कुछ बातें बेमतलब

  • कर्नाटक में फिर संवैधानिक संकट
  • राज्यपाल का 'वेदांत': अधिकार या अतिक्रमण?
  • येदियुरप्पा सरकार: नैतिकता या जातिवाद की जीत?
  • बोम्मई से लेकर बेलारी तक – इतिहास खुद को दोहरा रहा है
  • लोकायुक्त की बात बनाम राजनैतिक समीकरण
  • भ्रष्टाचार पर चुप्पी: भाजपा बनाम कांग्रेस का नया पाठ

असली मजा तो अब आएगा – लोकतंत्र या ढकोसला?

कर्नाटक में संवैधानिक वेदांत की राजनीति! येदियुरप्पा, राज्यपाल और नैतिकता पर वरिष्ठ पत्रकार जुगनू शारदेय की तीखी और व्यंग्यात्मक टिप्पणी।

कहते हैं कि जब अपने ऊपर पड़ती है तो सारा सिद्धांत वेदांत हो जाता है। यहां सचमुच में देश का कर्नाटक में संविधान का वेदांत हो गया है। पता नहीं कि ऐसा कर्नाटक में ही क्यों होता है। वह भी तब होता है जब कोई गैरकांग्रेसी मुख्य मंत्री होता है। बड़ा ही दिलचस्प मामला है। अब किसे याद है कि बरसों बरस पहले कर्नाटक में एस आर बोम्मई की सरकार को भी राज्यपाल जी ने नमस्ते जी कह दिया था। राज्यपाल जी कोई मामूली चीज नहीं होते हैं। अकसर उनका नाम राज्यपाल बनने के पहले उनके अपने राज्य में भी कोई नहीं जानता। अब बिहार के राज्यपाल देबानंद कुंवर जी को ही ले लीजिए

– पहले कभी सुना था इनका नाम। राज्यपाल बनने की पहली शर्त होती है कि केंद्र में जिसका शासन हो, वह आप पर प्रसन्न हों। राज्यपाल मनोनीत होते ही हमारे घोंघा प्रसाद वसंत लाल जी भी संवैधानिक मूर्ति हो जाते हैं। जैसे कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज। मजाक नहीं हैं कभी केंद्र में कानून मंत्री भी रह चुके हैं। बोम्मई जी की सरकार जब बरखास्त हुई तो अदालत में चले गए। अदालत ने फैसला सुना दिया कि राज्य सरकार सिर्फ विधान सभा से ही जा सकती है। अगर यह फैसला न होता तो वह येदिरुप्पा को सीधे सीधे बरखास्त ही कर देते। सिर्फ वेदांत कर के छोड़ दिया। अब आएगा मजा

जब संविधान की ऐसी ऐसी परिभाषा और व्याख्या होगी कि राज्यपाल के अधिकार का वेदांत हो जाएगा।

यहां कोई समझदार आदमी बप्पा रे बप्पा येदिरुप्पा का समर्थन नहीं कर सकता। उनकी सरकार की जड़ में पहले दिन से ही नैतिक बेईमानी की लता फल फूल रही है। संविधान के नंबर ज्ञान का उन्होने हमेशा फायदा उठाया। बिहार को दुनिया जातिवाद के लिए बदनाम करती है। यहां येदिरुप्पा खुलेआम अपनी जाति लिंगायत का लाभ उठाते हैं। बेलारी के रेड्डी बंधुओं का खेल सबको पता है। वह वहां बाकायदा मंत्री हैं। यह भी सबको पता है कि अल्पमत की सरकार को जिस चालाकी से उन्होने बहुमत में ला कर दिखा दिया – वह भी कमाल की ही चीज है। वह भी हमारे मुंडी वादी संविधान का वेदांत ही था। अब आएगा मजा कि राज्यपाल की निगाहों का दागी मुख्य मंत्री अपने श्रीमुख से ही अपनी आलोचना करेगा।

नैतिकता के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाली भ्रामक जनता पार्टी और अनैतिकता का सुपरबाजार बनी कांग्रेस पार्टी यहां अपना-अपना संविधान का वेदांत बघारेंगे। इसमें बात अधिकार की ही नहीं है। अधिकार तो जैसा कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने कहा कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सिफारिश को मानने के लिए बाध्य नहीं है, अगर वह महसूस करता है कि मंत्रिपरिषद की सिफारिश जाल बट्टा तुड़ी बाजी है। यहां फिर बात संविधान के वेदांत की है। एक तो राज्यपाल के पास की गई नागरिकों की शिकायत फौजदारी मामले का नहीं है। यह मामला-ए-दीवानी है। भले लोगों ने ऐसे मामले में इस्तीफा भी दिया है। कर्नाटक में ही फोन टेपिंग के मामले पर रामकृष्ण हेगड़े ने इस्तीफा दिया था। पर इतनी शराफत न तो भ्रामक जनता पार्टी में है, न येदिरुप्पा में। अब तो उनका बचाव कर भाजपा साबित कर देगी कि भ्रष्टाचार के बल बूते पर बनी सरकार भी सही सरकार होती है। और कांग्रेस पार्टी कहेगी कि देखो हमसे बड़े बड़े वेदांती हमारे देश में हैं। हमें क्या, हम तो मजा लेंगे क्योंकि यही तो है असली।

अब आएगा मजा।

जुगनू शारदेय

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)