पहली बार किसी कोर्ट ने हिंसक भीड़ का पक्ष लिया है

पहली बार किसी कोर्ट ने हिंसक भीड़ का पक्ष लिया है

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By :  Hastakshep
Update: 2019-03-22 13:00 GMT

opinion, विचार

गुलबर्ग सोसाइटी केस में कोर्ट का विवादास्पद फैसला

  • क्या भीड़ अब न्यायपालिका की नजर में निर्दोष है?
  • गुजरात दंगों में अदालत का नजरिया – एक खतरनाक मिसाल?
  • अहसान जाफरी की हत्या पर कोर्ट की टिप्पणी और लोकतंत्र पर असर
  • भारत में भीड़तंत्र बनाम लोकतंत्र – न्यायपालिका कहां खड़ी है?

गुलबर्ग सोसाइटी जनसंहार पर कोर्ट के फैसले में पहली बार हिंसक भीड़ के प्रति सहानुभूति जताई गई है। क्या यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है?

पहली बार किसी अदालत ने भीड़ के प्रति सहानुभूति दिखाई है

हिमांशु कुमार

एसआइटी कोर्ट के जज साहब ने गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी जनसंहार पर अपना फैसला दिया है।

जज साहब ने अपने फैसले में कहा है कि मारे गये सांसद अहसान जाफरी ने अपनी लाइसेंसी बन्दूक से गोली चला कर भीड़ को भड़का दिया था जिसके कारण 69 लोग मारे गये।

जज ने पीड़ित को ही गुनहगार घोषित कर दिया

सब जानते हैं कि गोधरा में भाजपा ने ट्रेन में आग लगवाई।

उसके बाद ट्रेन में मारे गये लोगों की लाशों के साथ सारे राज्य में जलूस निकाले गये।

उसके बाद भाजपा, संघ और विहिप के नेताओं की देखरेख में भीड़ इकट्ठी कर के मुस्लिम बस्तियों और दुकानों पर हमले किये गये।

इन दंगों में करीब दो हज़ार लोगों का कत्ल किया गया।

पहली बार किसी कोर्ट ने हिंसक भीड़ का पक्ष लिया है।

आज तक सभी मानते हैं कि भीड़ लोकतन्त्र की दुश्मन है।

लोकतन्त्र समझदार नागरिकों से चलता है।

भीड़ ही हिंसक साम्प्रदायिक संगठनों की ताकत होती है।

भीड़ ने ब्रूनो को जिंदा जला दिया था, क्योंकि उसने सत्य कहा था कि पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ घूमती है।

लेकिन बाइबल कहती थी कि सूर्य पृथ्वी का चक्कर काटता है।

धर्मांध भीड़ ने लकड़ी के लट्ठे पर बांध कर ब्रूनों को ज़िदा भूना।

इसलिये कानून अदालत सभी भीड़ के न्याय को फटकारती हैं।

लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद तो भारत में पागलपन का दौरा ही पड़ा हुआ है।

पहली बार किसी अदालत ने भीड़ के प्रति सहानुभूति दिखाई है।

अगर जज, पुलिस और नेता हिन्दू की तरह सोचने लगेंगे तो इस देश को कैसे एक रखा जा सकेगा ?

(हिमांशु कुमार की फेसबुक टाइमलाइन से साभार)

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