शहीद-ए-आज़म भगत सिंह : धर्मनिरपेक्षता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का नया आयाम
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण और वैज्ञानिक सोच आज भी प्रासंगिक है।

Shaheed-e-Azam Bhagat Singh
भगत सिंह का जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
- पढ़ाई, वैचारिक विकास और नास्तिकता की ओर झुकाव
- वैज्ञानिक ज्ञान और समाजवाद के प्रति आस्था
- धर्मनिरपेक्षता पर भगत सिंह का दृष्टिकोण
- सांप्रदायिक दंगे और राजनीति पर भगत सिंह की आलोचना
- पत्रकारिता को लेकर भगत सिंह के विचार
- आधुनिक भारत में भगत सिंह की प्रासंगिकता
धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना का संदेश
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि एक गहरे चिंतक और दूरदर्शी विचारक भी थे। उनका मानना था कि भारत का भविष्य तभी सुरक्षित हो सकता है जब समाज सांप्रदायिकता, अंधविश्वास और संकीर्ण सोच से मुक्त हो। वैज्ञानिक दृष्टिकोण, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को वे सामाजिक परिवर्तन की आधारशिला मानते थे। जेल की चारदीवारी में भी भगत सिंह ने अध्ययन और लेखन के माध्यम से स्पष्ट किया कि धर्म के नाम पर विभाजन देश की सबसे बड़ी बाधा है। लगभग सौ वर्ष पहले व्यक्त किए गए उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की जयंती पर डॉ. रामजीलाल एवं डॉ ममता कुमारी के लेख से जानें भगत सिंह का विचार, संघर्ष और आधुनिक भारत के लिए संदेश
भगत सिंह ( जन्म - 28 सितंबर 1907, जिला- लायलपुर, गांव बंगा, पाकिस्तान,
मृत्यु - 23 मार्च 1931 फांसी की सजा, लाहौर सेंट्रल जेल, पाकिस्तान) के पिता का नाम स. किशन सिंह, माता का नाम श्रीमती विद्यावती था. स. अर्जुन सिंह (भगत सिंह के दादा) स्वामी दयानंद सरस्वती के संपर्क में आने के कारण आर्य समाजी हो गए. उस समय आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य अनुदारवादी कुप्रथाओं को समाप्त करके समाज में सुधार लाना था. भगत सिंह का जन्म एक सिख परिवार में हुआ, परिवार में आर्य समाज रीति-रिवाज परंपराओं का पालन किया जाता था . "उन दिनों सिखों को घर में पढ़ाने की परंपरा थी परंतु अर्जुन सिंह ने अपने तीनों पुत्रों को किशन सिंह, अजीत सिंह व स्वर्ण सिंह को डीएवी स्कूल में पढ़ाया भगत सिंह भी डीएवी स्कूल में ही पढ़े थे."
अराजकतावादी नेता बाकुनिन , साम्यवाद के पिता कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स व रूस की साम्यवादी क्रांति के जनक लेनिन, सभी नास्तिक थे. जिनके विचारों का अध्ययन करने के पश्चात भगत सिंह भी नास्तिक होते चले गए. विवेक और यथार्थवाद की कसौटी पर आधारित वैज्ञानिक ज्ञान महत्व देने लगे. वैज्ञनिक ज्ञान वह शक्ति है जो व्यक्ति,राष्ट्र और समाज के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है. भगत सिंह के जेल के साथी जे.एन. सान्याल के अनुसार भगत सिंह एक अच्छे अध्येता तथा उनके चिंतन का विशेष क्षेत्र समाजवाद था.भगत सिंह अपने जीवन काल में लगभग 735 पुस्तकों का अध्ययन किया. भगत सिंह के चिंतन का प्रतिबिंब शहीद-ए- आज़म भगत सिंह की जेल डायरी (2011) में साफ दिखाई देता है. इससे पूर्व भूपेंद्र हूजा (संपादित) ए मार्टियरस नोटबुक (जयपुर 1994) – भगत सिंह की जेल नोटबुक का संपादन किया गया था. इस जेल डायरी में 108 लेखकों और 43 पुस्तकों के अंश संग्रहित हैं, जिनमें प्रमुख रूप से मार्क्स, एंगेल्स और लेनिन के अलावा कई अन्य लेखक भी हैं. एक अच्छे अध्येता के रूप में वह वैज्ञानिक ज्ञान को एक अद्भुतपूर्व शक्ति मानते थे.
