#DHAKA ATTACK बांग्लादेश में भी फर्जी मुठभेड़ का गुजरात मॉडल !
#DHAKA ATTACK बांग्लादेश में भी फर्जी मुठभेड़ का गुजरात मॉडल !
#DHAKA ATTACK आतंक के राजनीतिक फर्जीवाड़ा का खुलासा
पलाश विश्वास
कोलकाता। सेफ को आंतंकवादी बताने के खिलाफ सोशल मीडिया में यह पोस्ट वाइरल है, जो गुलशन कांड में आतंक के राजनीतिक फर्जीवाड़ा का खुलासा करता है।
"ক্ষমা করে দিও মা, তোমার প্রশ্নের জবাব আমার কাছে নাই" রেস্টুরেন্টের নিহত প্রধান শেফকে জঙ্গী বানানো হয়েছে। জাতির চোখে আর কত ধুলা দেয়া হবে ? জাতি কি অন্ধ ?? আসলে কি হচ্ছে এসব ??? প্রিয় স্বদেশের নাটক কি আর শেষ হবে না ????? ~ জাহিদ এফ সরদার সাদী #dhakaattack
"ক্ষমা করে দিও মা, তোমার প্রশ্নের জবাব আমার কাছে নাই"
রেস্টুরেন্টের নিহত প্রধান শেফকে জঙ্গী বানানো হয়েছে। জাতির চোখে আর কত ধুলা দেয়া হবে ? জাতি কি অন্ধ ?? আসলে কি হচ্ছে এসব ??? প্রিয় স্বদেশের নাটক কি আর শেষ হবে না ????? ~ জাহিদ এফ সরদার সাদী
#dhakaattack
बांग्लादेश में जो हो रहा है, वह इस महादेश के लिए बेहद खतरनाक है। ढाका के राजनयिक इलाका गुलशन के लोकप्रिय रेसतरां में आतंकवादी हमला का यह ड्रामा भयंकर सत्ता संघर्ष है। यह मामला गुजरात और यूपी के फर्जी मुठभेड़ और मालेगांव धमाकों की तरह है।
मारे गये हमलावर सभी बेगुनाह लोग बताये जा रहे हैं और अवामी लीग के नेता का बेटा लिस्ट में होने के बावजूद उसकी लाश नजर नहीं आ रही है।
आतंक के इस राजनीतिक फर्जीवाड़े का खुलासा इसलिए भी बेहद जरूरी है कि राजनयिक पहल के तहत समस्या का स्थाई समाधान करने के लिए भारत के सत्तावर्ग की कोई दिलचस्पी नहीं है और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मामले का राजनीतिक इस्तेमाल के तहत पश्चिम बंगाल में उग्र हिंदुत्व के तहत सत्ता हासिल करने तक यह मामला सीमाबद्ध नहीं है।
इसके साथ ही मुजीबउर रहमान की अवामी लीग का अंध समर्थन करते रहने की अंध विदेशनीति की वजह से भारतीय जनता और भारतीय राजनीति और भारत सरकार के लिए वहां पक रही खिचड़ी का जायजा लेना असंभव है।
संबसे गंभीर आरोप यह है कि यह वारदात अंजाम देने में आतंकी हमलावर नहीं बल्कि बांग्लादेश की पुलिस और रैब का हाथ है और ट्विटर पर आतंकी संगठनों के नाम जिम्मेदारी लेने वाले पोस्ट करने वाले भी बांग्लादेश के सरकारी सर्वोच्च अफसर हैं।
इसके अलावा जिन आतंकवादियों पर हमले की जिम्मेदारी डाली गयी है, उनमें से एक अवामी लीग के बड़े नेता का बेटा है और छह हमलावरों में उसकी लाश गायब है।
जो आधिकारिक चित्र इस वारदात के जारी किये गये हैं, उनकी प्रामाणिकता को भी चुनौती दी जा रही है।
आरोप है कि अंसार अल इस्लाम के नाम पर सारे ट्वीट सिटीटीसी के अफसर मणिरुल ने जारी किये।
इसी सिलसिले में Qamrul Islam ने लिखा है। हस्तक्षेप पर यह पोस्ट साझा किया जा चुका है। जो बेहद खतरनाक है और अगर सच है तो पूरे महादेश के आतंक के फ्रजीवाड़े के खुल्ला खेलफर्रूखाबादी का खुलासा है। बेहतर हो कि इनआरोपों को गंभीरता से लेकर भारत सरकार भारत के हितों के मद्देनजर इसके सच की जांच पड़ताल भी कर लें।
