तृणमूल कांग्रेस की चुनाव आयोग को खुली चुनौती: “10 सांसदों से डर क्यों? मीटिंग लाइव करो”
अभिषेक बनर्जी ने ईसीआई की पारदर्शिता पर उठाए सवाल, TMC ने कहा—“बंद दरवाज़ों के पीछे लोकतंत्र नहीं चलता”
चुनाव आयोग और तृणमूल कांग्रेस के बीच तनातनी अब एक नए मोड़ पर पहुँच गई है। इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया ने तृणमूल कांग्रेस की 28 नवंबर वाली मीटिंग की मांग मान ली, लेकिन इस कदम को लेकर पार्टी ने आयोग की नीयत और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अभिषेक बनर्जी ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि जब सांसद जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि हैं, तो आयोग उनसे खुले तौर पर मिलने से क्यों हिचक रहा है? TMC ने मांग की है कि मीटिंग को लाइव टेलीकास्ट किया जाए, ताकि पूरे देश के सामने आयोग अपनी जवाबदेही साबित कर सके।
इस विवाद के बीच सवाल बड़ा है—क्या चुनाव आयोग पारदर्शिता की परीक्षा देने को तैयार है या “बंद दरवाज़ों के लोकतंत्र” की आलोचना और तेज़ होगी?
इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया ने ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस को एक लेटर लिखकर 28 नवंबर को कमीशन के साथ मीटिंग के लिए उनकी रिक्वेस्ट मान ली है।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी ने कहा,
"10 MPs के डेलीगेशन के लिए समय मांगा गया है। वे CEC और ECs के उलट, जिन्हें भारत सरकार खुद चुनती है, भारत के लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि हैं। EC को “ट्रांसपेरेंट” और “कॉर्डियल” दिखाने वाले ये सेलेक्टिव लीक सिर्फ़ एक बनावटी दिखावा हैं।
अगर चुनाव आयोग सच में ट्रांसपेरेंट है, तो वह सिर्फ़ 10 MPs का सामना करने से क्यों डर रहा है? मीटिंग खुले तौर पर करें। इसे लाइव टेलीकास्ट करें और AITC आपके सामने जो पाँच सीधे, जायज़ सवाल रखेगी, उनके जवाब दें।
क्या इलेक्शन कमीशन अपनी ट्रांसपेरेंसी साबित करने को तैयार है या यह सिर्फ़ बंद दरवाज़ों के पीछे काम करता है?"
तृणमूल कांग्रेस ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा-
"श्री अभिषेक बनर्जी की तरफ से चुनाव आयोग को कड़ी फटकार।
अगर इलेक्शन कमीशन सच में ट्रांसपेरेंट है, तो वह सिर्फ़ 10 MPs का सामना करने से क्यों डर रहा है? बंद दरवाज़ों के पीछे क्यों छिप रहा है? डेमोक्रेसी को सीक्रेट सोसाइटी की तरह क्यों चला रहा है? यहाँ एक आसान चैलेंज है:
👉 मीटिंग खुले में करो।
👉 इसे पूरे देश के देखने के लिए LIVE टेलीकास्ट करो।
👉 उन पाँच सीधे सवालों के जवाब दो जो हमारा डेलीगेशन तुम्हारे सामने रखेगा।
अगर कमीशन सच में न्यूट्रल है, तो उसे डरने की कोई बात नहीं होनी चाहिए। अगर वह सच में ट्रांसपेरेंट है, तो उसे अपनी इमेज बचाने के लिए बैकडोर ब्रीफिंग की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। तो यह कौन सी बात है? क्या इलेक्शन कमीशन अपने कामों की पब्लिक स्क्रूटनी करने की हिम्मत करेगा या वह केंद्र में रूलिंग पार्टी के एक गेटेड एक्सटेंशन की तरह काम करता रहेगा?
चुप्पी सबसे बड़ा कबूलनामा होगा।"