जानिए क्या है बंदी प्रत्यक्षीकरण
Know all about habeas corpus in Hindi बंदी प्रत्यक्षीकरण को इंग्लैंड में हैबियस कार्पस (habeas corpus) कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है शरीर लेकर आओ।

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बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) क्या है?
- "शरीर लेकर आओ" का कानूनी आशय
- रिट कब और क्यों दायर की जाती है?
- सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: कानू सान्याल बनाम जिला मजिस्ट्रेट दार्जिलिंग
- किन परिस्थितियों में बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट दायर की जा सकती है?
- बंदी प्रत्यक्षीकरण: स्वतंत्रता की अंतिम कुंजी
इंग्लैंड में रिट की उत्पत्ति और भारतीय संविधान में महत्व
बंदी प्रत्यक्षीकरण जिसे अंग्रेज़ी में Habeas Corpus कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार है जो अनुचित गिरफ्तारी या हिरासत से व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है। जानिए इसके कानूनी पक्ष, कार्यप्रणाली और सुप्रीम कोर्ट के फैसले।
बंदी प्रत्यक्षीकरण को इंग्लैंड में हैबियस कार्पस (habeas corpus) कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है शरीर लेकर आओ। हिंदी नाम का भी यही अर्थ है कि बंदी को न्यायालय के सामने पेश किया जाए। इस रिट के द्वारा न्यायालय ऐसे व्यक्ति को जिसे निरुद्ध किया गया है या कारावास में रखा गया है न्यायालय के समक्ष उपस्थित करा सकता है और उस व्यक्ति के निरुद्ध किये जाने के कारणों की जांच कर सकता है। यदि निरोध का कोई विधिक औचित्य नहीं है तो उसे स्वतंत्र कर दिया जाता है।
कानू सान्याल बनाम जिला मजिस्ट्रेट दार्जिलिंग 1974 (510) (Kanu Sanyal vs Dist. Magistrate, Darjeeling & ... on 5 February, 1974) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बंदी के शरीर को न्यायालय के समक्ष पेश करना इस रिट का सारवान लक्षण नहीं है। यह रिट निम्नलिखित परिस्थितियों में निरस्त की जाती है।
- जहां निरोध प्रक्रिया के उल्लंघन में है, जैसे निरुद्ध व्यक्ति को विहित समय के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित न करना।
- गिरफ्तारी का आदेश किसी विधि का उल्लंघन करता है, जैसे मनमाना आदेश।
- किसी व्यक्ति को किसी प्राइवेट व्यक्ति ने निरुद्ध किया है।
- किसी व्यक्ति को ऐसे विधि के अधीन गिरफ्तार करना जो असंवैधानिक है।
- निरोध आदेश असद्भावि है।
साधारण नियम यह है कि जो व्यक्ति रिट की याचिका कर्ता है वह ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसके अधिकार का अतिलंघन हुआ हो। किन्तु यह नियम बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट (बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट) पर लागू नहीं होता।
बंदी की और से उसके मित्र या सामाजिक कार्यकर्ता या किसी अपरिचित व्यक्ति द्वारा भी याचिका पेश की जा सकती है। यह रिट विधिक संरक्षक की सहायता के लिए दी जा सकती है जिससे वह किसी अन्य व्यक्ति से किसी बालक की अभिरक्षा प्राप्त कर सके। यह निवारक निरोध के मामले में भी प्राप्त की जा सकती है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण ऐसा उपचार है जो सबसे अशक्त या साधनहीन व्यक्ति को सर्वाधिक शक्तिमान प्राधिकारी के विरुद्ध उपलब्ध है। यह वह कुंजी है जो स्वतंत्रता के द्वार खोल देती है।
यह इंग्लैंड में उपजी सबसे पुरानी रिट है जिससे प्रत्येक व्यक्ति की राज्य या किसी अन्य प्राइवेट व्यक्ति द्वारा निरुद्ध किये जाने पर रक्षा की जाती थी।
स्रोत - देशबन्धु
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