एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई: घिर गया चुनाव आयोग

सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर पर आज महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। सिब्बल और सिंघवी ने BLO की भूमिका, नागरिकता निर्धारण, 1950 एक्ट और चुनाव आयोग की शक्तियों पर गंभीर सवाल उठाए... पढ़िए पूरी रिपोर्ट;

By :  Hastakshep
Update: 2025-11-27 17:15 GMT

Hearing on SIR in the Supreme Court: Big setback for the Election Commission

सिब्बल और सिंघवी ने BLO की भूमिका, नागरिकता और चुनाव आयोग की शक्तियों पर उठाए तीखे सवाल

  • सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर पर बहस: सिब्बल ने 1950 एक्ट और नागरिकता कानूनों का किया हवाला
  • BLO की सीमा क्या? सिब्बल बोले—“स्कूल टीचर कैसे तय करेगा नागरिकता का सवाल”
  • जस्टिस सूर्यकांत के सवाल—2003 की वोटर लिस्ट, दस्तावेज़ और नॉर्मेटिव स्कीम
  • सिंघवी का तर्क—“ECI विधायिका की जगह नहीं ले सकता, बड़े बदलाव सिर्फ़ संसद कर सकती है”
  • नागरिकता दस्तावेज़, 11 डॉक्यूमेंट्स की सूची और ROPA की कानूनी सीमाएँ

सुप्रीम कोर्ट: “हम प्रोसेस की नॉर्मेटिव वैधता देख रहे हैं, सुनवाई 2 दिसंबर को जारी रहेगी”

नई दिल्ली, 27 नवंबर 2025. सुप्रीम कोर्ट में आज एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) को लेकर चली बहस बेहद महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुँच गई। अदालत में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया, BLO की भूमिका, नागरिकता निर्धारण और 1950 एवं 1951 के कानूनों की संवैधानिक सीमाओं पर विस्तार से सवाल उठाए।

सिब्बल ने दलील दी कि एक स्कूल शिक्षक को BLO बनाकर नागरिकता के सवाल तय करने का अधिकार देना न केवल प्रक्रिया की जड़ को हिलाता है बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों को भी खतरे में डालता है। उन्होंने 1950 एक्ट, हैंडबुक ऑफ नेशनल इलेक्टोरल रोल्स 2016 और 2003 की वोटर लिस्ट का हवाला देते हुए कहा कि दस्तावेज़ों की मांग और बड़े पैमाने पर की जा रही वेरिफिकेशन एक असमान्य और असंवैधानिक कदम है।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने इस पूरे तर्क-वितर्क के बीच यह साफ किया कि अदालत प्रक्रिया की नॉर्मेटिव वैधता—यानी कानून और संवैधानिक ढांचे के भीतर उसकी स्थिति—को परख रही है। दूसरी ओर, सिंघवी ने ज़ोर देकर कहा कि चुनाव आयोग 324 के नाम पर विधायी अधिकार नहीं ले सकता और न ही संसद की जगह खड़ा हो सकता है। उन्होंने चेताया कि दस्तावेज़-आधारित बड़े पैमाने पर वेरिफिकेशन को वैध मानना लोकतांत्रिक ढांचे को उलटने जैसा होगा।

लंबी और कानूनी रूप से जटिल दलीलों के बाद अदालत ने सुनवाई 2 दिसंबर, 2025 तक के लिए स्थगित कर दी, जहाँ एसआईआर प्रक्रिया, चुनाव आयोग की शक्तियों और नागरिकता निर्धारण की वैधता पर बहस और गहरी होगी।
जानिए आज अदालत में क्या क्या हुआ

एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें कपिल सिब्बल और डॉ. एएम सिंघवी ने अपनी दलीलें पेश कीं।

कपिल सिब्बल की दलीलें:

उन्होंने 1950 एक्ट, 5.60 और हैंडबुक ऑफ़ नेशनल इलेक्टोरल रोल्स, 2016 का ज़िक्र किया।

उन्होंने कहा कि BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) यह तय नहीं कर सकता कि कोई व्यक्ति पागल है या नहीं, यह अधिकारियों को तय करना है।

