भक्तगण कृपया लोड न लें, आइए जानें "वैशाखनंदन" गधे को क्यों कहा जाता है
मृणाल पांडे के ट्वीट में 'जुमला जयंती' और 'वैशाख नन्दन' जैसे शब्दों के इस्तेमाल पर विवाद हो रहा है। यह बहस अब इस ओर मुड़ गई है कि क्या प्रतिष्ठित साहित्यकारों को भी ऐसी उपमाओं का सहारा लेना पड़ रहा है और 'वैशाख नन्दन' शब्द का शास्त्रीय संदर्भ क्या है;
why is the donkey called vaishakhanandan
Learn why a donkey is called "Vaishakhanandan"
मृणाल पांडे ने अपने ट्वीट में जो कहा है उसकी निंदा हो रही है लेकिन आपको सोचना होगा कि क्या स्थिति इस कदर बिगड़ गयीं है कि लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों को भी जुमला जयंती जैसे शब्द का इस्तेमाल करना पड़ रहा है और बेचारे वैशाख नन्दनों का अपमान करना पड़ रहा है जिससे खुद मोदी जी प्रेरणा लेते हैं।
वैशाख नन्दन एक शास्त्रीय शब्द है देवभाषा संस्कृत में गधे को वैशाख नंदन कहा गया है।
अब "वैशाखनंदन" गधे को क्यों कहा जाता है इस को भी जान लेना समीचीन होगा।
जब हरियाली का मौसम आता है तो सभी जानवर अति प्रसन्न हो उठते हैं क्योंकि अब उन्हें सर्वत्र हरी हरी घास पेट भर कर मिलती है एवं समस्त जानवर भर पेट हरी हरी घास खाकर हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं। किन्तु गधा एक ऐसा प्राणी है जो हरियाली के मौसम में बहुत ही कमजोर हो जाता है एवं जब हरियाली समाप्त हो जाती है और वैशाख का महिना आता है एवं खाने हेतु जब सूखी घास रह जाती है वह भी बहुत कम मात्रा में तब यह गधा अधिक हृष्ट पुष्ट हो जाता है। आखिर ऐसा कैसे होता है ?
वजह यह है कि जब हरियाली में गधा घास चरता है एवं बार-बार पीछे मुड़कर देखता है कि मैं कितनी घास खा चुका हूँ तब वह पाता है कि पीछे तो हरा ही हरा नजर आ रहा है अर्थात मैंने अभी बहुत ही अल्प मात्रा में घास खाई है, इस प्रकार पूरी हरियाली के मौसम में गधा अधिक खाकर भी मानसिक रूप से अतृप्त ही रहता है। एवं वैशाख माह में जब गधा घास चरता है एवं बार-बार पीछे मुड़कर देखता है और पात़ा है कि पीछे मात्र मिट्टी ही है यब वह तृप्त होता है कि अरे वाह मैंने तो पूरी घास चुन चुनकर खा डाली पीछे बिलकुल भी घास नहीं छोड़ी।
आजकल जितने भी उद्घाटन मोदी जी कर रहे हैं उनके मन मे ऐसी भावना आ जाना स्वाभाविक है इसलिए भक्तगण कृपया लोड न लें।
गिरीश मालवीय
गिरीश मालवीय की फेसबुक टाइम लाइन से साभार