कुछ बातें बेमतलब / अंडा का फंडा
बिहार में शिक्षक बहाली की प्रक्रिया पर व्यंग्य। जुगनू शारदेय का लेख — अंडा, फंडा और सुप्रीम कोर्ट के डंडे के बीच फंसी नीतीश सरकार की शिक्षा नीति...

jugnu shardeya
- बिहार में शिक्षक बहाली का अंडा फंडा — सुप्रीम कोर्ट का डंडा, निर्वहन कुमार और शिक्षा की विडंबना
- शिक्षक बहाली का सवाल — पहले मुर्गी या अंडा?
- सुशासन बाबू से बने निर्वहन कुमार, पर बहाली का निर्वहन अधूरा
- सुप्रीम कोर्ट का डंडा और बिहार सरकार की वरीयता सूची का फंडा
- जाति नहीं, ‘श्रेणी’ के नाम पर नई बहाली राजनीति
- आसमानी-सुल्तानी मुआफ — सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के बीच फंसी शिक्षा नीति
बिहार में शिक्षक बहाली की प्रक्रिया पर व्यंग्य। जुगनू शारदेय का लेख — अंडा, फंडा और सुप्रीम कोर्ट के डंडे के बीच फंसी नीतीश सरकार की शिक्षा नीति...
एक होता है अंडा । अंडा बेचने वालों ने चलाया खेल और कहा कि संडे हो या मंडे – रोज खाओ अंडे। अंडा की बहुत सारी परिभाषा है । जैसे मुहावरे में कहा जाता है कि शिक्षक बनने के लिए बिहार मत जाना, बहाली के नाम पर मिलेगा अंडा । सचमुच में शिक्षक की बहाली बिहार में कुछ वैसा ही हो गया है कि पहले मुर्गी या अंडा।
सुशासन बाबू से नीतीश कुमार निर्वहन कुमार हो गए । पर शिक्षक बहाली का निर्वहन नहीं हो पाया । अब तो उसमें सुप्रीम कोर्ट का डंडा भी लगा है ।
मुद्दा सिर्फ शिक्षकों का नहीं है – प्रशिक्षित शिक्षकों का है। बिहार सरकार इनकी सूची बनाती है। सुप्रीम कोर्ट उसे नकारती है। यह सारा मामला बड़ा कानूनी है। अब बिहार में शिक्षा मंत्री, क्षमा करें सम्मान से जिसे कहा जाता है मानव संसाधन मंत्री भी बड़ा कानूनी है । फिर भी कानूनी मंत्री कानून की भाषा नहीं समझता। सुप्रीम कोर्ट पेंच की बोली बोलता है। न बहाल हुआ मास्टर कुंकड़ू कू बोलता है।
कौन न मर जाए , इस कानून पर मास्टर , वार भी करते हैं तो बन नहीं पाते हैं मास्टर।
मुर्गियों को नहीं पता होता कि उनकी कोई वरीयता सूची भी होती ह । अंडा सर्दियों में महंगा होता है और खाने में वरीयता होता है । अंडा खाना है ,गर्मी लाना है । सूची में भी वरीयता होती है । वरीयता को हिंदी में सीनियरिटी कहा जाता है । बिहार सरकार की वरीयता की अपनी परिभाषा है। चुनाव में जाति खत्म हो रही है शिक्षक बहाली में जाति बन रही है। इसे जाति नहीं श्रेणी कहा जाता है।
तो राज्य सरकार ने तीन श्रेणी बना दी – उर्दू , शारीरिक शिक्षा और सामान्य विषय। इसी आधार पर बना दी सूची 34 हजार 540 शिक्षकों की वरीयता। पता नहीं कितना काम होता है सुप्रीम कोर्ट के पास, कुछ कुछ टाइम पास होता है सुप्रीम कोर्ट के पास कि वरीयता की सामान्य सूची हो जिसमें उम्मीदवार 1 लाख 29 हजार हों । वरीयता का अंडा तय करेगा 34 हजार 540 शिक्षकों की बहाली का फंडा।
शिक्षा का भी एक फंडा होता है। बिहार में न जाने कब से यह अंडा होता है।
निर्वहन कुमार के पास कभी चुनाव आयोग का तो कभी सुप्रीम कोर्ट का डंडा होता है । बेचारा सुप्रीम कोर्ट बिहार के मामले में हो जाता है ठंडा । इसे पता ही नहीं कि पुराने जमाने में जब सट्टा होता था – सट्टा को आजकल एग्रीमेंट कहा जाता है । कुछ लोग इसे करार के नाम से भी जानते हैं । कुछ इसे बेकरार भी मानते हैं । तो पुराने जमाने के करार में एक कलम यानी बिंदु यानी प्वायंट लिखा जाता था कि आसमानी – सुलतानी मुआफ।
आसमानी को अब बिहार में आपदा प्रबंधन कहा जाता है। जब पानी की जरूरत हो तो यह नहीं बरसता और सुखाड़ लाता है । निर्वहन कुमार इससे निपटने के लिए बिहार की बौद्ध भिक्षु परंपरा में दिल्ली जाते हैं। ऐसा भी होता है कि पानी बरस जाता है तो बाढ़ आ जाती है । तो भी निर्वहन कुमार दिल्ली जाते हैं । तो करार में इस आसमानी से माफी मांगी गई थी । सुलतानी को अब चुनाव आयोग कहा जाता है । इस सुलतानी के आगे सुप्रीम कोर्ट का भी बस नहीं चलता । इसिलिए 31 अगस्त तक बिहार सरकार ने चुनाव आयोग के नाम पर समय मांग लिया ।
यह है शिक्षक बहाली के अंडा का फंडा – अब 19 जनवरी 2011 को दिखेगा एक नया डंडा कि बिहार में प्रशिक्षित शिक्षकों के पास नहीं है प्रशिक्षण का झंडा ।
जुगनू शारदेय
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं, फिलहाल दानिश बुक्स के सम्पादकीय सलाहकार