आरोप है कि हमलावर बतौर मारे गये युवक महीनों से लापता थे और उनके लापता होने की रपट लिखायी गयी थी, लेकिन उन्हें खोजने की कोशिश ही नहीं हुई। आप भारत में होने वाले फर्जी मुठभेड़ के मामलो से ऐसे तथ्यों की जांच कर लें।
फिर महज कुछ महीनों में विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले मेधावी छात्र जो सोशल मीडिया में भी खासे सक्रिय थे, इतने जुनूनी कैसे हो गये कि उनने इस भयंकर वारदात को अंजाम देदिया, जबकि इस वारदात में अभी विदेशी हाथ कहीं दीख नहीं रहा तो इस घरेलू हिंसा की तैयारियों से पुलिस और खुफिया विभाग अनजान कैसे थे, इस पर कोई सफाई नहीं है।
इससे भी ज्यादा गंभीर आरोप यह कि हमलावर बताये जा रहे युवक पुलिस हिरासत में थे और वारदात को उन्हें मारकर आतंकवादी उन्हें सजाया जा रहा है।
खतरनाक बात यह भी है कि भारत के हिंदुत्ववादी सत्तावर्ग और भारतीय मीडिया पर बांग्लादेश में 1971 की तर्ज पर सैन्य हस्तक्षेप की तैयारी हसीना की मिलीभगत से करने का आरोप है और इस दुष्प्रचार के जरिये इस्लामी राष्ट्रवाद न सिर्फ गैर मुसलमान दो करोड़ की आबादी पर निशाना बांध रहा है, उसके निशाने पर बांग्लादेश में सक्रिय धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतें भी हैं।
भारत विरोधी इस अभियान में पक्ष विपक्ष की राजनीति पूरी तरह शामिल है और भारतीय राजनय को इसकी काट नहीं है।
सुंदरवन को भारत की निजी कंपनियों के हवाले कर देने के भारत बांग्लादेश सहयोग जैसे द्विपक्षीय संबंध से आम जनता में भी इस दुष्प्रचार की साख पर कोई संदेह नही है।
घटना के बाद हम लगातार बांग्लादेश के हालात पर नजर रखे हुए हैं। आधिकारिक बयानों के अलावा विभिन्ऩ सूत्रों से मिली जानकारी हम लगातार टुकड़ा टुकड़ा मूल बांग्ला में शेयर करते रहे हैं जो बांग्लादेश के मीडिया और सोशल मीडिया में दहक रहे हैं लेकिन भारतीय मीडिया भारत सरकार या विदेश मंत्रालय को भोंपू बना हुआ है। जो सिर्फ हसीना सराकार के आधिकारिक बयान का समर्थन कर रहा है।
जैसा कि हमने लिखा है कि गुलशन कांड कोई आतंकवादी हमला नहीं है, उसी के मुताबिक सारे तथ्य आहिस्ते आहिस्ते सामने आ रहे हैं।
हमलावर बताये जा रहे युवाओं का महीनों से लापता रहना और अचानक हमलावरों की लाश में तब्दील हो जाना बांग्लादेश को हजम हो नहीं हो रहा है।
जिस रेस्तरां में यह वीभत्स हत्याकांड हुआ, उसके बेगुनाह सेफ को आतंकवादी के बतौर पेश करना खबरों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।
सारी रात इंतजार करके मुठभेड़ को पुलिस और रैब के मातहत अंजाम देना और भोर में सेना के हवाले करने से बड़ी संख्या में विदेशियों की हत्या हो जाना बेहद रहस्यजनक है और हसीना सरकार के पास इसका कोई साफ जवाब नहीं है।
सेना को बुलाने के लिए इतनी देर क्यों की गयी और सेना के ढाका में मौजूदगी के बावजूद दो दो पुलिस अफसरों के मारे जाने के हालात में हमलावरों को विदेशी नागरिकों का कत्लेआम करने की छूट क्यों दी गयी है, हसीना सरकार के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं है। मीडिया पर सेंसर लगू कर देने की वजह से उनकी साख भी दांव पर है।
मसलन पूछा जा रहा है कि आवामी लीग के नेता के बेटे रोहन इम्तियाज जिंदा है कि मुठभेड़ में मारा गया। हमलावरों की लाशों की जो तस्वीरें जारी की गयी है, उनमें रोहन की लाश नहीं है।
