Bihar SIR: सुप्रीम कोर्ट में विशेष गहन पुनरीक्षण पर याचिकाओं की सुनवाई, चुनाव आयोग के खिलाफ गंभीर सवाल

By :  Hastakshep
Update: 2025-08-14 07:59 GMT

एड. पाशा: 2003 की मतदाता सूची की वैधता पर सवाल

  • बीएलओ के विवेकाधिकार और प्रक्रिया की पारदर्शिता पर लगे आरोप
  • वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने दिए तर्क: प्रक्रिया समावेशी हो, बहिष्कारी नहीं
  • एड. फौज़िया शकील की दलील : बिहार के प्रवासी, बाढ़ और डिजिटल अवसंरचना की चुनौतियाँ

सभी ने की अंतरिम राहत की मांग: आधार स्वीकार, समय सीमा बढ़ाने की अपील

सुप्रीम कोर्ट में बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (#BiharSIR) पर सुनवाई में आज याचिकाकर्ताओं ने 2003 की मतदाता सूची, बीएलओ की भूमिका, दस्तावेज़ मांगने की प्रक्रिया और प्रवासी-बाढ़ प्रभावित लोगों की मुश्किलों को लेकर चुनाव आयोग पर गंभीर सवाल उठाए..

नई दिल्ली, 14 अगस्त 2025. बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (#BiharSIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हुए। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने 2003 की मतदाता सूची की वैधता, बीएलओ के विवेकाधिकार, दस्तावेज़ों की मांग, समय सीमा की कमी और राज्य के प्रवासी व बाढ़ प्रभावित इलाकों की चुनौतियों का मुद्दा उठाया। शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से 2003 के अभ्यास में लिए गए दस्तावेज़ों का ब्योरा रिकॉर्ड पर लाने को कहा। आज बिहार में मतदाता सूची के #चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कल से आगे शुरु हुई

याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया कि 1 जनवरी 2003 की तिथि को मान्य नहीं माना जा सकता क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह तिथि मान्य क्यों है। उन्होंने कहा कि 2003 से पहले जारी किए गए EPIC कार्ड, संक्षिप्त अभ्यास के दौरान जारी किए गए कार्ड से अधिक विश्वसनीय हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि नामांकन की प्रक्रिया गहन और संक्षिप्त अभ्यास दोनों में एक ही है, इसलिए EPIC कार्ड को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। चुनाव आयोग द्वारा अलग-अलग वर्ग बनाने की मांग करने वाले नोटिस का आधार सही नहीं है और राज्य के युवाओं को परेशान किया जा रहा है।

याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत में दावा किया कि सत्ता विरोधी वोटों को कमजोर करने का इरादा है और लगभग 65 लाख लोग छूट गए हैं। यह भी कहा गया कि बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) फॉर्म जमा करने पर मतदाता को कोई रसीद नहीं दे रहे हैं और अपने विवेक का इस्तेमाल कर रहे हैं कि फॉर्म लेना है या नहीं।

शीर्ष अदालत को बताया गया कि एक बूथ से ही 231 लोगों के नाम काटे गए हैं जो 2003 की सूची में शामिल थे। याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि चुनाव आयोग बताए कि 2003 के अभ्यास में कौन से दस्तावेज़ लिए गए थे और उन्हें रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए। फॉर्म जमा करने के बावजूद लोगों को शामिल नहीं किया जा रहा है।

वरिष्ठ अधिवक्ता शोएब आलम ने तर्क दिया कि विवादित अधिसूचना में कारणों का अभाव है और यह मतदाता पंजीकरण की प्रक्रिया है, इसे अयोग्य ठहराने की प्रक्रिया नहीं माना जा सकता। वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अधिनियम की मूल भावना समावेश है और अयोग्यता के आधार पर उच्च सीमा की आवश्यकता होती है। यह भी कहा गया कि गणना प्रपत्र जमा करने पर कोई रसीद नहीं दी गई और निवास प्रमाण पत्र दिखाना होगा।

सीनियर एडवोकेट डॉ. चौहान ने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया 'दुर्भावनापूर्ण' प्रतीत होती है और आधार कार्ड को वैधानिक प्रपत्र का हिस्सा माना जाना चाहिए। चुनाव आयोग कार्यकारी आदेश द्वारा प्रावधान में बदलाव नहीं कर सकता।

एडवोकेट फौज़िया शकील ने बिहार में 1 करोड़ प्रवासियों पर इस अभ्यास के प्रभाव, बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में इसकी व्यवहार्यता, दावों/आपत्तियों के निपटारे के लिए कम समय, और नाम हटाने पर पारदर्शिता की कमी पर चिंता व्यक्त की।

उन्होंने शीर्ष अदालत को बताया कि चुनाव आयोग ने हटाई गई सूची और कारण बताना ज़रूरी नहीं बताया है, जो क़ानून के विरुद्ध है। एडवोकेट रश्मि सिंह ने कहा कि पर्याप्त बुनियादी ढाँचे के बिना बीएलओ को अव्यावहारिक कामों में लगाया गया है।

एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने कहा कि फॉर्म 6 मान्य है। मामला दोपहर 2 बजे फिर से शुरू होना था, जब चुनाव आयोग अपना जवाब देना शुरू करेगा।

याचिकाकर्ताओं की तरफ से अंतरिम राहत के रूप में वर्तमान चुनाव के लिए इस जल्दबाज़ी वाली प्रक्रिया को रद्द करने, आधार को स्वीकार करने, चुनाव आयोग द्वारा हटाई गई सूची का प्रचार करने और कारण बताने, तथा दावे/ आपत्तियाँ दर्ज करने की समय-सीमा बढ़ाने की मांग की गई।

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