उन्होंने 2003 और 2007 के इलेक्टोरल रोल का ज़िक्र करते हुए कहा कि 1985 के बाद पैदा हुआ कोई भी व्यक्ति रोल पर नहीं होगा।

उन्होंने सिटिज़नशिप एक्ट की स्कीम का हवाला दिया कि अगर कोई 1985 से पहले का है या 1987-2003 के बीच पैदा हुआ है तो वह नागरिक है।

उन्होंने सवाल उठाया कि BLO, जो एक स्कूल टीचर है, कैसे तय करेगा कि कोई नागरिक है या नहीं, और माता-पिता के डॉक्यूमेंट्स कैसे पेश किए जाएंगे।

सिब्बल ने कहा कि BLO को स्कूल टीचर बनाकर नागरिकता पर विचार करने का अधिकार देना खतरनाक है और एक्ट की स्कीम के खिलाफ कोई भी बड़ा बदलाव गलत होगा।

उन्होंने 21 जुलाई 2025 के एफिडेविट का ज़िक्र किया और कहा कि ECI का इस मामले में कोई अलग नज़रिया नहीं हो सकता।

उन्होंने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया गैर-संवैधानिक है और सबूत देने का बोझ व्यक्ति पर उलट जाता है, जैसा कि विदेशी एक्ट में होता है।

उन्होंने कहा कि बर्थ सर्टिफिकेट, पासपोर्ट या मार्टिक्यूलेशन जैसे डॉक्यूमेंट्स लोगों के पास नहीं होंगे, और यह डोमेन किसी व्यक्ति को वोट देने के अधिकार से वंचित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

उन्होंने कहा कि ERO वेरिफाई करता है, BLO नहीं, लेकिन BLO इसे वेरिफाई करने के लिए भेजता है।

डॉ. एएम सिंघवी की दलीलें:

उन्होंने आर्टिकल 324 और 327 का ज़िक्र किया, जिसमें संसद के पास कानून बनाने का अधिकार है।

उन्होंने कहा कि कमीशन चुनावों के कंडक्ट को रेगुलेट करने के ऑर्डर पास करने की आड़ में पूरी तरह से लेजिस्लेटिव एक्टिविटी अपने ऊपर नहीं ले सकता, जो संविधान की स्कीम के तहत सिर्फ पार्लियामेंट और स्टेट लेजिस्लेचर के लिए रिज़र्व है।

सिंघवी ने तर्क दिया कि ECI इसकी आड़ में बड़े बदलाव कर रहा है, जो लेजिस्लेशन है, और यह एक बड़ा बदलाव है जो पहले कभी नहीं हुआ।

उन्होंने सवाल उठाया कि जून 2025 में जो फॉर्म आया है, जिसमें 11-12 डॉक्यूमेंट्स लिखे हैं, वह ROPA रूल्स में कहाँ है।

उन्होंने कहा कि यह सिर्फ पार्लियामेंट के डेलीगेटेड रूल्स के तहत ही दिया जा सकता है, और कोई पार्लियामेंट्री कानून/नियम इसकी इजाज़त नहीं देता।

सिंघवी ने कहा कि उन्हें फोटो के वेरिफिकेशन से दिक्कत नहीं है, लेकिन यह तय करने के लिए वेरिफिकेशन कि मैं नागरिक हूँ या नहीं, गलत है।

उन्होंने कहा कि एक्ट और रूल्स की स्कीम में एक इंडिविजुअल एक्सरसाइज़ की बात कही गई थी, न कि एक साथ पूरी एक्सरसाइज़ की।

उन्होंने सवाल उठाया कि भारत में पहले कभी नहीं, ROPA के तहत भी नहीं, इतने बड़े पैमाने पर इजाज़त दी जा रही है, और इसकी पावर कहाँ है।

सिंघवी ने कहा कि यह मान लेना कि भारत पर हमला करने वाले लोगों की भीड़ है, एक मनगढ़ंत कहानी है, और बड़े पैमाने पर वेरिफिकेशन ही समस्या है।

