चुनाव आयोग के SIR ऑर्डर पर बड़ा खुलासा : संधू की चेतावनी दर्ज, फाइनल आदेश से नागरिकता एक्ट का ज़िक्र गायब
चुनाव आयुक्त संधू की लिखित चेतावनी और SIR ड्राफ्ट में नागरिकता एक्ट के ज़िक्र को फाइनल ऑर्डर से हटाने का खुलासा। जानिए रिपोर्ट में क्या सामने आया...;
Election commissioners are at loggerheads over SIR, with Sandhu objecting.
SIR पर चुनाव आयुक्तों में तनातनी, संधू ने जताई थी आपत्ति
- ड्राफ्ट SIR ऑर्डर में संधू की लिखित चेतावनी दर्ज
- ड्राफ्ट में नागरिकता एक्ट का ज़िक्र, लेकिन फाइनल आदेश में गायब
- व्हाट्सऐप पर हुई थी ड्राफ्ट की उसी दिन मंज़ूरी
- फाइनल ऑर्डर का अधूरा पैराग्राफ और आयोग की चुप्पी
- संधू की चिंता—कमज़ोर वर्ग को न हो परेशानियाँ
- रिपोर्ट पर EC और कमिश्नरों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं
- ECI के SIR ऑर्डर पर बड़ा खुलासा
संधू की चेतावनी दर्ज, फाइनल आदेश से नागरिकता एक्ट का ज़िक्र गायब
नई दिल्ली, 2 दिसंबर 2025. चुनाव आयोग के बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision in Bihar SIR) ऑर्डर को लेकर एक अहम खुलासा सामने आया है, जिसके मुताबिक चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू और सीईसी ज्ञानेश कुमार के बीच SIR को लेकर गंभीर मतभेद हैं और हड़बड़ी में आदेश ऐसा जारी किया गया जो पूरे देश के लिए एक मुसीबत बन गया है। अंग्रेज़ी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि जिस दिन SIR का ड्राफ्ट तैयार हुआ, उसी दिन चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू ने नोटिंग में साफ लिखा कि “असली वोटरों/नागरिकों”—विशेषकर बुज़ुर्गों, बीमारों, दिव्यांगों और गरीब तबकों—को किसी तरह की परेशानी न हो। लेकिन उसी दिन व्हाट्सऐप पर अप्रूव हुए ड्राफ्ट के जिन हिस्सों में नागरिकता कानून का ज़िक्र शामिल था, वह संदर्भ अंतिम आदेश से हटा दिया गया। इतना ही नहीं, अंतिम आदेश के एक पैराग्राफ में अधूरा वाक्य भी रह गया, जिस पर आयोग ने अब तक कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है।
The Indian Express में Damini Nath की रिपोर्ट "In writing, Election Commissioner Sandhu cautioned against harassment of ‘genuine citizens’; final SIR order dropped mention of Citizenship Act" में बड़ा खुलासा किया गया है।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि 24 जून को, जिस दिन चुनाव आयोग ने बिहार से शुरू करके देश भर में वोटर लिस्ट का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) करने का आदेश जारी किया, चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू ने आदेश के ड्राफ्ट वर्जन में एक चेतावनी नोट रिकॉर्ड पर रखा।
रिपोर्ट के मुताबिक संधू ने ड्राफ्ट ऑर्डर की फाइल में लिखा, “इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि असली वोटर/नागरिक, खासकर बूढ़े, बीमार, PwD (दिव्यांग लोग), गरीब और दूसरे कमजोर ग्रुप के लोगों को परेशानी महसूस न हो और उन्हें सहूलियत मिले।”
यह साफ़ तौर पर उस एक्सरसाइज़ का ज़िक्र था जिसमें सभी मौजूदा वोटर्स को गणना प्रपत्र (enumeration form) भरने और कुछ कैटेगरीज़ को अपनी एलिजिबिलिटी साबित करने के लिए एक्स्ट्रा डॉक्यूमेंट्स देने की ज़रूरत थी।
इसके बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार (Chief Election Commissioner Gyanesh Kumar) ने फाइल पर साइन कर दिया।