मसलन पूछा जा रहा है कि क्या आवामी लीग के नेता के बेटे रोहन इम्तियाज को बचाने की कवायद में बेगुनाहों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
हमलावरों में शामिल कर दी गयी रेस्तरां के सेफ सेफुल इस्लमाम की लाश की तस्वीर जारी होने के बाद यह सवाल और तीखा बनकर उभरा है।
इसके अलावा कुल कितने हमलावर थे और सरकार की तरफ से जारी उनकी तस्वीरों की प्रामाणिकता के क्या सबूत हैं, यह सवाल भी पूछा जा रहा है। सरकार या आवामी लीग के नेता बता नहीं रहे हैं कि रोहन का क्या हुआ। वह जिंदा है या मार दिया गया। मारा गया है तो उसकी लाश कहां हैः
इसी तरह मारे जाने वाले तेरह विदेशी नागरिकों की मौत तक इंतजार करने के लिए हसीना सरकार को जिम्मेदार बताया जा रहा है और अलग से पोस्ट भी डाले जा रहे हैं कि दरअसल हसीना को भारतीय सेना के पहुंचने का इंतजार था।
सेना और प्रशासन के आधिकारिक बयान को चुनौती दी जा रही है।
सोशल मीडिया और मीडिया में कम से कम चार हमलावर निर्बास इस्लाम, मीर साबेह मुवास्वेर, रोहन इम्तियाज राइयान नियाज के चित्र हमलावर बतौर छापे गये हैं लेकिन अभी तक रोहन की लाश की तस्वीर नहीं मिली और न कोई आधिकारिक खुलासा है।
अगर हम इसे आईएस का हमला मान भी लें तो सवाल यह है कि ढाका में भारतीय दूतावास मेहमाननवाजी और दावतों के सिवाय क्या कर रहा था जो उसे भनक तक नहीं पड़ी, क्योंकि बांग्लादेश की सीमा पाकिस्तान सीमा की तरह बंद नहीं है और समूचे पूर्वोत्तर, बंगाल, बिहार, असम और त्रिपुरा में बांग्लादेश से भारी संख्या में शरणार्थी सैलाब के साथ साथ भारतविरोधी तत्वोंकी ऐसी घुसपैठ संभव है जिसे हम पाकिस्तान सीमा की तर्ज पर निबटा नहीं सकते।
बहुत तेजी से नेपाल से भारत के रिश्ते राजनयिक दिवालियापन और हिंदुत्व के अंध एजंडे के कारण खराब होते गये और अब नेपाल में जो भी कुछ होना है, वह भारतीय हितों के मुताबिक नहीं होना है और नेपाल में भारत की दादागिरि हमेशा के लिए खत्म है। हूबहू बांग्लादेश में यही होने जा रहा है।
अगर बांग्लादेश में इस्लामी राष्ट्रवाद की इतनी भयंकर सुनामी है तो वहां दो करोड़ गैर मुसलमान देर सवेर भारत में शरणार्थी बनने को मजबूर होंगे,
...जैसा कि सन 1947 से लगातार होता रहा है और इस समस्या के समाधान में भारत के सत्तावर्ग की कोई दिलचस्पी नहीं रही है, क्योंकि वह गिनिपिग की तरह शरणार्थियों के इस्तेमाल के लिए अभ्यस्त हैं और असंगठित शरणार्थी भी उनके खेल में शामिल हो जाते हैं। बंगाल से बाहर छितरा दिये जाने की वजह से भारत के हर राज्य में बंगाली शरणार्थी सत्तादल के वोटबैंक में तब्दील हैं और इसलिए किसी भी राजनीतिक पहल की कोई संभावना नजर नहीं आती।
इससे खतरनाक बात यह है कि अब तक भारतीय महादेश में विदेशी सैन्य हस्तक्षेप की गुंजाइश नहीं बनी है, जो अब बन रही है बहुत तेजी से। मसलन बांग्लादेश में अगर अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप हुआ तो अंजाम भारत के लिए इराक और अफगानिस्तान से बहुत बुरा होगा। सीरिया से जैसे शरणार्थी सैलाब ने यूरोप कब्जा लिया है, वैसा भी नहीं होगा। सारे शरणार्थी भारत आयेंगे और तेलकुंओं की आग से भारत को बचाना असंभव होगा।


