जनसंहार रोकथाम पर बढ़ते वैश्विक ख़तरे: संयुक्त राष्ट्र के सलाहकार चलोका बेयानी की चेतावनी
दुनिया भर में बढ़ते टकरावों, नागरिकों को निशाना बनाए जाने और अंतरराष्ट्रीय क़ानून की गिरती साख को लेकर यूएन के जनसंहार रोकथाम सलाहकार चलोका बेयानी ने गंभीर चेतावनी दी है। पढ़िए सूडान और ग़ाज़ा जैसे क्षेत्रों में बढ़ती हिंसा, हेट स्पीच, दुष्प्रचार, न्यायालयों की भूमिका, और जनसंहार की शुरुआती पहचान व रोकथाम के वैश्विक प्रयासों पर विस्तृत रिपोर्ट...;
HUMAN RIGHTS
दुनिया में बढ़ते टकराव और आम लोगों पर बढ़ता ख़तरा
- यूएन की पूर्व चेतावनी प्रणाली कैसे काम करती है
- जनसंहार की परिभाषा और अंतरराष्ट्रीय क़ानून का ढांचा
- सूडान और दारफ़ूर—अत्याचारों के दोहराए जाते उदाहरण
- न्यायालयों की भूमिका और जवाबदेही की ज़रूरत
- दुष्प्रचार, हेट स्पीच और तकनीकी प्लेटफ़ॉर्म की ज़िम्मेदारी
- जलवायु परिवर्तन और संसाधनों पर संघर्ष के नए जोखिम
‘नेवर अगेन’—स्मृति से आगे बढ़कर कार्रवाई की माँग
नई दिल्ली, 10 दिसंबर 2025. दुनिया भर में टकराव, अस्थिर राजनीति और सशस्त्र संघर्षों के बीच आम नागरिकों की सुरक्षा अभूतपूर्व जोखिम में है। संयुक्त राष्ट्र जनसंहार रोकथाम सलाहकार चलोका बेयानी (Mr. Chaloka Beyani of Zambia - Special Adviser on the Prevention of Genocide. Personnel Appointments ) ने आगाह किया है कि अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून की अनदेखी और नागरिकों को युद्ध के मैदान का लक्ष्य बनाने जैसी घटनाएँ तेज़ी से बढ़ रही हैं।
सूडान के दारफ़ूर क्षेत्र से लेकर ग़ाज़ा, मध्य अफ्रीका और दुनिया के अन्य संकटग्रस्त इलाक़ों तक, हिंसा का चक्र न केवल दोहराया जा रहा है बल्कि और भी क्रूर रूप ले चुका है।
पढ़िए संयुक्त राष्ट्र समाचार की यह खबर...
जनसंहार रोकथाम: दुनिया भर में बढ़ रहे हैं अत्याचारों के जोखिम, आम लोग हैं निशाना
9 दिसंबर 2025 मानवाधिकार
जनसंहार की रोकथाम पर संयुक्त राष्ट्र के नव नियुक्त सलाहकार चलोका बेयानी ने आगाह किया है कि दुनिया में अनेक स्थानों पर टकरावों व युद्धों में आम लोगों को निशाना बनाने का चलन बढ़ रहा है, जिससे अत्याचार-अपराधों का जोखिम भी बढ़ा है. ऐसे में अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के लिए सम्मान में भी चिन्ताजनक गिरावट आई है.
चलोका बेयानी ने 9 दिसम्बर को, जनसंहार के भुक्तभोगियों की समृति व गरिमा और इस अपराध की रोकथाम के अन्तरराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर, यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत में, रवांडा और स्रेब्रेनीत्सा में हुए जनसंहारों की तुलना, आज के संकटों के सन्दर्भ में भी की है.
उन्होंने कहा, “हम बड़े पैमाने पर अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून का उल्लंघन देख रहे हैं, आम लोगों पर सीधे हमले किए जा रहे हैं, और अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है.”
“अत्याचारों का जोखिम, और असल में अत्याचार किए जाने का चलन, बहुत-बहुत अधिक है.”
