कुलदीप सिंह सेंगर को ज़मानत : सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व जज की पब्लिक नैरेटिव से असहमति
जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने कुलदीप सिंह सेंगर मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश का बचाव करते हुए मीडिया की सनसनीखेज बातों और संतुलित पत्रकारिता के पतन पर सवाल उठाया है...;
Justice Markandey Katju's open letter to the Supreme Court judges: Serious questions on the working style of judges
बहस का न्योता, चिल्लाने का नहीं
आलोचकों की चुप्पी पर सवाल
मीडिया ट्रायल बनाम न्यायिक प्रक्रिया
सनसनी बिकती है, कानून नहीं
जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने सेंगर मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश का बचाव करते हुए मीडिया की सनसनीखेज बातों और संतुलित पत्रकारिता के पतन पर सवाल उठाया है...
दिल्ली हाईकोर्ट के सेंगर मामले के आदेश पर जस्टिस कटजू का पक्ष
नई दिल्ली, 27 दिसंबर 2025. कुलदीप सिंह सेंगर को ज़मानत मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के 23 दिसंबर 2025 के आदेश को लेकर जारी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू (Justice Markandey Katju, former Supreme Court judge and former chairman of the Press Council of India) ने अदालत के फैसले का समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि हाईकोर्ट का आदेश पूरी तरह सही है और इस पर की जा रही आलोचना तथ्यों और कानून की सही समझ पर आधारित नहीं है।
जस्टिस काटजू ने एक लेख लिखकर बताया कि उन्होंने इस मामले में पीड़िता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता महमूद प्राचा को ई-मेल भेजकर अपनी असहमति स्पष्ट की और सार्वजनिक मंच पर खुली बहस का प्रस्ताव भी रखा। हालांकि, उन्हें अब तक कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है।
इसी प्रकार, हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व कर रहीं सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना को भी ई-मेल के माध्यम से उन्होंने अपने विचार बताए और चर्चा के लिए आमंत्रित किया, लेकिन वहां से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
जस्टिस काटजू ने कहा कि उन्होंने कई ऐसे वरिष्ठ मीडियाकर्मियों को भी पत्र लिखा जो टीवी चैनलों और यूट्यूब पर दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश की तीखी आलोचना कर रहे थे। उन्होंने इन मीडियाकर्मियों को अपने कार्यक्रमों में बुलाकर कानूनी दृष्टिकोण रखने की पेशकश की, लेकिन किसी ने जवाब देना उचित नहीं समझा।
पूर्व न्यायाधीश का कहना है कि आज का मीडिया का एक बड़ा वर्ग सच और संतुलन से अधिक ‘मिर्च-मसाला’ पर ध्यान देता है, क्योंकि वही टीआरपी और कमाई बढ़ाता है। उन्होंने टिप्पणी की कि किसी आदेश को सही बताना सनसनी नहीं पैदा करता, जबकि उसे “भयानक” बताने से दर्शक जुटते हैं।
उन्होंने जोर देकर कहा कि पत्रकारिता का मूल धर्म निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता है, जिसमें दोनों पक्षों को सामने रखा जाना चाहिए। दुर्भाग्यवश, आज मीडिया ट्रायल की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, जो न्यायिक प्रक्रिया और जनविश्वास दोनों के लिए घातक है।
उन्होंने अंत में कहा कि जहां तक महमूद प्राचा और योगिता भयाना का प्रश्न है, वह उन्हें उनके प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देते हैं, लेकिन कानून और तर्क के स्तर पर वह अपने मत पर कायम हैं कि दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश सही है।
(जस्टिस मार्कंडेय काटजू भारत के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश तथा प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं। आप अंग्रेज़ी में उनका यह लेख यहां The Delhi High Court Order in the Sengar Case: Law, Reason, and the Noise Around It पढ़ सकते हैं)