दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव 2025: प्रमुख परिणाम और विश्लेषण

  • छात्र राजनीति पर पुलिस और प्रशासन का हस्तक्षेप
  • छात्र आंदोलनों की ऐतिहासिक भूमिका और वर्तमान संकट
  • राहुल यादव झाँसला की जीत और संघर्ष की कहानी
  • कम होता वोटिंग प्रतिशत: छात्रों की उदासीनता या व्यवस्था की विफलता?
  • अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की बढ़ती पकड़: कारण और चिंताएं
  • क्या छात्र संगठन जमीनी मुद्दों को छू पा रहे हैं?
  • जेएनयू, इलाहाबाद और पटना विश्वविद्यालय: लोकतंत्र का संकट

छात्र राजनीति बनाम राष्ट्रीय राजनीति: कौन किस पर भारी

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव 2025 के नतीजों ने छात्र राजनीति, पुलिस हस्तक्षेप, वोटिंग प्रतिशत में गिरावट और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की बढ़ती ताकत जैसे अहम मुद्दों को उजागर किया है। पढ़ें विस्तार से...

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव के परिणाम (Delhi University student union election results) अभी हाल ही में आए हैं और पता चला कि छात्रसंघ के नवनिर्वाचित उपाध्यक्ष राहुल झाँसला के समर्थकों और उनके साथियों को छात्रसंघ चुनाव के दौरान ही दिल्ली पुलिस द्वारा जबरदस्ती उठाकर उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया। संदीप यादव और भूपिंदर यादव को चुनाव के दौरान तिहाड़ जेल में अपनी रातें बितानी पड़ीं। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में, देश के सबसे बड़े छात्रसंघ चुनाव, जो कि राष्ट्रीय राजधानी में हो रहा है, उसकी स्थिति यह है। यह दर्शाता है कि वर्तमान समय की हुकूमत डरती है कि भारत के भी छात्र युवा नेपाल के genz की राह पर ना बढ़ जाए।

इन्हीं बातों को लेकर इतिहासकार एरिक होब्सबाम ने “रेवोल्यूशनरीज” में टिप्पणी की है कि छात्र, एक समुदाय के रूप में, अक्सर अधिक उग्र विचारों के प्रति खुले होते हैं और परिवर्तन के लिए संगठन कर सकते हैं। विश्वविद्यालय शिक्षा और आलोचनात्मक चिंतन के केंद्र के रूप में काम करते हैं। ये संस्थान युवाओं को नए विचारों और विचारधाराओं से परिचित कराते हैं, उन्हें वर्तमान स्थिति पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित करते हैं और सामाजिक न्याय, समानता और राजनीतिक परिवर्तन पर चर्चा को बढ़ावा देते हैं।

अतः हम इन चुनावों में देख रहे हैं कि भारत का लोकतंत्र मर चुका है। देश के सबसे बड़े विश्वविद्यालय, देश के सबसे बड़े छात्र संघ चुनाव जो कि राष्ट्रीय राजधानी में घटित हो रहा है, उसकी यह हालत है। अगर दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव की यह स्थिति है, तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ की क्या स्थिति होगी, यह आसानी से समझा जा सकता है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है और छात्रों के अधिकारों के हनन का एक स्पष्ट उदाहरण है।

जहाँ देश में अधिकतर विश्वविद्यालयों के छात्र संघों पर तालाबंदी हो, छात्र संघ के चुनाव पर प्रतिबंध हो, और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से छात्रों को दूर रखा जाए, ऐसे में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ का चुनाव देश के छात्रों के लिए एक आशा की किरण के रूप में दिखाई देता है। यह चुनाव इस बात का संकेत देता है कि छात्रों के मुद्दों, समस्याओं और मसलों पर चर्चा होगी और उन्हें आवाज मिलेगी। साथ ही, लगातार हो रहे फंड कटौती, नौकरियों में कटौती, पेपर लीक जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

देश के अन्य विश्वविद्यालय भी दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव को एक उदाहरण के रूप में देख रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि आने वाले समय में उनके विश्वविद्यालय में भी छात्र संघ के चुनाव जल्द से जल्द कराए जाएंगे, जिससे वहाँ के छात्र भी इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से हिस्सा ले सकेंगे। इस प्रकार, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव न केवल अपने छात्रों के लिए, बल्कि देश भर के छात्रों के लिए भी एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक घटना है।

