राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से राहत, सेना पर टिप्पणी को लेकर मानहानि मामले में कार्यवाही पर लगी रोक

By :  Hastakshep
Update: 2025-08-04 09:18 GMT

राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, सेना पर बयान को लेकर मानहानि मामले की कार्यवाही पर लगी रोक

4 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के खिलाफ लखनऊ की अदालत में दर्ज मानहानि मामले में आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी। मामला 2022 की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सेना और चीन सीमा विवाद पर दिए गए बयान से जुड़ा है। अदालत ने सुनवाई में सोशल मीडिया पर बयान देने को लेकर नाराज़गी भी जताई...

नई दिल्ली, 4 अगस्त 2025: सुप्रीम कोर्ट ने आज कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ लखनऊ की एक अदालत में दर्ज आपराधिक मानहानि के मामले पर आगामी कार्यवाही पर रोक लगा दी है। यह मामला 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भारतीय सेना और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर दिए गए बयान से जुड़ा हुआ है।

यह आदेश न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें अदालत ने राहुल गांधी को सख्त लहजे में आगाह भी किया।

क्या है मामला?

यह मामला राहुल गांधी के उस बयान से जुड़ा है जो 16 दिसंबर, 2022 को कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने दिया था। उन्होंने कथित रूप से कहा था कि "भारतीय क्षेत्र का लगभग 2000 किलोमीटर चीन ने कब्जे में ले लिया है," और यह बयान सीमा सड़क संगठन के पूर्व निदेशक की ओर से दायर मानहानि याचिका का आधार बना।

इस मामले में लखनऊ की एक एमपी/ एमएलए कोर्ट ने राहुल गांधी को समन जारी किया था, जिसे राहुल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। लेकिन उच्च न्यायालय ने मई में उनकी याचिका खारिज कर दी। अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: ‘सोशल मीडिया नहीं, संसद में बोलिए’

सुनवाई के दौरान राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए। उन्होंने कहा कि “उनका बयान राजनीतिक संदर्भ में था, और यह केवल आलोचना थी, न कि दुर्भावनापूर्ण टिप्पणी।”

इस पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा:

"अगर आप सच्चे भारतीय हैं, तो आप नहीं कह सकते कि चीन ने 2000 किमी पर कब्जा कर लिया है।"

"आप विपक्ष के नेता हैं। आप ऐसे बयान संसद में दीजिए, सोशल मीडिया पर क्यों?"

जब सिंघवी ने कहा कि "किसी ने ये सवाल नहीं पूछे थे," तो पीठ ने जवाब दिया :

"अनुच्छेद 19(1)(A) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) सही है, लेकिन आप सांसद हैं, आपको जिम्मेदारी से बोलना होगा।"

सिंघवी ने यह भी तर्क दिया कि समन आदेश जारी करते समय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया। उन्होंने कहा :

“अगर कोई बयान कुछ हद तक गलत या आपत्तिजनक भी था, तो भी समन आदेश जल्दबाज़ी में जारी किया गया। हमें सुना नहीं गया।”

इस पर पीठ ने सवाल उठाया कि क्या ये मुद्दा उच्च न्यायालय में उठाया गया था, और कहा कि “आपने वहाँ एक अलग रुख अपनाया था।”

बाद में जस्टिस दत्ता ने कहा :

“अब मैं आपकी स्थिति को समझ पा रहा हूँ।”

सुप्रीम कोर्ट का फैसला : कार्यवाही पर लगाई रोक, नोटिस किया जारी

सुनवाई के अंत में, अदालत ने लखनऊ की एमपी/ एमएलए अदालत में चल रही आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी और संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया। मामले को तीन हफ़्ते बाद फिर सूचीबद्ध किया जाएगा।

जयराम रमेश का पलटवार – ‘DDLJ नीति अपनाकर झूठ छिपा रही है सरकार’

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक विस्तारपूर्ण ट्वीट कर सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने लिखा :

"गालवान में 20 जवानों की शहादत के बाद हर देशभक्त भारतीय को सवाल उठाने का हक है, लेकिन मोदी सरकार पिछले पांच वर्षों से DDLJ नीति — Deny, Distract, Lie, and Justify — के ज़रिए सच्चाई छिपा रही है।"

सरकार से उन्होंने आठ गंभीर सवाल पूछे:

  1. प्रधानमंत्री ने 19 जून 2020 को चीन को क्लीन चिट क्यों दी?
  2. क्या अक्टूबर 2024 का वापसी समझौता अप्रैल 2020 के यथास्थिति पर लौटाता है?
  3. क्या भारतीय गश्ती दलों को अब चीनी अनुमति की आवश्यकता है?
  4. क्या बफर ज़ोन भारत के दावा क्षेत्र में आते हैं?
  5. क्या वास्तव में 1000 वर्ग किमी क्षेत्र पर चीन का नियंत्रण है?
  6. क्या लेह के एसपी ने 26 में से 65 गश्ती बिंदुओं के खो जाने की बात नहीं कही थी?
  7. क्या चीन से आयात अब भी तेज़ी से बढ़ रहा है?
  8. क्या सरकार उस चीन के साथ संबंध सामान्य कर रही है जो पाकिस्तान को सैन्य मदद दे रहा है?

जयराम रमेश ने लिखा :

“मोदी सरकार की कायरता और ग़लत आर्थिक प्राथमिकताओं ने भारत को 1962 के बाद की सबसे बड़ी क्षेत्रीय क्षति दी है।”

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला राहुल गांधी के लिए एक कानूनी राहत है। आने वाले दिनों में राजनीतिक रूप से यह मामला और गर्मा सकता है, क्योंकि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, संसद, सोशल मीडिया, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता—चारों के टकराव की बुनियादी तस्वीर दिखाई दे रही है।

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