जस्टिस मार्कंडेय काटजू की कलम से

2002 का गुजरात 'दंगा' ( जो वास्तव में दंगा नहीं, बल्कि मुसलमानों का नरसंहार था) बिलकिस बानो के घर वालों के साथ भी जघन्य अपराध और हत्या किया गया था। यहां तक कि स्वयं बिल्किस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ। जबकि बिलकिस बानो उस समय पांच माह के गर्भ से थीं।

इस जघन्य अपराध में शामिल सभी को उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई थीI बाद में गुजरात सरकार द्वारा 15 अगस्त 2022 को सभी को रिहा कर दिया गयाI इसके बाद विश्व हिंदू परिषद् के दफ्तर में इन सभी दोषियों को फूल मालाओं से स्वागत किया गया था।

उच्चतम न्यायालय ने 8 जनवरी 2024 को गुजरात सरकार के उस फैसले को पलट दिया, और आदेश दिया कि इन सब सजायाफ्ता मुजरिमों को दो सप्ताह के भीतर वापस जेल भेजा जाए I

दो प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं: पहला ये कि गुजरात सरकार ने इन सब को 15 अगस्त 2022 को रिहा किया थाI विश्व हिंदू परिषद् के कार्यालय ने इन सबका माला पहनाकर स्वागत कियाI उसी समय से ये जघन्य अपराधी आज़ाद हैं, तो प्रश्न यह है कि क्या वे सब कभी पकड़े भी जायेंगे?

उन्हें रिहा हुए 17 माह बीत चुके हैं, ऐसे में यह शक पैदा होना अतिश्योक्ति न होगा कि खुद उच्चतम न्यायालय के मुताबिक गुजरात की जो सरकार मुजरिमों से मिल कर रिहा कराने में सम्मिलित थी, क्या वो इन मुजरिमों को ढूंढ कर जेल में डालने का गंभीर प्रयास करेगी ? हो सकता है कि अपराधी गुजरात में कहीं छुप गए हों, या छिपने के लिए दूसरे राज्य में चले गए, या देश से बाहर भाग गए हों ? गुजरात पुलिस गुजरात सरकार के आदेशों का ही पालन करेगी, और पुलिस इन मुजरिमों को खोजने में शिथिलता बरतेगीI यह मुमकिन है कि गुजरात सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी कर ले, और मुजरिमों को तलाश न कर पाने, या उन सब को न पकड़ पाने, के लिए बहाने भी तलाश कर दे।

दूसरी बात यह कि ऐसा जघन्य अपराध, इन दोषियों को सजा-ए-मौत दिए जाने का थाI ऐसे में सवाल यह है कि फिर क्यों इस अपराध के लिए उम्र कैद की सजा दी गई ?

विदित रहे कि 1980 के भजन सिंह बनाम पंजाब सरकार के मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मृत्युदंड बहुत ही जघन्य अपराध में दिया जाना चाहिए (rarest of rare cases) I बिल्किस बानो के साथ किए गए इस जघन्य अपराध और क्रूरता को देखते हुए यह निश्चित रूप से अपराध, घोर कलंक ( rarest of rare ) की श्रेणी में आता है।

ऐसा लगता है कि भारत में कुछ जज नरम और दयालु हैं, जो ऐसे क्रूर अपराध में भी मृत्युदंड देने में हिचकिचाते हैं और दयालुपन दिखाते हैं। मेरे अनुसार ये इनकी तरफ से घोर लापरवाही है।

ऐसे जजों को मैं भीष्म पितामह की उस सलाह की याद दिलाना चाहता हूं जो भीष्म पितामह ने महाभारत के शान्तिपर्व में युधिष्ठिर को दी थी।

जब महाभारत समाप्त हुआ और कौरव हार गए, तो युधिष्ठिर का राज्याभिषेक होना थाI युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से मुलाकात की और अपनी प्रजा के साथ राजा के रूप में व्यवहार के बारे में सलाह मांगी। इस अवसर पर भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा :

मैं जानता हूँ कि स्वाभाविक रूप से तुम क्षमाशील, सहनशील, और दयालु हो, किंतु राज्य की व्यवस्था इस प्रकार नहीं चलाई जा सकतीI कभी-कभी तुमको कठोर दण्ड देना पड़ेगाI "

जजों को ऐसे मामले में भीष्म पितामह की सलाह नहीं भूलना चाहिए।

(लेखक जस्टिस काटजू सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं। यह उनके निजी विचार हैं)

Bilkis Bano Case: Advice from Bhishma Pitamah