हर बार की तरह इस बार भी दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ 2025 का बिगुल बज चुका था। दिल्ली विश्वविद्यालय को ऐसे समझिए कि एक तरफ देश स्वतंत्र हो रहा था, सन 1947 में ठीक उसी समय दिल्ली विश्वविद्यालय के समस्त कॉलेजों को एक करके विश्वविद्यालय छात्र संघ का निर्माण किया गया। उसके बाद से शुरू हुई दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की यात्रा पीछे मुड़कर नहीं देखी, चुनाव लड़ते आए तमाम छात्रों के मसलों पर मुद्दों पर इसने अपनी एक अलग उपस्थिति दर्ज कराई, देश के बड़े छात्र आंदोलनों का नेतृत्व किया, साथ में देश को इसने बड़े-बड़े नेता दिए जो कि आने वाले समय में देश को नेतृत्व देने के साथ-साथ देश की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को भी अपना नेतृत्व दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय से निकलने वाले नाम उल्लेखनीय हैं, दिल्ली की वर्तमान मौजूदा मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता खुद ही दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष रही हैं, इसलिए भी उन्होंने इस चुनाव को अपनी नाक का सवाल बना लिया था।

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव को देखने से पहले हम इलाहाबाद विश्वविद्यालय पर भी निगाह डालना चाहते हैं, जहाँ से हम खुद अंतिम छात्रसंघ उपाध्यक्ष बनकर आए हैं, उसके बाद चुनाव नहीं हुए हैं। साथ ही छात्र संघ की जगह जब 2019 में छात्र परिषद लागू किया गया तब वहाँ के छात्रों में से एक भी व्यक्ति ने नामांकन ना भर कर पूरी छात्र परिषद का बहिष्कार किया और वहाँ के आततायी कुलपति को भी उखाड़ फेंका, एक उल्लेखनीय आंदोलन की मौजूदगी दर्ज कराई।

यूँ तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ का निर्माण यूनाइटेड प्रोविंसेज की असेंबली से भी पहले हो गया था, आजादी में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बाद के भी आंदोलनों में इसने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और नेतृत्व किया। वर्तमान समय में हम जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रिसर्च कर रहे हैं, जेएनयू के भी चुनाव को देखें तो यह विचारधारा के लेवल पर अति महत्वपूर्ण है, साथ ही देश को नेतृत्व के साथ साथ महत्वपूर्ण कई बड़े आंदोलन को देने का काम किया है।

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव इस बार बिल्कुल अलग था। माननीय उच्च न्यायालय दिल्ली के द्वारा लगी रोक के बाद यहाँ पर आपको ना बैनर देखने को मिले, ना ही पोस्टर, ना ही उड़ती हुई पर्चियाँ दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस के आसपास देखने को मिलीं। हर जगह बैरिकेड्स लगे थे और हर चीज से यह साफ़ था कि इस बार का चुनाव कई मायनों में अनोखा होने वाला है।

इस चुनाव में उम्मीदवारों की जाति, क्षेत्र, मुद्दे और छात्रों से जुड़े काम भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। पिछले दो साल से बतौर पैनल इंचार्ज हमने इस छात्र संघ चुनाव को देखा था। पिछली बार की परिस्थितियाँ प्रतिकूल थीं, फिर भी एनएसयूआई ने अध्यक्ष पद पर रौनक खत्री की महत्वपूर्ण जीत अपने नाम की। रौनक खत्री अध्यक्ष बने और उनकी साल भर की सक्रियता ने छात्रों के मुद्दों पर उनकी लड़ाई को मजबूत बनाया।

लेकिन इस बार के चुनाव में जब हम छात्रों के बीच उनके कॉलेजों में गए, तो हमें जमीनी हकीकत कुछ और दिखाई दी। हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिरकार सोशल मीडिया और मुद्दों पर इतनी रीच होने के बावजूद भी हम इंडिया गठबंधन के समस्त छात्र संगठन और एनएसयूआई के लोग छात्रों के बीच पहुँचने में कैसे पीछे रह गए।

