एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक : पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने चुनाव आयोग को दी गई असीमित शक्तियों पर जताई चिंता

पूर्व CJI खेहर और चंद्रचूड़ ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक को संवैधानिक बताया, लेकिन चुनाव आयोग को दिए गए अधिकारों पर गंभीर सवाल उठाए..;

By :  Hastakshep
Update: 2025-07-12 06:30 GMT

पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने उठाए एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक के कानूनी जोखिम को लेकर सवाल

पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने उठाए एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक के कानूनी जोखिम को लेकर सवाल

चुनाव आयोग को सौंपी गई शक्तियों पर उठाए सवाल

पूर्व CJI जस्टिस खेहर और जस्टिस चंद्रचूड़ ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक को संवैधानिक बताया, लेकिन चुनाव आयोग को दिए गए अधिकारों पर गंभीर सवाल उठाए।

नई दिल्ली, 12 जुलाई 2025. ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक को लेकर संसद की संयुक्त समिति के समक्ष भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों जस्टिस जगदीश सिंह खेहर ( Former Chief Justice of India Justice Jagdish Singh Khehar) और जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (Former Chief Justice of India Justice Dhananjaya Yeshwant Chandrachud) की राय सामने आई है। दोनों पूर्व न्यायाधीशों ने विधेयक को संविधान के मूल ढांचे के अनुरूप तो बताया है, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों विशेषकर चुनाव आयोग को दी गई व्यापक शक्तियों को लेकर कानूनी और नैतिक सवाल उठाए हैं। विधेयक की संवैधानिकता, पारदर्शिता और संभावित चुनौतियों पर यह एक अहम टिप्पणी मानी जा रही है।

अंग्रेज़ी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की खबर “Joint polls constitutional, say ex-CJIs, question sweeping powers to EC in Bill” के मुताबिक दोनों पूर्व सीजेआई ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अपने वर्तमान स्वरूप में यह विधेयक संविधान की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा, खासकर भारत के चुनाव आयोग को दी गई व्यापक शक्तियों के संदर्भ में।

रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस खेहर और जस्टिस चंद्रचूड़ ने समिति के साथ लगभग पाँच घंटे लंबी चर्चा की। बताया गया कि उन्होंने न केवल पूरे विधेयक का, उसके प्रावधानों का, बारीकी से अध्ययन किया, बल्कि विधेयक से जुड़े संवैधानिक दर्शन, नैतिकता और राजनीति जैसे व्यापक मुद्दों पर भी चर्चा की।

जैसा कि आप जानते हैं कि संसदीय समिति की कार्यवाही विशेषाधिकार प्राप्त होती है और बैठकों के दौरान सदस्यों के बीच बातचीत का विवरण सार्वजनिक नहीं किया जाता। इसलिए अऱबार की यह खबर अपने सूत्रों के हवाले से है।

अखबार बताता है कि विधेयक में किसी राज्य में आपातकाल लगाने या विधानसभा भंग होने के समय केवल तीन महीने का कार्यकाल शेष होने पर भी चुनाव कराने के संबंध में कोई जानकारी न होने जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई।

क्या एक साथ चुनाव स्थानीय मुद्दों को प्रभावित करेंगे?

यह पूछे जाने पर कि क्या एक साथ चुनाव कराने से स्थानीय मुद्दे कमज़ोर पड़ेंगे, जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इसका ठीक उल्टा भी हो सकता है। उन्होंने भाषा के मुद्दे का उदाहरण दिया, जो एक क्षेत्रीय मुद्दा है और एक साथ चुनावों में राष्ट्रीय मतदान का एजेंडा बनने की क्षमता रखता है।

अविश्वास प्रस्ताव में संशोधन की वकालत

यह भी बताया गया है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुझाव दिया कि कुछ स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव के प्रावधान पर कुछ प्रतिबंधों पर विचार करने का समय आ गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि यह सदन के नियमों में संशोधन करके किया जा सकता है, जिसके लिए किसी संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता नहीं है।

संविधान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता विधेयक का वर्तमान स्वरूप : चंद्रचूड़

कहा जाता है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने समिति को बताया था कि अतुल्यकालिक (एक साथ न होने वाले) चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के मानदंड नहीं हैं और ये मूल ढाँचे का हिस्सा नहीं हैं। उन्होंने बताया कि दरअसल, गणतंत्र के इतिहास के शुरुआती दौर में संवैधानिक योजना एक साथ चुनाव कराने की थी।

बताया जाता है कि जस्टिस खेहर की भी राय इसी तरह की थी। प्रस्तावित अनुच्छेद 82ए (1) पर, उन्होंने टिप्पणी की कि यह खंड केवल नियत तिथि निर्धारित करता है, जो नई लोकसभा की पहली बैठक होगी, और इससे सदन के चुनाव संचालन या कार्यकाल में कोई बदलाव नहीं होता, इसलिए यह संविधान का उल्लंघन नहीं है। विधेयक के अनुसार, नियत तिथि के बाद निर्वाचित सभी विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ समाप्त होगा।

न्यायमूर्ति खेहर ने कहा कि यह विधेयक विधानसभाओं के कार्यकाल को केवल शेष अवधि, यानी पाँच वर्ष से कम तक सीमित करते हुए यह भी सुनिश्चित करता है कि मतदान के समय मतदाताओं को कम किए गए कार्यकाल के बारे में स्पष्ट रूप से सूचित किया जाए।

जबकि जस्टिस चंद्रचूड़ के अनुसार, संविधान केवल अधिकतम कार्यकाल, यानी पाँच वर्ष, का प्रावधान करता है, और न्यूनतम गारंटीकृत कार्यकाल का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में, कोई गारंटीकृत कार्यकाल नहीं होता, और सरकार को अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से पाँच वर्षों के दौरान अपना जनादेश साबित करना होता है।

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक देश की चुनावी प्रक्रिया में ऐतिहासिक बदलाव ला सकता है, लेकिन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों की टिप्पणियाँ इस दिशा में गहन पुनर्विचार की आवश्यकता की ओर संकेत कर रही हैं। यह साफ है कि जब तक विधेयक में प्रस्तावित बदलावों को स्पष्ट, व्यावहारिक और संवैधानिक रूप से सटीक नहीं बनाया जाता, तब तक इसे लागू करना आसान नहीं होगा। अब यह देखना शेष है कि समिति इन सुझावों को किस तरह से विधेयक में सम्मिलित करती है।

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