पिछड़ेपन की सज़ा : इज़राइल-ईरान संघर्ष और भारत के लिए चेतावनी- जस्टिस काटजू का लेख

  • दुनिया का कठोर नियम: पिछड़ेपन की सज़ा तय है
  • नीत्शे की दर्शन और उसका आज के भारत से संबंध
  • ईरान पर इज़राइली हमला: कमजोरी की कीमत
  • भारत का ऐतिहासिक पतन: 25% GDP से गरीबी तक
  • मत्स्य न्याय: शास्त्रों में भी ताकतवर की प्रधानता
  • चीन-जापान का पुनरुत्थान: क्यों भारत पिछड़ गया
  • भारतीय उपमहाद्वीप की त्रासदी: विभाजन और संघर्ष

अब समय है पुन: एकता और औद्योगिक क्रांति का

इज़राइल-ईरान संघर्ष ने एक बार फिर साबित किया कि दुनिया में पिछड़ेपन की सज़ा जरूर मिलती है। जस्टिस काटजू के विचारों के आधार पर यह लेख भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लिए आधुनिक सोच और एकता की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

जस्टिस मार्कण्डेय काटजू

दुनिया का एक कठोर नियम है : पिछड़ेपन की सज़ा मिलती है

हाल ही में इज़राइल द्वारा ईरान पर किए गए हमले ने एक स्पष्ट संदेश को दोहराया है: वास्तविक दुनिया में पिछड़ेपन की सज़ा मिलती है।

जैसा कि जर्मन दार्शनिक नीत्शे ने कहा था – शक्ति एक गुण है, दोष नहीं, कमज़ोरी ही सबसे बड़ा दोष है। ताकत एक खूबी है, ऐब नहीं, और कमज़ोरी ही सबसे बड़ा ऐब है।

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जो समाज या देश विकास और तरक्की में पीछे रह जाते हैं, उन्हें बहुत बुरे और कड़वे नतीजे भुगतने पड़ते हैं।

दुनिया का दस्तूर दुर्भाग्य से यही है I

जो समाज या राष्ट्र विकास और प्रगति में पीछे रह जाते हैं, उन्हें कठोर और कड़वे नकारात्मक परिणामों का सामना करना पड़ता है। दुनिया का चलन यही है कि विकसित देश पिछड़े देशों को अपने पैरों तले रौंदते हैं। यह दुनिया एक जंगल की तरह है, जहां जंगल का कानून चलता है – यानी शक्तिशाली जानवर शिकार करते हैं और कमजोर मारे जाते हैं। हिंदू शास्त्रों में इसे 'मत्स्य न्याय' कहा गया है – जहां बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है।

जब चीन और जापान गरीब, सामंती और पिछड़े देश थे, तो उन्हें पश्चिमी देश "पीली नस्लें" ( yellow races ) कहकर अपमानित करते थे और उनके साथ अमानवीय व्यवहार करते थे। लेकिन आज वे शक्तिशाली, औद्योगिक देश बन चुके हैं, और अब कोई भी उनका अपमान करने की हिम्मत नहीं कर सकता।

जब भारत पिछड़ा और सामंती था, तब अंग्रेज़ों ने हमें जीतकर जमकर लूटा। एक समय था जब मुग़ल काल में भारत विश्व की 25% GDP का योगदान देता था, संभवतः उस समय दुनिया का सबसे अमीर देश था। लेकिन अंग्रेज़ों के शासन में यह घटकर महज़ 2% रह गया, और भारत एक दरिद्र राष्ट्र बन गया। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि हमने आधुनिकता और औद्योगीकरण को अपनाया नहीं।

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जर्मन दूतावास में डिनर

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जब शाह भाग गए, तो ईरानी जनता ने आयातुल्लाह खोमैनी, आयातुल्लाह खामेनेई जैसे प्रतिक्रियावादी धार्मिक मौलवियों को सत्ता सौंप दी – जो असल में जाहिल और गांव के मूर्ख ( village idiots ) जैसे लोग थे, बिल्कुल वैसे ही जैसे अफगानिस्तान के तालिबान या पाकिस्तान के तहरीक-ए-लब्बैक।

इज़राइल के हमले ने सिर्फ परमाणु ठिकानों और सुविधाओं को ही नहीं ध्वस्त किया, बल्कि शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों और जनरलों को भी मार गिराया। यह सब कभी न हो पाता अगर ईरान एक तरक्कीपसंद, शक्तिशाली, और विकसित देश होता और उसके नेता आधुनिक सोच वाले होते।

यह हमला भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों के लिए एक स्पष्ट संदेश देता है:

धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक सोच वाले नेताओं के नेतृत्व में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश ( जो वास्तविकता में एक ही देश हैं ) को फिर से एकजुट होना होगा, और 1947 के ब्रिटिश धोखे (जिसकी बुनियाद नकली दो राष्ट्र सिद्धांत पर थी) को समाप्त करना होगा। यही धोखा हमें आज तक आपसी दुश्मनी और विदेशों से हथियार खरीदने में अपनी बहुमूल्य और सीमित संसाधनों की बर्बादी में उलझाए हुए है।

Indian reunification is an idea whose time has come

The mighty modern industrial state which the people of the Indian subcontinent will create

हमें एक शक्तिशाली, एकजुट और लंबा जन संघर्ष शुरू करना होगा, जिसमें आधुनिक सोच वाले देशभक्त नेता भारत को चीन की तरह एक आधुनिक औद्योगिक महाशक्ति में बदलने के लिए अग्रसर हों I

अन्यथा हमें गरीब, पिछड़े और अपमानित होते रहने के लिए तैयार रहना होगा।

Our Long March has not even begun

हालिया इज़राइली हमले से यही सबक मिलता है — या तो बदलो, या कुचले जाओ।

(Justice Katju is a retired judge of the Supreme Court of India. These are his personal views.)