उन्होंने सूडान में भयंकर होती हिंसा का ज़िक्र किया और उसे एक ज्वलन्त उदाहरण बताया. दारफ़ूर युद्ध की जाँच, 1990 के समय, एक यूएन आयोग ने की थी, और वहाँ कई दशकों बाद आज भी हिंसा जारी है. “कुछ नहीं बदला है. सिविल सरकार के पतने के बाद, संकट और भी बदतर हुआ है.”
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संकट को पहले से भाँपने की व्यवस्था
जनसंहार की रोकथाम और नागरिकों के संरक्षण की ज़िम्मेदारी का कार्यालय, यूएन के भीतर, पूर्व चेतावनी प्रणाली के रूप में काम करता है. यह प्रणाली, अत्याचार अपराधों का जोखिम भाँपने पर महासचिव, सुरक्षा परिषद और वृहद यूएन व्यवस्था को सावधान करती है, इसमें जनसंहार भी शामिल है.
चलोका बेयानी ने बताया कि यह कार्यालय, 1948 में वजूद में आए – जनसंहार के अपराध की रोकथाम व दंड पर कन्वेंशन और जनसंहार से सम्बन्धित न्यायिक मामलों से मदद लेता है और 14 तत्वों का विश्लेषण करता है. इनमें नस्लीय और धार्मिक समूहों को निशाना बनाने वाले सशस्त्र टकराव व युद्ध, से लेकर हेट स्पीच, और क़ानून के शासन का पतन सहित अनेक तत्व शामिल होते हैं.
जनसंहार क्या है?
Genocide (जनसंहार) दो मुख्यतः शब्दों से मिलकर बना है – ग्रीक भाषा के genos शब्द, जिसका मतलब होता है – लोग, नस्ल या क़बीला और लातीनी भाषा के cide – जिसका अर्थ होता है हत्या.
अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अनुसार, जनसंहार में, इनमें से किसी भी गतिविधि को, किसी राष्ट्रीय, नस्लीय, जातीय या धार्मिक समूह को, आंशिक या पूर्ण रूप में मिटाने की नीयत से अंजाम देना शामिल होता है...(सन्दर्भ: जनसंहार कन्वेंशन के अनुच्छेद-II)
1. किसी समूह के सदस्यों की हत्या.
2. किसी समूह के सदस्यों को गम्भीर शारीरिक व मानसिक हानि पहुँचाना.
3. किसी समूह पर जीवन की ऐसी परिस्थितियाँ थोपना, जिनका इरादा उस समूह के आंशिक या पूर्ण भौतिक विनाश करना हो.
4. किसी समूह में बच्चों के जन्म को रोकने के इरादे से उपाय थोपना.
5. किसी समूह के बच्चों को, जबरन किसी अन्य समूह में भेजना.
चलोका बेयानी ने कहा कि जब इन जोखिमों में एक नियमित हिंसक चलन नज़र आता है, तो यह कार्यालय चेतावनियाँ जैसी सलाहें जारी करते हैं और यूएन अधिकारियों के साथ समन्वय करते हैं, अफ़्रीकी संघ और योरोपीय संघ जैसे क्षेत्रीय संगठनों व अन्य अन्तरराष्ट्रीय प्रणालियों के साथ निकट सम्पर्क रखा जाता है.
उन्होंने कहा, “जब हमारा कार्यालय एक बार ख़तरे की घंटी बजा देता है तो उसका मतलब होता है कि ख़तरे की सीमा लांघे जाने के बहुत निकट है.”
चलोका बेयानी ने ज़ोर देकर कहा उनका कार्यालय, जनसंहार का अपराध हुआ है या नहीं, यह निर्धारित करने में मदद के लिए, अन्तरराष्ट्रीय अदालतों का दरवाज़ा खटखटाता है, “हमारी भूमिका जनसंहार की परिस्थितियों बारे में निर्धारण करना नहीं, बल्कि इसकी रोकथाम करना है.”
