सुप्रीम कोर्ट ‘जमानत अदालत’ बन गया, जस्टिस नागरत्ना ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत मामलों की भारी संख्या पर चिंता जताई

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने कहा है कि शीर्ष अदालत अब "जमानत अदालत" बनती जा रही हैं। उन्होंने जमानत मामलों की बढ़ती संख्या और निचली अदालतों द्वारा फैसले न देने पर चिंता जताई;

By :  Hastakshep
Update: 2025-09-22 15:34 GMT

Supreme Court judge Justice B.V. Nagarathna

सुप्रीम कोर्ट में जमानत मामलों की बढ़ती संख्या पर जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की चिंता और टिप्पणी

  • हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट की भूमिका पर सवाल
  • न्यायपालिका पर असर और सुधार की ज़रूरत

जमानत मामलों में सुप्रीम कोर्ट की सीमाएँ

सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने कहा है कि शीर्ष अदालत अब "जमानत अदालत" बनती जा रही हैं। उन्होंने जमानत मामलों की बढ़ती संख्या और निचली अदालतों द्वारा फैसले न देने पर चिंता जताई ...

नई दिल्ली, 22 सितंबर 2025 — सर्वोच्च न्यायालय की जज जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने कहा है कि अब शीर्ष अदालत का काम ज़्यादातर जमानत (bail) मामलों को सुनने‑फैसला करने का हो गया है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने यह बात उस समय कही जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जमानत मामलों की भारी संख्या पर चिंता व्यक्त की।

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस नागरत्ना ने बताया कि शुक्रवार को केवल एक दिन में ही 25 जमानत मामलों की सुनवाई हुई, और आज 19 मामले सुनने‑फैसला करने के लिए आए हैं। उन्होंने आगे कहा, “सुप्रीम कोर्ट एक बेल कोर्ट बन गया है।”

उन्होंने यह टिप्पणी वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरानारायणन की उस बात के जवाब में दी कि जब Miscellaneous (विविध) मामलों का दिन हो तो न्यायमूर्ति नागरत्ना की बेंच भोजनावकाश लेती है, ताकि अधिवक्ताओं को भी आराम मिल सके।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि बेंच को निरंतर ऐसे मामलों की सुनवाई करना थका देने वाला हो रहा है।

शंकरनारायणन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कई ऐसे मामलों में भी जमानत देता है, जिनमें हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट जमानत देने से मना कर देते हैं। उन्होंने कहा कि अन्य कोर्ट को भी जमानत देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, क्योंकि जजों में जमानत देने को लेकर काफी डर है।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने यह भी कहा कि अपराधों की दर बढ़ रही है और समाज में बदलती चुनौतियों के मद्देनज़र न्यायिक प्रभाव आकलन (judicial impact assessment) की आवश्यकता है। यदि निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन अधिक हो, या यदि ज़्यादा बेंचें हों, तो सुप्रीम कोर्ट में जमानत मामलों की संख्या कम हो सकती है।

उन्होंने आगे कहा कि हाई कोर्ट में रहते हुए उन्होंने कभी जमानत के मामले नहीं देखे थे और सुप्रीम कोर्ट आने के बाद उन्हें इस काम के बारे में सीखना पड़ा।

उन्होंने असल समस्या की तरफ ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा -"जब तक मामला यहाँ आता है, समय भी बीत चुका होता है, वह व्यक्ति काफी समय से जेल में है, आरोप पत्र दाखिल हो चुका होता है, जाँच पूरी हो चुकी होती है, आरोप तय हो चुके होते हैं, मुकदमा शुरू हो चुका होता है, इसलिए हम उसी के अनुसार मामले पर विचार करते हैं। लेकिन बात यह है कि हम ज़मानत अदालत बनते जा रहे हैं। मैं ज़मानत के लिए कभी हाईकोर्ट में बैठी ही नहीं। यहाँ आने के बाद मुझे यह काम सीखना पड़ा।"

ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट को जमानत देने‑न देने का फैसला करना पड़ता है, जबकि आरोपी की स्थिति और जमानत से जुड़े तमाम पहलुओं को ध्यान में लेते हुए सुनवाई करनी होती है।

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