यद्धपि प्रारंभ में भगत सिंह एक’रोमांटिक आदर्शवादी क्रांतिकारी’ थे .परंतु गहन वैज्ञानिक अध्ययन के पश्चात एक अच्छे अध्येता के रूप में उनके पुराने विचारों का स्थान तर्कसंगत विचारों ने ले लिया. इन नए विचारों में’रोमांटिक आदर्शवाद, रहस्यवाद , अंधविश्वास, रूढ़िवाद तथा अन्य सभी संकीर्ण मान्यताओं का कोई स्थान नहीं था. इस तथ्य को स्वीकार करते हुए भगत सिंह ने स्वयं लिखा”यथार्थवाद हमारा आधार बना’’.
धर्मनिरपेक्षता से अभिप्राय धर्म के नाम पर सहनशीलता, सभी धर्मों को समान भाव से देखना . लेकिन धार्मिक कट्टरता के कारण हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य को उग्र रूप से उभरा. साइमन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, सन् 1922 और सन् 1927 के बीच देश में 112 बड़े सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे .सन् 1924 में कोहाट में सांप्रदायिक दंगे हुए . सन् 1928 में 'किरती' में “सांप्रदायिक दंगे और इनका इलाज” लेख छपा . इसमें भगत सिंह ने लिखा कि यदि धर्म को अलग कर दिया जाए तो राजनीति पर हम सब एक हो सकते हैं.धर्म में हम चाहे अलग-अलग ही रहे . ‘विश्वप्रेम’ शीर्षक लेखक “बलवंत सिंह” (भगत सिंह) ‘15 नवंबर 1924 को 22 नवंबर 1924’ सप्ताहिक ‘मतवाला’ (कोलकाता) में प्रकाशित हुआ . जिसमें भगत सिंह ने लिखा है, जो मानवता से प्यार करते हैं वे ईश्वर से प्यार करते हैं . ईश्वर ही प्यार है, प्यार ही ईश्वर है.”
सन् 1926 में लाहौर में भगत सिंह और उसके साथियों के द्वारा नौजवान सभा की स्थापना की गई . नौजवान सभा का मुख्य उद्देश्य वर्ग रहित व धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना था. इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए नौजवान सभा के सदस्य शपथ लेते थे कि वह अपनी कम्युनिटी की अपेक्षा राष्ट्र को महत्व देंगे. इस उद्देश्य की प्राप्ति के किसानों व मजदूर के प्रचार करने के लिए अंतर-धार्मिक व अंतर-जातीय विभिन्न धर्म के अनुयायियों के लिए सामूहिक दावतों का आयोजन हो सके ताकि पारस्परिक भाईचारा बढे़ और भेदभाव समाप्त हो.” भगत सिंह के अनुसार धर्मनिरपेक्षता का भारतीय संदर्भ में हिंदू, मुस्लिम व सिक्ख होने की अपेक्षा पहले इंसान को इंसान समझो और फिर भारतीय. "यह विचार सांप्रदायिकता की बाढ़ को रोक कर धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना करेगा तथा भारत का भविष्य सुनहरा होगा .“
भगत सिंह आगे लिखा “हमारी पुरानी विरासत में दो पक्ष होते हैं -एक सांस्कृतिक और दूसरा मिथिहासिक. मैं सांस्कृतिक गुणों जैसे सांस्कृतिक, निष्काम देश सेवा, बलिदान, विश्वास पर अटल रहना व उसे अपनाकर आगे बढ़ने की कोशिश में हूं. मिथिहासिक पुराने विचार है जिन्हें मैं अपनाने को तैयार नहीं” भगत सिंह लिखते हैं “एक शाश्वत सत्य ने समाज वैसा ही रचा है, जैसा वह आज है, तथा “श्रेष्ठतर” और “सत्ता” के प्रति समर्पण दैविय इच्छा से ही निम्नतर वर्गों पर लागू किया जाता है . ‘उपदेशक गण’, ‘उपदेशक मंच’ और प्रेस की ओर से दिए जाने वाले इस संदेश ने मनुष्य के दिमाग को सम्मोहित कर रखा है . यह शोषण के सबसे मजबूत स्तंभों में से एक है .
भगत सिंह ने सही लिखा है कि सांप्रदायिक दंगे भड़काने में हमारे नेताओं व समाचार पत्रों का बहुत बड़ा हाथ रहा है.
