जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने कह रहे हैं कि नेहा सिंह राठौर बहादुर कलाकार हैं, लेकिन उन्हें उर्दू शब्दों का सही उच्चारण सीखना चाहिए — यही असली नज़ाकत है...

नेहा सिंह राठौर को अपनी उर्दू सुधारनी चाहिए

न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू

मुझे बड़ा खटकता है जब कोई उर्दू लव्ज़ का सही तलफ़्फ़ुज़ ( उच्चारण ) न हो I नेहा सिंह राठौर को मैं बहादुर महिला मानता हूँ, जो जनता के वास्तविक मुद्दे जैसे ग़ुरबत, बेरोज़गारी, महंगाई आदि को बहादुरी से अपने गीतों में उजागर करती हैंI

पर नेहा और आज के अधिकतर हिंदुस्तानी सही तलफ़्फ़ुज़ का इस्तेमाल न करके उर्दू जैसी महान भाषा की कमर तोड़ देते हैंI

यह वीडियो देखिये इसमें नेहा मज़े को मजे, ख़बर को खबर, ख़तरा को खतरा, ज़रूरत को जरुरत, ज़रा को जरा, यक़ीन को यकीन, ख़त्म को खत्म, ग़ज़ब को गजब, ग़ायब को गायब, आवाज़ को आवाज, बेरोज़गारी को बेरोजगारी, ख़ुद को खुद, ज़्यादा को जादा, रोज़गार को रोजगार, ज़िम्मेदारी को जिम्मेदारी कहती हैं

इस छोटी सी तक़रीर में नेहा ने 15 ग़लतियाँ कीI

मैं यह सब नेहा को नीचे गिराने के लिए नहीं कह रहा हूँ, बल्कि नेहा को बुलंदी पर पहुंचाने के लिएI

मैं नेहा का बड़ा प्रशंसक हूँ, पर सही प्रशंसक आलोचक भी होता है।

(जस्टिस काटजू, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)