यह सत्य है कि वर्तमान समय के दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में इंडिया गठबंधन के छात्र संगठन और एनएसयूआई सिर्फ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से ही नहीं लड़ रहे थे, बल्कि एक शक्तिशाली तंत्र से भी लड़ रहे थे, जिसमें देश के संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुख लोग, दिल्ली के मुख्यमंत्री, मंत्री, पुलिस प्रशासन और दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रशासन सभी विद्यार्थी परिषद को चुनाव जिताने में लगे हुए थे। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या यही राक्षस नुमा तंत्र, इन चुनावों में परिणाम देने योग्य साबित होता है, या जो छात्रों के असल मुद्दे हैं जैसे बढ़ती फीस, फोर-ईयर अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम्स FYUP, पेपर लीक, वीमेन सेफ्टी और कैंपस इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे मुद्दे भी कारगर साबित होंगे।

जिस प्रकार से इस बार हम लोगों ने ये चुनाव लड़ा, वह बिल्कुल ही अलग था। पिछली बार मेरी एक समझ विकसित हुई थी कि कैसे ग्राउंड पर चीजों को देखा गया था और पूरी इलेक्शन कैंपेन के दौरान स्ट्रैटजी और पैनल की स्थिति कैसी होगी तय किया था। इस बार कुछ सामंजस्य में भी कहीं ना कहीं हमें कमी दिखाई दी।

जब हम किरोड़ीमल कॉलेज में गए, तो हमने देखा कि पूर्वांचल के लोगों, बिहार और उत्तर प्रदेश के छात्र-छात्राओं के साथ मारपीट की गई। मेरा यह अनुभव रहा कि उम्मीदवार के साथ पैनल के दौरान हम किरोड़ीमल, रामजस कॉलेज और हिंदू कॉलेज गए, तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लड़के-लड़कियाँ वहाँ पर गेट रोकने, उम्मीदवारों को गाली-गलौज करने के लिए खड़े थे। वहीँ हमारे पूर्वांचल के छात्र-छात्राओं के साथ उन्हीं लोगों ने मारपीट की और वोटिंग के दौरान जब रौनक खत्री किरोड़ीमल कॉलेज पर जा रहे थे, तो यही लोग रौनक खत्री के साथ हाथापाई करने का प्रयास किया, सवाल है यह सब किसकी सह पर हो रहा था। यह एक संरचित तरीके से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने किया और इन महिला छात्राओं का इस्तेमाल किया, जो कि उनके भविष्य के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है।

और वहीं दूसरी ओर यह चर्चा बड़ी थी कि सत्रह सालों के बाद कोई महिला उम्मीदवार अध्यक्ष पद पर जीत के लिए खड़ी है और जीत भी सकती है, यह एक ऐतिहासिक जीत छात्रों के बीच दर्ज हो सकती थी।

छात्र संघ के उपाध्यक्ष राहुल यादव झांसला के चुनाव को छोड़ दिया जाए तो अन्य पैनलों पर हम औसत दर्जे के लेवल पर चुनाव लड़े, ज्वाइंट सेक्रेटरी के उम्मीदवार लवकुश बढ़ाना (स्नातक प्रथम वर्ष छात्र) भी बाद में एक अच्छी बढ़त लेते हुए दिखे थे, लेकिन हमें यह भी पता करना है कि किस कारण इन छात्र संगठनों का छात्रों के बीच का रुझान कमजोर हुआ, वह क्या क्या कारक हैं जिसकी वजह से हम कमजोर साबित हो रहे हैं? एक तरफ हम देख रहे हैं कि यह सच बात है कि एक बड़ा राक्षस है जिसमें देश की गवर्नमेंट है, सरकार है, यहाँ दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता है, दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रशासन है, सारे लोग मिलकर के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को चुनाव लड़ा रहे हैं, हो सकता है कि चुनावी आंकड़े को यह इधर से उधर करें। इनके ऊपर वोट चोरी के भी आरोप हैं लेकिन असल में छात्रों के मुद्दे NSUI समेत तमाम जो छात्र संगठन चुनाव लड़ रहे थे इस इलेक्शंस में उनकी सक्रियता के बाद भी जो मैंने ग्राउंड पर देखा, रीच क्यों कमजोर हो रही है इन सभी कार्यों के भी बारे में हम यहाँ विश्लेषण करेंगे। हाल ही में हुए छात्र संघ चुनावों में पंजाब यूनिवर्सिटी और पटना यूनिवर्सिटी दोनों में महत्वपूर्ण परिणाम देखने को मिले। पंजाब यूनिवर्सिटी में, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने पहली बार अध्यक्ष पद जीता। वहीं, पटना यूनिवर्सिटी में, पहली बार कोई महिला उम्मीदवार छात्र संघ अध्यक्ष वो भी ABVP से बनीं जो वास्तविक मुद्दों से अलग ही परिणाम दिखाता है।

