भारत में हिंदुत्व अब भारतीय नहीं अमेरिकी है
पलाश विश्वास
कोलकाता। भारत में सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून-AFSPA के तहत कश्मीर और मणिपुर में जो फौजी हुकूमत है, उसके नतीजों पर हमने गौर नहीं किया है।
अभी सर्वोच्च न्यायालय का ताजा आदेश है कि मणिपुर और कश्मीर समेत आफस्पा इलाकों में सैन्यबल कोई प्रतिशोधात्मक कार्रवाई न करें। बल प्रयोग न करें। सर्वोच्च न्यायलय ने पिछले दो दशक में मणिपुर में सभी डेढ़ हजार से ज्यादा फर्जी मुठभेड़ों की जांच का आदेश भी दिया है।

कोर्ट का फैसला सेना के लिए बुरी खबर
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मणिपुर में सेना द्वारा फर्जी एनकाउंटर के आरोप वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है। कोर्ट का यह फैसला सेना के लिए बुरी खबर है।
कोर्ट ने कहा कि अगर AFSPA लगा है और इलाका भी डिस्टर्ब एरिया के तहत क्लासीफाइड भी है तो भी सेना या पुलिस ज्यादा फोर्स का इस्तेमाल नहीं कर सकते।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि क्रिमिनल कोर्ट को एनकाउंटर मामलों के ट्रायल का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सेना और पुलिस के ज्यादा फोर्स और एनकाउंटरों की स्वततंत्र जांच होनी चाहिए। कौन सी एजेंसी ये जांच करेगी, ये न्यायालय बाद में तय करेगा।

सुरेश सिंह ने दाखिल की थी याचिका
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सेना और अर्धसैनिक बल मणिपुर में 'अत्यधिक और जवाबी ताकत' का इस्तेमाल नहीं कर सकती है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा कि इस तरह की घटनाओं की निश्चित रूप से जांच होनी चाहिए।
जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने एमिकस क्यूरी को मणिपुर में हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों का ब्योरा सौंपने को कहा है।
पीठ ने कहा कि मणिपुर में फर्जी मुठभेड़ के आरोपों की अपने स्तर पर जांच के लिए सेना जवाबदेह है।
बेंच ने कहा कि मणिपुर में कथित फर्जी एनकाउंटर्स के आरोपों की जांच सेना चाहे तो, खुद भी कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि वह नेशनल ह्यूमन राइट कमिशन के इस दावे की जांच करेगी कि वह शक्ति विहीन है और उसे कुछ और पावर्स की जरूरत है।
सर्वोच्च न्यायालय जिस पिटिशन पर सुनवाई कर रहा था वह सुरेश सिंह ने दाखिल की है। सुरेश सिंह ने अशांत इलाकों में इंडियन आर्म्ड फोर्सेज को स्पेशल पावर्स देने वाले आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट को निरस्त करने की मांग की है।

टिप्पणी- अकेले छत्तीसगढ़ में हजारों आदिवासी सीधे सुरक्षाबलों के निशाने पर
रंगभेद और जाति के समीकरण के मातहत राजकरण और आर्थिक नरसंहार के गहराते जाने के खतरे, रंगभेदी राष्ट्रवाद के विश्वव्यापी हो जाने की वजह से उसकी वैश्विक प्रतिक्रिया तेज होते जाने से अमेरिका ही नहीं, भारत समेत बाकी दुनिया को अपने शिकंजे में कसकर दुनियाभर में युद्ध और गृहयुद्ध के माहौल बना रहे हैं। भारत में हिंदुत्व अब अमेरिकी है। यह बेहद गौरतलब मसला है।
इस फैसले का स्वागत करते हुए कहना होगा कि मध्यभारत और देश के आदिवासी भूगोल में नस्ली गृहयुद्ध दावानल है और अकेले छत्तीसगढ़ में हजारों आदिवासी सीधे सुरक्षाबलों के निशाने पर हैं, क्योंकि मध्य भारत के अकूत खनिज समृद्ध इलाकों में कारपोरेट हितों के लिए सलवा जुड़ुम का मतलब नरसंहार है। इसे हम भारतीय नागरिक सन 1947 से लगातार नजरअंदाज कर रहे हैं कि भारत में विकास का मतलब विस्थापन और बेदखली है तो आदिवासियों और दलितों के नरसंहार का सिलसिला भी है यह।