चुप्पी तोड़नी होगी
विशेष सलाहकार ने, निर्बल परिस्थितियों में रहने वाले लोगों के संरक्षण में, न्यायालयों और न्याय की अहम भूमिका को भी रेखांकित किया.
चलोका बेयानी ने कहा, “अत्याचारों से निपटने के मामले में जो एक चीज़ करने की ज़रूरत है वो ये कि टकरावों और युद्धों में शामिल पक्षों को यह याद दिलाना कि उन पर नज़र रखी जा रही और उनकी निगरानी की जा रही है.”
उन्होंने एक उदारहण अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) द्वारा काँगो के एक सशस्त्र नेता थॉमस को वर्ष 2012 में, बच्चों को युद्धक गतिविधियों में प्रयोग करने के लिए भर्ती किए जाने दोषी क़रार दिया था, जिसके बाद इसी तरह के अन्य सशस्त्र नेताओं ने, बच्चों की भर्ती को सार्वजनिक रूप में निन्दनीय बताया था.
चलोका बेयानी ने एक उदाहरण, ग़ाज़ा में भी जनसंहार रोकथाम कन्वेंशन को लागू किए जाने के लिए, ICJ द्वारा अस्थाई उपाय जारी किए जाने का भी दिया, जिसमें दक्षिण अफ़्रीका ने इसराइल के विरुद्ध मामला दर्ज किया था.
उन्होंने कहा कि जनसंहार की रोकथाम में, जवाबदेही शामिल है.
उभरते जोखिम
जनसंहार की रोकथम पर विशेष सलाहकार का कार्यालय जिन उभरते जोखिमों पर नज़र रखे हुए है, उनमें दुष्प्रचार, दुस्सूचना और हेट स्पीच शामिल हैं.
उनका कार्यालय, ऑनलाइन मंचों पर उकसावे से निपटने के लिए Meta और गूगल जैसी प्रौद्योगिकी कम्पनियों के सम्पर्क में है. इसके अलावा स्थानीय स्तर पर, हेट स्पीच का मुक़ाबला करने के लिए धार्मिक व सामुदायिक नेताओं के साथ मिलकर काम करता है.
विशेष सलाहकार के अनुसार पर्यावरणीय गिरावट और जलवायु परिवर्तन भी, टकरावों और युद्धों के कारक बन रहे हैं.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि भूमि व प्राकृतिक संसाधनों को हथियाने के मामलों में अक्सर आदिवासी समुदायों को निशाना बनाया जाता है, जबकि इन समूहों को संरक्षण की अत्यधिक आवश्यकता है.
इस कार्यालय को सौंपे गए शासनादेश की गम्भीरता के बावजूद, विशेष सलाहकार, जनसंहार की रोकथाम के लिए कूटनीति का सहारा लेता है और सार्वजनिक रूप में निन्दा से बचता है.
चलोका बेयानी न कहा कि उनका कार्यालय यूएन महासचिव और सुरक्षा परिषद को परामर्श देने के लिए, ख़ामोशी के साथ सम्पर्क क़ायम करता है, ज़रूरत पड़ने पर ही सार्वजनिक वक्तव्य जारी करता है.
उन्होंने भविष्य पर नज़र टिकाते हुए कहा कि जनसंहार की रोकथाम में अतीत को याद करते रहने के साथ-साथ, कार्रवाई की भी ज़रूरत है.
अतीत में हुए जनसंहारों को याद करते रहने से, हम सभी को संयुक्त राष्ट्र के स्थापना सिद्धान्त ध्यान में रहते हैं – ‘never again’ यानि, ऐसा फिर कभी नहीं हो.
उन्होंने जनसंहार की रोकथाम और भुक्तभोगियों की स्मृति और सम्मान में यूएन दिवस का ज़िक्र करते हुए कहा कि “केवल स्मरण ही पर्याप्त नहीं है. हमें अपने साधनों को मज़बूत करना होगा, विश्वास का निर्माण करना होगा और बहुत शुरुआती स्तर पर ही कार्रवाई करनी होगी.”