पिछले सालों में हुए मतदान का प्रतिशत:

वर्ष प्रतिशत (%) विजयी प्रत्याशी (अध्यक्ष) संगठन

2011 32 अजय छिकारा (जाट) NSUI

2012 40 अरुन हुड्डा (जाट) NSUI

2013 43.3 अमन अवाना (गुर्जर) ABVP

2014 44.4 मोहित नागर (गुर्जर) ABVP

2015 43 सतेंदर अवाना (गुर्जर) ABVP

2016 37 अमित तंवर (गुर्जर) ABVP

2017 42.8 रॉकी तुसीद (जाट) NSUI

2018 44.5 अंकिव बासोया (गुर्जर) ABVP

2019 40 अक्षित दाहिया (जाट) ABVP

2023 42 तुषार डेढ़ा (गुर्जर) ABVP

2024 35 रौनक खत्री (जाट) NSUI

2025 39.5 आर्यन मान (जाट) ABVP

डूसू 2025 इस बार प्रत्याशियों को विभिन्न पदों पर पड़े मत:

पद उम्मीदवार पार्टी वोट्स

अध्यक्ष आर्यन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) 28,841

जोशलिन एनएसयूआई (NSUI) 12,645

उमांशी लांबा स्वतंत्र (IND) 5,522

अंजलि AISA-SFI 5,385

नोटा – 3,175

उपाध्यक्ष राहुल यादव एनएसयूआई (NSUI) 29,339

गोविंद तंवर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) 20,547

सोहन यादव AISA-SFI 4,163

नोटा – 5,820

सचिव कुणाल चौधरी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) 23,779

कबीर गिरसा एनएसयूआई (NSUI) 16,117

अभिनंदना प्रत्याशी AISA-SFI 9,538

नोटा – 7,365

संयुक्त सचिव दीपिका झा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) 21,825

लवकुश भड़ाना एनएसयूआई (NSUI) 17,380

अभिषेक कुमार AISA-SFI 8,425

नोटा – 7,314

नोट: आंकड़े दिल्ली विश्वविद्यालय की ऑफिसियल वेबसाइट से हैं, इस चुनाव में एबीवीपी ने 3-1 की बढ़त ली।

अब बात करते हैं दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ में उपाध्यक्ष पद पर जीत दर्ज करने वाले राहुल यादव झाँसला की, जो पिछले दो सालों से कैंपस में सक्रिय तौर पर काम कर रहे थे। पिछली बार एनएसयूआई ने उनका टिकट काट दिया था, लेकिन उन्होंने संगठन के निर्णय का पालन किया और छात्रों के मुद्दों पर कैंपस में लड़ते दिखाई दिए। इनके प्रतिद्वंदी के बाबा भाजपा से मौजूदा विधायक हैं।

चुनावी अभियान के दौरान राहुल के समर्थकों को पुलिस प्रशासन और विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कई बार परेशान किया गया। हद तो तब हो गई जब उनके दो समर्थकों, संदीप यादव और भूपिंदर यादव को पुलिस द्वारा तिहाड़ जेल भेज दिया गया। चुनाव के दौरान उन्होंने व्यक्तिगत टीम बनाई और उसे विभिन्न कॉलेज का इंचार्ज भी बनाया। फंड्स को लेकर भी कई समस्याएं आईं, क्योंकि वे निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं और उनके पिता खेती-किसानी में हैं और एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। इसके बावजूद, राहुल झाँसला की टीम ने आत्मबल से काम किया। उनकी टीम के एक सदस्य ने यह भी शिकायत दर्ज कराई कि उनके लोकेशन को ट्रैक किया जा रहा है और पुलिस के लोग उनके लोगों को उठा ले रहे हैं, जिससे उनका चुनाव प्रभावित हुआ।