उन्होंने कहा कि यह अधिकार क्षेत्र की कमी है और शान का भ्रम है।

सिंघवी ने कहा कि SIR एक सीमित चुनाव क्षेत्र में अलग-अलग/बाईलेटरल तरीके से रोल में बदलाव है, इसमें बड़े पैमाने पर कोई अधिकार नहीं है।

उन्होंने कहा कि 324 को 327 के साथ पढ़ा जाना चाहिए, और 327 के तहत ROPA कानून है।

उन्होंने कहा कि यह राज्य के हिसाब से है, सबसे ज़्यादा आबादी वाले राज्यों में, और किसी भी चुनाव क्षेत्र या उसके हिस्से के लिए कोई अलग चुनाव नहीं है।

सिंघवी ने कहा कि वे 21 के तहत बनाए गए फॉर्म को फॉलो नहीं करते हैं, ताकि अलग से चुनाव हो सके।

उन्होंने कहा कि वे 11 डॉक्यूमेंट्स के आधार पर नागरिकता की जांच करेंगे, जो खुद नियमों या कानूनी कानून का कोई रूप नहीं है।

सिंघवी ने तर्क दिया कि जिस पावर पर उन्होंने भरोसा किया है वह 324 है, लेकिन 324 को 327 में बने कानून ने हरा दिया है।

उन्होंने कहा कि संसद का इरादा किसी खास व्यक्ति को यह अधिकार देने का नहीं था कि वह इसे बड़े पैमाने पर लागू करे।

सिंघवी ने कहा कि पार्लियामेंट ने अभी तक चार फीचर्स पर फैसला किया है, और किसी भी तरह से मासिफिकेशन नहीं किया जा सकता। 2003 के लोगों को छुआ नहीं गया है, और इतने सारे रिवीजन के बाद इतने सारे सब क्लासिफिकेशन का कोई लॉजिकल नेक्सस नहीं बन पाता।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणियाँ:

उन्होंने कहा कि शायद, जब डेटा मांगा जा रहा था, तो उन्हें 2003 में पैदा हुए लोगों का आंकड़ा दिया गया था।

उन्होंने कहा कि अगर पिता का नाम लिस्ट में नहीं है और उस पर काम नहीं किया गया, तो शायद मौका चूक गया है।

उन्होंने कहा कि अगर ECI के पास यह काम करने का अधिकार कभी नहीं होगा, तो यह कोई रूटीन/रोज़ाना अपडेट नहीं है।

उन्होंने कहा कि अगर कोई प्रोसेस ट्रांसपेरेंट है, तो ECI उसे अपनाएगा।

उन्होंने कहा कि धारा 327 के तहत कानून, धारा 324 के मकसद को आगे बढ़ाएगा।

उन्होंने सवाल उठाया कि अगर पार्लियामेंट अगली बार कहे कि किसी के फंडामेंटल राइट्स छीन लिए जाएं, तो क्या ऐसा किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि 21 और प्रोविज़ो का मतलब अलग हो सकता है, पावर का इस्तेमाल गलत हो सकता है, और वे प्रोविज़ो का अलग-अलग मतलब निकालना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि अगर कमीशन कहता है कि किसी चुनाव क्षेत्र में बड़ी संख्या में मरे हुए वोटर हैं, तो कमीशन कैसे कह सकता है कि हम कुछ में मरे हुए वोटरों को नज़रअंदाज़ करेंगे और दूसरों में नहीं।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ:

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे प्रोसिजरल अनफेयरनेस पर बाहर नहीं कर रहे हैं, वे देख रहे हैं कि यह नॉर्मेटिव प्लेन पर है या नहीं।

उन्होंने कहा कि उन्हें इलस्ट्रेटिव डॉक्यूमेंट्स पेश करने होंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि वह सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर में लिस्ट में दिए गए सभी डॉक्यूमेंट्स दिखा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे कमीशन ने जो किया है, उसके आधार पर इसका अलग से मतलब निकालना चाहते हैं।

सुनवाई का परिणाम:

सुनवाई 2 दिसंबर, 2025 को फिर से शुरू होगी।


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