कांग्रेस के साथ आरंभ से दिक्कत यह रही है कि वह किसी भी मुद्दे पर कोई भी स्टैण्ड चुनावी गुणा भाग लगाकर लेती है और अगर मामला गांधी नेहरू खानदान के खिलाफ न हो तो उसे पलटी मारने में तनिक भी हिचक नहीं होती है। उसकी इसी कमजोरी का फायदा उठाकर देश में सांप्रदायिक और फासीवादी ताकतें अपना विस्तार करती रही हैं और कांग्रेस फौरी नुकसान देखकर अहम मसलों पर अपने कदम पीछे हटाती रही है जिसका बड़ा नुकसान अन्तत: देश को उठाना पड़ा है। कुछ ऐसा ही मामला फिलहाल 'भगवा आतंकवाद' के मसले पर हुआ जब राज्य पुलिस महानिदेशकों के एक तीन दिवसीय सम्मेलन में गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने ध्यान दिलाया कि देश में भगवा आतंकवाद भी है। बस भगवा गिरोह ने जब शोर मचाना शुरू किया तो कांग्रेस बैकफुट पर आ गई और चिदंबरम से उसने अपना पिण्ड छुड़ा लिया। नतीजतन हिन्दुत्ववादी आतंकवादियों के हौसले बुलन्द हैं।

Does terrorism have any religion?

यहां सवाल यह है कि क्या वास्तव में भगवा आतंकवाद जैसा कुछ है? और क्या आतंकवाद का कोई धर्म होता है? जाहिर सी बात है कि समझदार लोगों का जवाब यही होगा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और न कोई रंग होता है। लेकिन चिदंबरम ने जो कहा उससे भी असहमत होना आसान नहीं है। चिदंबरम के शब्द प्रयोग में असावधानी हो सकती है लेकिन भावना एकदम सही है। जिस आतंकवाद की तरफ चिदंबरम ने इशारा किया उसकी आमद तो आजादी के तुरंत बाद हो गई थी और इस आतंकवाद ने सबसे पहली बलि महात्मा गांधी की ली। उसके बाद भी यह धीरे धीरे बढ़ता रहा और 6 दिसम्बर 1992 को इसका विशाल रूप सामने आया।

हाल ही में जब साध्वी प्रज्ञा, दयानन्द पाण्डेय और कर्नल पुरोहित नाम के दुर्दान्त आतंकवादी पकड़े गए तब यह फिर साबित हो गया कि ऐसा आतंकवाद काफी जड़ें जमा चुका है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी का चिदंबरम के बयान पर हो- हल्ला मचाना 'चोर की दाड़ी में तिनका' वाली कहावत को चरितार्थ करता है।

पहली बात तो यह है कि भगवा रंग पर किसी राजनीतिक दल का अधिकार नहीं है और न करने दिया जाएगा। यह हमारी सदियों पुरानी आस्था का रंग है। लेकिन चिदंबरम के बयान के बाद भाजपा और संघ यह दर्शाने का प्रयास कर रहे हैं गोया भगवा रंग उनका ही हो। अगर ऐसा है तो भाजपा का झण्डा भगवा क्यों नहीं है?

Hindutva has nothing to do with Hindu religion

अब संघी भाई कह रहे हैं कि हिन्दू कभी आतंकवादी हो ही नहीं सकता। बात सौ फीसदी सही है और हम भी यही कह रहे हैं कि हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकता और आतंकवादी गतिविधिायों में जो आतंकवादी पकड़े गए हैं या अभी पकड़ से बाहर हैं वह किसी भी हाल में हिन्दू नहीं हो सकते वह तो 'हिन्दुत्व' की शाखा के हैं। दरअसल 'हिन्दुत्व' की अवधारणा ही आतंकी है (?) और उसका हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नहीं है। कोई भी धर्मग्रंथ, वेद, पुराण, गीता रामायण हिन्दुत्व की बात नहीं करता न किसी भी धर्मग्रंथ में 'हिन्दुत्व' शब्द का प्रयोग किया गया है।

Hindutva is a political ideology

हिन्दुत्व एक राजनीतिक विचार धारा है जिसकी बुनियाद फिरकापरस्त, देशद्रोही और अमानवीय है। आज हमारे संघी जिस हिन्दुत्व के अलम्बरदार बन रहे हैं, इन्होंने भी इस हिन्दुत्व को विनायक दामोदर सावरकर से चुराया है। जो अहम बात है कि सावरकर का हिन्दुत्व नास्तिक है और उसकी ईश्वर में कोई आस्था नहीं है। जबकि हिन्दू धर्म पूर्णत: आस्तिक है। उसकी विभिन्न शाखाएं तो हैं लेकिन ईश्वर में सभी हिन्दुओं की आस्था है। लिहाजा ईश्वर के बन्दे आतंकी तो नहीं हो सकते पर जिनकी ईश्वर में आस्था नहीं है वही आतंकी हो सकते हैं।

Terrorism is also a political idea

जो अहम बात है कि हिन्दू धर्म या किसी भी धर्म के साथ कोई 'वाद' नहीं जुड़ा है क्योंकि 'वाद' का कंसेप्ट ही राजनीतिक होता है जबकि 'हिन्दुत्व' एक वाद है। और आतंकवाद भी एक राजनीतिक विचार है। दुनिया में जहां कहीं भी आतंकवाद है उसके पीछे राजनीति है। दरअसल आतंकवाद, सांप्रदायिकता के आगे की कड़ी है। जब धर्म का राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए हथियार की तरह प्रयोग किया जाता है तब सांप्रदायिकता का उदय होता है और जब सांप्रदायिकता के जुनून को पागलपन की हद तक ले जाया जाता है तब आतंकवाद पैदा होता है।

भारत में भी जिसे भगवा आतंकवाद कहा जा रहा है वस्तुत: यह 'हिन्दुत्ववादी आतंकवाद' है, जिसे आरएसएस और उसके आनुषंगिक संगठन पालते पोसते रहे हैं। संघ की शाखाओं में बाकायदा आतंकवादी प्रशिक्षित किए जाते हैं जहां उन्हें लाठी- भाला चलाना और आग्नेयास्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। दशहरे वाले दिन आतंकवादी अपने हथियारों की शस्त्र पूजा करते हैं।

फिर प्रतिप्रश्न यह है कि भाजपा और संघ को चिदंबरम के बयान पर गुस्सा क्यों आता है?

'मजहबी आतंकवाद', 'जिहादी आतंकवाद' और 'वामपंथी उग्रवाद' जैसे शब्द तो संघ के शब्दकोष की ही उपज हैं न! अगर मजहबी आतंकवाद होता है तो भगवा आतंकवाद क्यों नहीं हो सकता? अगर वामपंथी उग्रवाद होता है तो दक्षिणपंथ का तो मूल ही उग्रवाद है। अगर 'जिहादी आतंकवाद' और 'इस्लामिक आतंकवाद' का अस्तित्व है तब तो 'भगवा आतंकवाद' भी है। अब यह तय करना भाजपा- आरएसएस का काम है कि वह 'किस आतंकवाद' को मानते हैं?

अमलेन्दु उपाध्याय