खास बात यह है कि जिस जल्दी से ऑर्डर जारी किया गया था, उससे पता चलता है कि ड्राफ्ट ऑर्डर को उसी दिन WhatsApp पर अप्रूव कर दिया गया।
जब 24 जून की शाम को फ़ाइनल ऑर्डर पब्लिक किया गया, तो उसमें एक ज़रूरी बदलाव किया गया।
द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा रिव्यू किए गए ड्राफ्ट ऑर्डर में, पैराग्राफ 2.5 और 2.6 में SIR को नागरिकता एक्ट से साफ तौर पर जोड़ा गया था, और इस प्रोसेस को सही ठहराने के लिए एक्ट में किए गए बदलावों का इस्तेमाल किया गया था : “कमीशन की यह संवैधानिक ज़िम्मेदारी है कि वह यह पक्का करे कि सिर्फ़ वही लोग वोटर लिस्ट में शामिल हों जो भारत के संविधान और नागरिकता एक्ट, 1955 (‘नागरिकता एक्ट’) के अनुसार नागरिक हैं। नागरिकता एक्ट में 2004 में एक बड़ा बदलाव किया गया था और उसके बाद, पूरे देश में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है।”
लेकिन, फ़ाइनल ऑर्डर में सिटिज़नशिप एक्ट और 2003 में पास हुए और 2004 से लागू अमेंडमेंट का ज़िक्र हटा दिया गया।
24 जून के फ़ाइनल ऑर्डर के पैराग्राफ़ 8 में, चुनाव आयोग ने लिखा : “जहां तक, संविधान के आर्टिकल 326 में बताई गई बुनियादी शर्तों में से एक यह है कि किसी व्यक्ति का नाम इलेक्टोरल रोल में रजिस्टर होने के लिए भारतीय नागरिक होना ज़रूरी है। इसलिए, आयोग की यह संवैधानिक ज़िम्मेदारी है कि सिर्फ़ वही लोग वोट करें जो नागरिक हैं;” (sic)।
पैराग्राफ अचानक खत्म हो जाता है, सेमीकोलन के बाद वाक्य टूट जाता है।
24 जून के बाद से, चुनाव आयोग ने अधूरी लाइन पर कोई कमेंट नहीं किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 28 नवंबर को, द इंडियन एक्सप्रेस ने EC के स्पोक्सपर्सन से दोनों ऑर्डर में बदलाव के बारे में पूछने के लिए कॉन्टैक्ट किया, लेकिन कोई कमेंट नहीं मिला।
इंडियन एक्सप्रेस ने कमिश्नर संधू से उनके नोट के बारे में भी पूछा और यह भी कि क्या उनकी चिंताओं पर ध्यान दिया गया। वे कमेंट के लिए उपलब्ध नहीं थे।
हालांकि, फाइनल ऑर्डर को देखने से पता चलता है कि संधू की चिंताओं की झलक फाइनल ऑर्डर में भी मिली।
उन्होंने जिस बात पर ध्यान दिलाया था, उसे फाइनल ऑर्डर के पैराग्राफ 13 में शामिल कर लिया गया, बिना उनका नाम लिए।
रिपोर्ट में बताया गया है कि 24 जून के ऑर्डर में कहा गया है, “यह एक बड़ा बदलाव है, अगर 25 जुलाई, 2025 से पहले गिनती का फ़ॉर्म जमा नहीं किया जाता है, तो वोटर का नाम ड्राफ़्ट रोल में शामिल नहीं किया जा सकता है। हालांकि, CEO/DEO/ERO/BLO (चीफ़ इलेक्टोरल ऑफ़िसर, डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफ़िसर, इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफ़िसर और बूथ लेवल ऑफ़िसर के लिए) को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि असली वोटर, खासकर बूढ़े, बीमार, PwD, गरीब और दूसरे कमज़ोर ग्रुप को परेशान न किया जाए और जितना हो सके, वॉलंटियर लगाकर उनकी मदद की जाए।”
खास बात यह है कि संधू के “नागरिकों” वाले ज़िक्र को हटा दिया गया।
SIR प्रक्रिया पर उठे ये सवाल चुनाव आयोग के आंतरिक संघर्ष की झलक भी देते हैं और आदेश में किए गए आख़िरी पलों के बदलावों को लेकर एक नई बहस खड़ी करते हैं। ड्राफ्ट और अंतिम आदेश के बीच आई विसंगतियाँ अब उस पारदर्शिता पर सवाल उठाती हैं जिसे आयोग हमेशा अपनी पहचान बताता रहा है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के बाद निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि चुनाव आयोग अब इस मामले पर कोई औपचारिक स्पष्टीकरण देता है या नहीं।