धर्म से बहुत बड़ा है प्रेम, और सबसे बड़ा है बच्चे का प्रेम
बच्चों का प्रेम धर्म और नफरत से बड़ा होता है। पलाश विश्वास बच्चों, सांता क्लॉज और मासूम कहानियों के जरिए प्रेम की ताकत बताते हैं...

पलाश विश्वास
पलाश विश्वास एक लेखक, वरिष्ठ पत्रकार, रंगकर्मी, आंदोलनकारी व स्तंभकार हैं. उन्होंने कई रचनाएं लिखी हैं.
बच्चों को बच्चा बने रहने देने की ज़रूरत क्यों है
सवाल पूछते बच्चे और हमारी जिम्मेदारी
पढ़ाई से परे रचनात्मकता: खेल, संगीत और चित्रकला का महत्व
बच्चों का प्रेम: निस्वार्थ, अहिंसक और निर्मल
डोडो, सांता क्लॉज और गांव भर की खुशियां
सिद्धार्थ, मंदिर की माटी और दादाजी का प्रेम
धर्म, पहचान और बच्चों की सहज मनुष्यता
जब बच्चा सांता बनता है और समाज मुस्कुराता है
बच्चों का प्रेम धर्म और नफरत से बड़ा होता है। वरिष्ठ पत्रकार पलाश विश्वास बच्चों, सांता क्लॉज और मासूम कहानियों के जरिए प्रेम की ताकत बता रहे हैं...
कृपया बच्चों को बच्चा बने रहने दें। जल्दी बड़ा और कामयाब बनाने के चक्कर में उनका बचपन न छीनें। उनकी जिज्ञासाओं का अंत नहीं है। उनके सवालों का सही जवाब देने का प्रयास करें। उन्हें प्रश्न करने से रोके नहीं। अगर बच्चा पढ़ने-लिखने के बजाय खेलकूद, चित्रकला, संगीत और नृत्य में रुचि ज्यादा ले, तो पढ़ाई के नाम पर उसकी रचनात्मकता और प्रतिभा पर अंकुश कृपया न लगाएं।
निजी तौर पर बच्चों के प्रश्नों, उनके देखने और कहने के नजरिए से, उनके निश्छल प्रेम से रोज सीखता हूं। पृथ्वी, प्रकृति और सारी चीजों को देखने का उनका तरीका मौलिक और अप्रत्याशित होता है, जिसमें उनकी रचनात्मकता होती है।
मैं घर में, गांव में स्कूल में या आते-जाते हुए हर बच्चे से दोस्ती करने की कोशिश करता हूं। उनका प्यार निस्वार्थ होता है। उनके संवाद में हिंसा और नफरत नहीं होती। वे रोज अपनी पृथ्वी को अपनी स्मृति और कल्पना में रचते हैं, जो हमारी पृथ्वी से सुंदर और बेहतर होती है। मुझे उनसे प्रेरणा, शिक्षा और ऊर्जा मिलती है।
क्रिसमस से पहले डोडो ने हमसे सांता क्लॉज की ड्रेस लाने को कहा था। हमने ला दी। सांता बनते ही डोडो ने देखा, उसकी ड्रेस के साथ एक छोटा सा थैला है।
फौरन उसने कहा, मुझे टॉफी चाहिए।
हमने कहा, आपके दांतों में दर्द होता है। टॉफी नहीं कुछ और ले लीजिए।
वह बोला, सांता तो सबको गिफ्ट बांटता है। हम टॉफी नहीं बांट सकते?
लिहाजा ढेर सारी टॉफी खरीदी गईं।
शिवन्या इन दिनों खूब साइकिल चलाती है।
डोडो ने कहा, दीदी, आप सांता की हिरण बन जाओ।
फिर क्या था? शिवन्या साइकिल चला रही थी और डोडो गांव भर के बच्चों और बड़ों को भी टॉफी बांटता रहा।
मैं अक्सर भूलने लगा हूं। रात को गैस वाले से गैस देने के लिए कहा था। सुबह सात बजे गैस वाला रुद्रपुर से गैस लाए। गाड़ी हमारे घर के सामने खड़ी करके दरवाजे पर दस्तक देते रहे। मुझे गैस की याद नहीं थी। सविता जी भी भूल गई थीं। बहुत घना कोहरा था। ठंड काफी ज्यादा थी। इससे ज्यादा गहरी नींद थी। खुली नहीं।
फिर गैस वाले को फोन किया। अगली सुबह छह बजे सड़क पर जाकर खड़ा हो गया। कोहरा था। ठंड भी थी। गलन और ओस अलग थी। खुले में खड़े नहीं हो सकते थे। मंदिर और स्कूल के पीछे दुकान के बरामदे में जाकर खड़ा हुआ। तब तक घर से कोई नहीं निकला था।
तभी मैंने देखा कि डोडो का दोस्त नर्सरी में पढ़ने वाला सिद्धार्थ सौ डेढ़ सौ मीटर की दूरी से अपने घर से बाहर निकला। मैं सामने खड़ा हो गया।
पूछा, इतनी ठंड में, इतनी सुबह कहां जा रहे हैं आप।
उसने कहा, मंदिर।
काली मंदिर सुनसान था। मैंने सोचा, शायद उसकी माँ या दादी वहां होंगी।
पांच मिनट में सिद्धार्थ वहां से लौट आया। मंदिर में कोई नहीं था। उसके हाथ में कुछ था।
मैंने पूछा, क्या ले जा रहे हो।
उसने कहा, माटी।
मैंने पूछा, क्यों?
मेरे दादाजी को बुखार आ गया है। इस माटी से वे ठीक हो जाएंगे।
यह आस्था या संस्कार का मामला नहीं, बिल्कुल विशुद्ध प्रेम का मामला है।
दादाजी को ठीक करने की लिए इस कड़ाके की सर्दी में बिस्तर और नींद से निकलकर वह मंदिर से माटी ले गया।
मैं कतई धार्मिक नहीं हूं। दैवीय चमत्कार में मेरी आस्था नहीं है। लेकिन किसी देवी चमत्कार से ज्यादा बड़ा चमत्कार सिद्धार्थ के प्रेम में है। मुझे पक्का यकीन है।
सांता की ड्रेस डोडो को देने पर टुसू ने कहा था, डोडो को यह ड्रेस क्यों दे रहे हैं? देख नहीं रहे, क्रिसमस के खिलाफ पूरे देश में क्या हो रहा और हमारे लोग भी कितने बदल गए हैं?
सांता बनकर जब डोडो गांव में घर-घर निकला, सिर्फ बच्चे ही नहीं, सारे लोग खुश हुए।
धर्म से बहुत बड़ा है प्रेम
और सबसे बड़ा है बच्चे का प्रेम।
पलाश विश्वास


