सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को बिहार वोटर लिस्ट पुनरीक्षण पर करेगा सुनवाई
ADR, महुआ मोइत्रा, मनोज झा व योगेंद्र यादव की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को सुनेगा बिहार वोटर लिस्ट पुनरीक्षण विवाद पर अहम मामला...;
सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को बिहार वोटर लिस्ट पुनरीक्षण पर करेगा सुनवाई
- क्या है बिहार में विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR)?
- क्यों पहुंची ADR और अन्य याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट?
- गरीब और ग्रामीण मतदाताओं पर पड़ेगा क्या असर?
याचिका में उठाए गए संवैधानिक और कानूनी सवाल
ADR, महुआ मोइत्रा, मनोज झा व योगेंद्र यादव की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को सुनेगा बिहार वोटर लिस्ट पुनरीक्षण विवाद पर अहम मामला...
नई दिल्ली, 7 जुलाई। सुप्रीम कोर्ट आगामी 10 जुलाई को चुनाव आयोग के उस आदेश के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करेगा, जिसमें बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) की प्रक्रिया शुरू की गई है।
याचिकाकर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा, राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव शामिल हैं।
सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अवकाशकालीन पीठ — न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची — के समक्ष मामले का उल्लेख करते हुए तत्काल सुनवाई की मांग की। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं को 10 जुलाई को सूचीबद्ध करने की सहमति दे दी।
कपिल सिब्बल के साथ वरिष्ठ वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी, गोपाल शंकरनारायणन और शादान फरासत भी मौजूद थे।
चुनाव आयोग के आदेश पर क्या हैं मुख्य आपत्तियाँ?
एडीआर ने अपनी जनहित याचिका (PIL) में चुनाव आयोग के 24 जून के निर्देश को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया है कि बिहार में मतदाता सूची में नाम बनाए रखने के लिए नागरिकता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21ए का उल्लंघन करता है।
याचिका में कहा गया है कि यह कदम न सिर्फ नागरिकों पर अनावश्यक दस्तावेज़ीकरण का बोझ डालता है, बल्कि आधार और राशन कार्ड जैसे व्यापक रूप से प्रयुक्त दस्तावेजों को अस्वीकार करने की बात कहता है। इससे विशेष रूप से ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मतदाताओं को नुकसान पहुंचने की आशंका है। याचिका में चेतावनी दी गई है कि इससे लाखों वास्तविक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हट सकते हैं, जिससे वे अपने मताधिकार से वंचित हो जाएंगे।
एसआईआर दिशा-निर्देशों के अनुसार, 2003 की मतदाता सूची में नाम नहीं होने वाले नागरिकों को अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे। वहीं, दिसंबर 2004 के बाद जन्मे लोगों को अपने साथ-साथ माता-पिता दोनों के दस्तावेज भी प्रस्तुत करने होंगे। यदि माता-पिता विदेशी नागरिक हों, तो उनका पासपोर्ट और वीजा भी मांगा गया है।
एडीआर का याचिका में कहना है कि बिहार जैसे राज्य में, जहां जन्म पंजीकरण की दर ऐतिहासिक रूप से कम रही है, इस तरह की शर्तें अव्यावहारिक हैं। एडीआर ने अनुमान लगाया है कि तीन करोड़ से अधिक मतदाता इन शर्तों को पूरा नहीं कर पाएंगे और मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि चुनाव आयोग ने इस विशेष संशोधन अभियान की कोई स्पष्ट और उचित वजह नहीं बताई है, जबकि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) के अनुसार ऐसा निर्णय तभी लिया जा सकता है जब इसके पीछे स्पष्ट कारण दर्ज किए गए हों।
10 जुलाई की सुनवाई पर टिकी हैं कई निगाहें
अब इस अहम मामले पर सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को सुनवाई करेगा, जिसके परिणाम का असर बिहार सहित पूरे देश के लोकतांत्रिक ढांचे पर पड़ सकता है।