भगत सिंह ने पत्रकारिता के उद्देश्यों का वर्णन करते हुए कहा कि समाचार पत्रों का मुख्य उद्देश्य जनता को शिक्षित करना उनके दिमाग को स्वच्छ करना संकुचित तथा विभाजनकारी भावनाओं से सुरक्षा करना, संप्रदायवाद का उन्मूलन करना तथा राष्ट्रवाद की प्रोन्नति करना इत्यादि है.भगत सिंह के अनुसार पत्रकारिता एक बड़ा पवित्र व्यवसाय है. परंतु तत्कालीन पत्रकारिता पर प्रहार करते हुए उसने बड़ा स्पष्ट कहा कि आज यह व्यवसाय जो कभी
सम्मानजनक माना जाता था वह सबसे घटिया है. लगभग 100 वर्ष पूर्व व्यक्त किए गए भगत सिंह के विचार आज
भी पूर्णतया प्रासंगिक हैं क्योंकि राष्ट्रीय मेंन स्ट्रीम मीडिया जिसे जनता की आवाज उठाने चाहिए थी वह
अधिकारियों, सत्ताधारी राजनेताओं, भ्रष्टाचारियों ,अपराधियों, संप्रदायवादियों,पाखंडियों की आवाज को बुलंद करता है .धार्मिक उन्माद और धर्मांता फैलाकर लौकिक समस्यायों से ध्यान हटा कर नव उदारवाद,पूजीवाद,देशी व विदेशी कार्पोरेटवाद के हितों का संरक्षण करता है और आवाज रहित जनता को धर्म भीरु बनाकर शोषण को बढ़ावा देता है.
धर्म के नाम पर काफी दंगे हुए ब्रिटिश सरकार ने इसका भरपूर लाभ उठाया स्वतंत्र भारत में इस प्रकार की घटनाएं न हो इसलिए भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया .परंतु स्वतंत्र भारत में भी सांप्रदायिक घटनाओं के घटित होने के कई हजार उदाहरण हैं . भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़कर हम धर्म के नाम पर होने वाले विवादों से नहीं बच सकते. भगत सिंह के अनुसार यदि हमें एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करनी है तो संकीर्ण मानसिकता और धर्म के नकारात्मक स्वरूप को त्यागना होगा. धर्म के नाम पर होने वाले विवादों से बचना होगा .धर्म के नाम पर सहिष्णु होगा तभी हम एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना कर सकेंगे . लगभग 100 साल पहले भगत सिंह प्रश्न करते हैं की धार्मिक दंगे भारतवर्ष का पीछा कब छोड़ेंगे ? यह प्रश्न आज भी उसी प्रकार से कायम है हम आज भी इस प्रश्न का उत्तर देने में नाकामयाब है.
भगत सिंह ने अपने एक लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूं ?’ मैं स्वीकार किया है कि मैं नास्तिक हूं परंतु उन्होंने एक प्रश्न भी किया है कि मैं नास्तिक क्यों हूं ? अपने प्रश्न का उत्तर भगत सिंह स्वयं ही देते हैं “जो धर्म इंसान को इंसान से जुदा करे मोहब्बत की जगह उन्हें एक दूसरे से घृणा करना सिखाए, अंधविश्वास को प्रोत्साहन देकर लोगों के भौतिक विकास में बाधक हो, दिमागों को नष्ट करें वह कभी मेरा धर्म नहीं बन सकता . कट्टर धार्मिक विचारधारा कहीं न कहीं देश के लिए घातक और देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है . अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को खराब करती है.‘’
संक्षेप में, भगत सिंह साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, सामंतवाद, सांप्रदायिकता और जातिवाद के खिलाफ धर्मनिरपेक्षता, शोषण मुक्त समाजवादी व्यवस्था और सामाजिक सद्भाव पर आधारित वैकल्पिक व्यवस्था के निर्माण के लिए एक महान प्रेरक हैं, जो युवाओं को संघर्ष के लिए प्रेरित करते हैं.
डॉ. रामजीलाल, सामाजिक वैज्ञानिक ,पूर्व प्राचार्य दयाल सिंह कॉलेज करनाल (हरियाणा- भारत)
डॉ. ममता कुमारी, सहायक प्रोफेसर, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अंबाला छावनी, हरियाणा