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव एक ऐसे दौर में संपन्न हुआ है जहाँ एक तरफ नेपाल में छात्र आंदोलित होकर सड़कों पर उतरे और केपी शर्मा ओली की सरकार को गिरा दिया, तो वहीं दूसरी तरफ हाल ही में पंजाब विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद पहली बार अध्यक्ष पद का चुनाव जीत जाती है।

सवाल यह है कि वर्तमान समय की जो युवा आबादी है, वह इन चुनावों को बर्ड आयी व्यू से देख रही है या वॉर्म आयी व्यू से देख रही है। क्या ये युवा दिल्ली विश्वविद्यालय के त्वरित मुद्दे देख रहे हैं या एक जो लंबा प्रॉसेस है जो भविष्य की संरचना कैसी होगी, उसे लेकर के देख रहे हैं।

देश की आजादी के आंदोलन में एक दौर ऐसा भी था, जिस समय युवा छात्र सड़कों पर उतर आए और अपनी आजादी के लिए, देश की आजादी के लिए लड़े, जेलों तक गए, फांसियों तक चढ़े। आज के युवा इन छात्रसंघों को, छात्र राजनीति को, उसके चुनावों को किस प्रकार से देख रहे हैं, ये भी अपने आप में सवालिया निशान खड़ा करता है।

लगातार राहुल गांधी अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से देश के युवाओं को चेता रहे हैं, जगा रहे हैं और देश के जेंजीज़ को उनके असली मुद्दों की ओर ले जा रहे हैं। देश के सामने पेपर लीक एक बहुत बड़ा मुद्दा है। नौकरियां नहीं निकल रही हैं, एग्जाम यदि हो रहे हैं तो पेपर लीक हो जा रहे हैं और फिर उसके बावजूद वोट चोरी का मुद्दा भी है। लगातार इलेक्शन कमीशन राहुल गांधी को वोट चोरी पर बोलने के लिए रोक रहा है। सत्य तो ये है कि यदि जनता के बीच मैसेज चला जाएगा कि ये वोट चोरी कर रहे हैं तो जनता शायद वोट ही देने नहीं निकलेगी।

यदि हम पिछले दस सालों के दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनावों का आकलन करें, तो पिछली बार मात्र पैंतीस प्रतिशत वोटिंग हुई थी और इस बार 39.5% वोटिंग हुई है। यह भी कहीं ना कहीं दर्शाता है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में जो छात्र इंटरेस्ट लेते थे या लेते हैं, छात्र राजनीति में उनके प्रतिशत घट रहे हैं।

यह वाकया हमें पंजाब यूनिवर्सिटी में और पटना यूनिवर्सिटी में भी देखने को मिला है कि इन दोनों जगहों पर भी वोटिंग प्रतिशत कम रही है। आखिरकार ऐसा क्यों है कि ये छात्र, युवा छात्रसंघ चुनाव में बिल्कुल भी हिस्सा लेने के लिए खुश नहीं दिख रहे हैं या हिस्सा नहीं लेना चाह रहे हैं। वोटिंग प्रतिशत तो कहीं न कहीं इस ओर इशारा कर रहा है।

एक बड़ी पिक्चर छात्रों की, युवाओं की क्या होगी, वह भी हमें देखना होगा। एक तरफ लगातार नरेंद्र मोदी का जन्मदिवस राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस के तौर पर मनाया जा रहा है, किसानों को भी आत्महत्या के रेट में, युवाओं ने एनसीआरबी के डेटा में पीछे छोड़ दिया है। फिर भी दिल्ली विश्वविद्यालय में, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में, पटना विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का जीत जाना किस ओर इशारा करता है और हमें यह भी देखना होगा कि एनएसयूआई समेत इंडिया एलायंस के जितने भी छात्र संगठन हैं, लगातार मुद्दे उठाते हुए, छात्रों के बीच में जाते हुए, वह कौन सा मसला टच नहीं कर पा रहे हैं, जिन्हें छात्र देखना व सुनना चाहता है साथ ही यह भी देखना होगा कि जो छात्र हैं, दूर के मुद्दे, भविष्य के मसलों को ना देखकर कही त्वरित मुद्दों पर आजकल ज्यादा वोट तो नहीं दे रहे हैं।

धन्यवाद

अखिलेश यादव

लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष है और जेएनयू से सेंटर फॉर हिस्टॉरिकल स्टडीज के रिसर्च स्कॉलर हैं।