है कि मैं महाराष्ट्र में घुमूं. जो पवनार को भी नहीं सम्हाल सका, वर्धा-नागपुर के लोगों पर असर न डाल सका, वह महाराष्ट्र में घूमकर क्या करता ? मैं चुप बैठा रहा.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की और हमारी कार्यप्रणाली में हमेशा विरोध रहा है. जब हम जेल में जाते थे, उस वक्त उनकी नीति फौज और पुलिस में दाखिल होने की थी. जहाँ हिंदू-मुसलमानों का झगड़ा खड़ा होने की संभावना होती, वहां वे पहुँच जाते. उस वक्त की सरकार इन सब बातों को अपने फायदे की समझती थीं. इसलिये उसने भी उनको उत्तेजन दिया. नतीजा हमको भुगतना पड़ रहा है.
आज की परिस्थिति में मुख्य जिम्मेदारी मेरी है, महाराष्ट्र के लोगों की है. यह संगठन महाराष्ट्र में पैदा हुआ है. महाराष्ट्र के लोग ही उसकी जड़ों तक पहुँच सकते हैं. इसलिये आप मुझे सूचना करें, मैं अपना दिमाग साफ रखूंगा और अपने तरीके से काम करूँगा. मैं किसी कमिटी में कमिट नहीं हूंगा. आरएसएस से भिन्न, गहरे और दृढ़ विचार रखने वाले सभी लोगों की मदद लूंगा. जो इस विचार पर खड़े हो कि हम सिर्फ शुद्ध साधनों से काम लेंगे, उन सब की मदद लूंगा. हमारा साधन-शुद्धि का मोर्चा बने. उसमें सोशलिस्ट भी आ सकते हैं, और दूसरे सभी आ सकते हैं. हमको ऐसे लोगों की जरूरत है जो अपने को इन्सान समझते हैं."
आचार्य विनोबा भावे आज से 77 साल पहले आरएसएस के बारे में कितने साफ थे. और उनके कुछ अपने आप को अनुयायी कहने वाले लोगों को विनोबाजी के 130 वी जयंती के बहाने आज समझने की जरूरत है. क्योंकि मेरे व्यक्तिगत अनुभव के बाद मुझे कुछ गाँधीवादी और विनोबाजी को मानने वाले लोगों में सॉफ्ट हिंदुत्व की आड़ में आरएसएस को लेकर काफी गलतफहमियां लगती हैं.
हिंदुत्व के वर्तमान प्रचार-प्रसार में कुछ लोगों को एक तो बिल्कुल ही मौन देख रहा हूँ. या कुछ तो सीधे-सीधे हिंदुत्ववादी कैम्प में शामिल हो गए हैं. एक महाशय विनोबाजी की गीताई का प्रचार-प्रसार करने के दौरान अक्सर तत्कालीन आरएसएस के प्रमुख बालासाहब देवरस का हवाला देते हुए कहा करते थे. "मैं हमेशा आचार्य विनोबा की गीता मेरे कुर्ते जेब रखकर ही चलता हूँ. अब मेरी कॉपी काफी पुरानी हो गई है. मुझे नई चाहिए" महात्मा गाँधी की हत्या के बाद विनोबाजीने गीता के बारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका को लेकर इतना महत्वपूर्ण तथ्य बताने के बावजूद भी. उन्होंने लिखि हुई मराठी गीता का प्रचार - प्रसार करने के लिए उस संगठन के प्रमुख का हवाला देते हुए गीता बेचने वाले ने खुद भी विनोबा भावे को समझा नहीं. और वह अपनी संपूर्ण ज़िंदगी में सिर्फ आचार्य विनोबा भावे द्वारा लिखित गीताई का प्रचार-प्रसार करने के लिए मशहूर है. बेचारी गीताई.
महात्मा गाँधी या विनोबाजी के बारे में चार अंधे और हाथी की कहानी के जैसा, सुविधाजनक अर्थ निकाल कर पाला पलट कर बैठ गए, क्योंकि डाक्टर राम मनोहर लोहिया ने भी गांधीवादियों के बारे में बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है. "तीन तरह के गाँधी वादी (1) खान-पान वाले ( 2) वेष भूषा वाले (3) "तत्ववादी", इस तरह के लोगों को आज की परिस्थिति में बहुत ही साफ-साफ देख सकते हैं.
आज आचार्य विनोबाजी की 130 वीं जयंती और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी के बहाने उन्हें सही मायनों में समझने की जरूरत है. क्या हम सिर्फ विनोबाजी की जयंती या उनके पुण्य स्मरण ही करते रहेंगे ? या उनके दिखाए हुए रास्ते पर चलेंगे ?
