विचारधारा को कुएं में कैद मत करिए वरना यह समाज मौत का कुआं बन जाएगा।
विचारधारा को कुएं में कैद मत करिए वरना यह समाज मौत का कुआं बन जाएगा।

अभिषेक श्रीवास्तव (Abhishek Shrivastava), जनपक्षधर, यायावरी प्रवृत्ति के वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनकी शिक्षा दीक्षा आईआईएमसी में हुई है
हम लोग पब्लिक डोमेन के आदमी हैं। वामपंथ के तेजिंदर बग्गा नहीं हैं।
अभिषेक श्रीवास्तव
IIMC के कार्यक्रम में कुल मिलाकर आधा दर्जन लोग ऐसे थे जो 'उनके' नहीं थे। अंग्रेज़ी में जिसे 'The Other' कहते हैं। आयोजकों ने भले ही मेरे सहित Ankur Jaiswal, Vinay Sultan, Vishwa Deepak, Sushil Jey को सप्रेम प्रवेश करने दिया था, लेकिन जिस किस्म की निराधार आशंका वे बार-बार आकर ज़ाहिर कर रहे थे वह मेरे लिए दुख की बात थी।
आशीष कुमार 'अंशु' लगातार इस बात को लेकर सशंकित थे कि हम लोग कार्यक्रम में विघ्न न डाल दें। उन्होंने दो बार मुझसे कहा कि IB की रिपोर्ट है कि मैं इस कार्यक्रम में गड़बड़ कर सकता हूँ। यह बात मज़ाक में थी या गंभीर, मैं नहीं जानता लेकिन उन्होंने मुझे 2010 के 'हंस' की संगोष्ठी का हवाला भी दिया जहां विभूति नारायण राय और आलोक मेहता के खिलाफ नारे लगे थे। यही आशंका एसआरपी कल्लूरी ने भी ज़ाहिर की जब वे मंच से बोले कि उन्हें रिपोर्ट मिली है कि उनके ऊपर सभागार में बैठे कुछ लोग जूता या स्याही फेंक सकते हैं।
ऐसी आशंकाएँ दिखाती हैं कि पुरानी निजी पहचान भी कैसे सियासी ज़हर से संदिग्ध हो जाती हैं। बहुत सरल बात है कि जिस कृत्य की हम खुद आलोचना करते हैं, वही खुद कैसे कर सकते थे? आखिर हम वहां एक पत्रकार के बतौर मौजूद थे, वैचारिक मतभेद अपनी जगह! दुख ज़्यादा इस बात का है कि बाहर मौजूद प्रदर्शनकारियों को भी उम्मीद थी कि सभा में प्रोटेस्ट होगा। प्रोटेस्ट करना ज़रूरी है या अपने विरोधी को ध्यान से सुनना और गुनना? दोनों की अहमियत अपनी जगह है। बराबर।
हम लोग पब्लिक डोमेन के आदमी हैं। वामपंथ के तेजिंदर बग्गा नहीं हैं। सुनते हैं, सुनाते हैं और बचा हुआ लिखते हैं। मुझे लगता है कि फेन्स के दोनों तरफ एक अजीब किस्म का परसेप्शन बना हुआ है। मित्रों, अपने पूर्वाग्रहों को तोड़िए वरना इस समाज में संवाद की जो जगह बची हुई है, कहीं खत्म न हो जाए। मतभेद को ज़ाहिर करने के पचास तरीके हैं। हर व्यक्ति का तरीका अलग-अलग हो सकता है, इसे समझिये। विचारधारा को कुएं में कैद मत करिए वरना यह समाज मौत का कुआं बन जाएगा।
Web Title: Do not imprison ideology in a well, otherwise this society will become a well of death.