आरएसएस विनोबाजी, गाँधीजी की संस्थाओं का काम आखिरी साँस लेते नजर आ रहा है. और उसी स्थिति का फायदा उठाते हुए आरएसएस एकेक संस्था को अपने कब्जे में लेते जा रहा है. आज हम लोगों को विनोबाजी के 130 वर्ष और गांधीजी के 156 वर्ष के बहाने संकल्प करना चाहिए कि आरएसएस के खिलाफ जिस मोर्चे की बात विनोबाजी ने की थी, आज उस बात को 77 साल हो चुके हैं. और आरएसएस ढोल नगाड़ों के साथ अपने शताब्दी को मनाते हुए, आगे के सौ साल की तैयारी कर रहा है. इसलिए उसे रोकने के लिए कोशिश तो दूर, हम लोग सिर्फ अपने रोजमर्रा के कर्मकांड में और आपस में ही सरफुटवौल करने में व्यस्त हैं. अभी भी समय है. हमें विनोबाजी की बात को अमली जामा पहनाने के लिए लग जाना चाहिए, क्योंकि अब मणिपुर, कश्मीर कल 5 वी और 6 ठी अनुसूची, जो आदिवासियों के लिए विशेष प्रावधानों के लिए हमारे संविधान निर्माताओं ने बनाई है. वह सब कुछ बदलने के लिये आरएसएस की राजनीतिक ईकाई भाजपा की तरफ से अपने पसंदीदा पूंजीपतियों को हमारे देश का बचा-खुचा जल - जंगल और जमीन सौंपने की शुरुआत हो चुकी है.
कश्मीर से 370 हटाना तथा एनआरसी से उसकी शुरुआत हुई है. और आगे बहुत कुछ होनेवाला है. साबरमती आश्रम तथा गांधी विद्यापीठ तथा बनारस के सर्व सेवा संघ के प्रकाशन विभाग तथा जेपी द्वारा स्थापित किया हुआ गांधी विद्या संस्थान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों ने कब्जा कर लिया. और कुछ हिस्से को बुलडोजर से जमीनदोस्त कर दिया है. लेकिन उसके लिए हमारे आपसी सरफुटौवल की स्थिति भी जिम्मेदार है. और उसी का फायदा उठाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी संस्थाओं में घुसपैठ कर रहा है. लेकिन हम इस बात का सज्ञान लेने की जगह उन गुनाहगारों को ससम्मान हमारे कार्यक्रमों में बुला रहे हैं. और आपस में ही दूसरे की गलतियों को गिनाने में लगे हुए हैं. उसके लिये हम लोगों को विनोबाजी की भाषा में एक मोर्चा खोलने की शुरुआत करने की जगह इस तरह आपस में ही झगड़े कर रहे हैं. क्या यही विनोबाजी और गाँधीजी का सही स्मरण हो रहा है ?
मेरा विनम्र निवेदन है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अगर नहीं रोका गया तो इस देश में सौ साल पहले जर्मनी की जैसे स्थिति होना तय है. 1946 में GERMAN LUTHERAN PASTOR, MARTIN NIEMOLLER (1892-1984 ) ने अपनी कविता में साफ-साफ़ कहां है. जो यूएनओ के होलोकास्ट मूजियम में एक पत्थलगढी पर कुरेद कर रखी हुई है.
"FIRST THEY CAME FOR THE SOCIALIST, AND I DIDN'T SPEAK OUT.
BECAUSE I WAS NOT A SOCIALIST.
THEN THEY CAME FOR TRADE UNIONISTS, AND DID NOT SPEAK OUT -
BECAUSE I WAS NOT TRAD UNIONIST.
THEN THEY COME FOR JEWS AND I WAS NOT JEW.
THEN THEY COME FOR ME - AND THERE WAS NO ONE LEFT TO SPEAK OUT FOR ME. "
और यूएनओ ने उसे सिर्फ प्रदर्शन के लिए नहीं रखा है. यह संपूर्ण मानव जाति के लिए एक चेतावनी के लिए है कि सौ साल पहले का उदाहरण विश्व में कहीं भी नहीं होना चाहिए. जिसका प्रयास भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगभग उसी समय से ( 1925) हिटलर मुसोलिनी को आदर्श मानते हुए आज भारत में कर रहा है. और आज आचार्य विनोबा भावे की 130 वी जयंती पर उन्हें सही श्रद्धांजलि यही होगी कि जो चेतावनी उन्होंने 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद दी थी, उसे याद करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को रोकने के लिए गोलबंद होकर प्रयास करना चाहिए.
जय जगत.
डॉ. सुरेश खैरनार,
11सितम्बर 2025, नागपुर.
नोट -आचार्य विनोबा भावे की गीताई क्या है
आचार्य विनोबा भावे ने भगवद्गीता का मराठी में अनुवाद किया, जिसे 'गीताई' (मातृ गीता) कहा जाता है। यह अनुवाद उनकी माँ के कहने पर किया गया था, जिन्होंने भगवद्गीता को सरल भाषा में समझना चाहा था। 'गीताई' का उद्देश्य भगवद्गीता के संदेश को सरल और व्यावहारिक तरीके से लोगों तक पहुँचाना था, न कि केवल श्लोकों का शब्दशः अनुवाद करना।


